खिलौने वाला…कारीगरों की कला को सहेजने के लिए शुरू किया काम…सीवी राजू ने खिलौनों को केमिकल फ्री और ईकोफ्रेंडली बनाने के लिए कई एक्सपेरिमेंट्स किए…जंगलों में जाकर अलग-अलग पेड़-पौधे तलाशे,जिनकी जड़ें,छाल, पत्ते,फल,बीज और फूलों से नेचुरल कलर मिल सके

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सीवी राजू 500 साल पुरानी एटिकोप्पका खिलौने बनाने की कला के जरिए न सिर्फ खुद बढ़िया कमाई कर रहे हैं, बल्कि 200 से ज्यादा लोगों को रोजगार देकर उनकी जिंदगी भी संवार रहे हैं। इस काम के लिए देशभर में उनकी तारीफ भी हो रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी मन की बात में उनका जिक्र कर चुके हैं। इतना ही नहीं राजू पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम के हाथों सम्मानित भी हो चुके हैं।

58 साल के सीवी राजू ने कारीगरों की मदद करने के लिए पद्मावती एसोसिएट्स की शुरुआत की।सीवी राजू आंध्र प्रदेश के विशाखापट्नम के पास ‘एटिकोप्पका गांव’ के रहने वाले हैं। ये गांव वराह नदी के किनारे बसा है, जिसका नाम चालुक्य वंश के एक राजा के नाम पर रखा गया था। सीवी राजू एक किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं।

वो बताते हैं, “मेरा गांव एटिकोप्पका 500 से अधिक सालों से एक खास तरह की पारंपरिक लकड़ी के खिलौनों’ बनाने के लिए जाना जाता है, लेकिन कई कारणों की वजह से धीरे-धीरे खिलौने बनाने का काम कम होता जा रहा था। मैं इन खिलौनों से खेलते हुए बड़ा हुआ, उसे मैं ऐसे ही खत्म होता नहीं देख सकता था। मैंने कारीगरों की मदद करने के लिए पद्मावती एसोसिएट्स की शुरुआत की।”वी राजू ने खिलौनों को केमिकल फ्री और ईकोफ्रेंडली बनाने के लिए कई एक्सपेरिमेंट्स किए हैं।सीवी राजू ने खिलौनों को केमिकल फ्री और ईकोफ्रेंडली बनाने के लिए कई एक्सपेरिमेंट्स किए। जंगलों में जाकर अलग-अलग पेड़-पौधे तलाशे, जिनकी जड़ें, छाल, पत्ते, फल, बीज और फूलों से नेचुरल कलर मिल सके।

मीडिया से बात करते हुए सीवी राजू ने बताया, “ट्रेडिशनल लकड़ी के खिलौनों को तैयार करने के लिए नेचुरल कलर और डाई का इस्तेमाल किया जाता था। इससे ये खिलौने बच्चों के लिए हानिकारक नहीं होते थे, लेकिन धीरे-धीरे नेचुरल डाई का इस्तेमाल खत्म होने लगा और बाजार में सिंथेटिक डाई का इस्तेमाल बढ़ गया।

मैंने तीन महीने अलग-अलग एक्सपेरिमेंट किए और कई तरह के नेचुरल कलर पेड़-पौधों से इकट्ठा किया। इसके बाद सभी कलर को ‘क्राफ्ट्स काउंसिल ऑफ इंडिया’ की मदद से टेस्ट कराया। जिसमें सारे कलर आर्गेनिक निकले। जिससे हम खिलौने बनाते हैं।”

एटिकोप्पका खिलौनों में नेचुरल कलर के साथ ‘लाह’ कलर का भी इस्तेमाल किया जाता है, जिससे खिलौनों पर चमक बनी रहे।सीवी राजू ने ईकोफ्रेंडली खिलौने बनाने के लिए एक अलग तकनीक पर काम किया। एटिकोप्पका खिलौनों में नेचुरल कलर के साथ ‘लाह’ कलर का भी इस्तेमाल किया, जिससे खिलौनों पर चमक बनी रहे।

राजू बताते हैं, “हम सबसे पहले फूल, पत्ते और बीजों को सुखाते हैं। इसके बाद, अलग-अलग तरीकों से प्राकृतिक रंग बनाया जाता है। जैसे कुछ को पीसकर, कुछ को पानी में उबालकर और कुछ ‘कोल्ड प्रोसेसिंग’ तकनीक से तैयार किया जाते हैं। इसके बाद, इन रंगों को ‘लाह’ के साथ मिलाया जाता है। खिलौनों को लाह से रंगने से बाद ‘केवड़ा’ (P. tectorius) के पत्तों से फिनिशिंग दी जाती है ताकि खिलौनों पर चमक आ सके।”

राजू बताते हैं कि उनके बनाए इन खिलौनों को प्री- प्राइमरी स्कूल में पढ़ने के लिए दिया जाता है।
राजू की पद्मावती एसोसिएट्स में कई तरह के एटिकोप्पका खिलौने बनाए जाते हैं। खिलौनों से साथ एटिकोप्पका बाउल, बॉक्स किचनवेयर सहित मंदिरों से लेकर नियमित घरेलू उपयोग भी बनाये जाते हैं। बॉक्स का इस्तेमाल महिलाएं हल्दी, कुमकुम, सुपारी और दूसरे सुगंधित पदार्थ रखने के लिए इस्तेमाल करती हैं।राजू बताते हैं, “बच्चों के लिए एक खास तरह का खिलौना ‘लक्कापीड़ालु’ बनता है, जिसमें खाना पकाने के बर्तन, करछुल, एक नकली कोयले का चूल्हा, एक पत्थर की चक्की और यहां तक ​​कि एक कुआं भी शामिल है। जो बच्चों को बहुत पसंद आता है।

खिलौनों के साथ हम बच्चों के लिए एजुकेशनल खिलौने भी बना रहे हैं। जिसे पढ़ने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इन खिलौनों को प्री- प्राइमरी स्कूल में पढ़ने के लिए दिया जाता है। छोटे बच्चों को स्कूल में प्लास्टिक के खिलौने दिए जाते हैं जो नेचर के लिए अच्छे नहीं हैं।”

राजू बताते हैं, “हम अपने काम को बेहतर बनाने के लिए नए- नए तरीके सीखते हैं। जिससे हमारे काम का दायरा भी बढ़ता है। आज मेरे छोटे से गांव में तकरीबन 200 परिवार का सहारा ये खिलौने हैं। दरसल ये खिलौने सिर्फ रोजगार ही नहीं बल्कि ये हमारे लिए गर्व भी है , कई सालों के ये हमारे संस्कृति का हिस्सा हैं।”

राजू के अनुसार एटिकोप्पका खिलौनों से हर कारीगर, दिन में 5 से 6 घंटे काम कर महीने के 28 से 30 हजार खिलौने बना लेता है। जो ई-कॉमर्स की मदद से देश के हर हिस्से में बेचा जा रहा है। इस तरह हर कारीगर तकरीबन 25 से 30 हजार रुपए हर महीने कमा लेता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ प्रोग्राम में सीवी राजू के प्रयासों की सराहना की थी।
राजू को उनके काम के लिए कई जगहों से सराहना मिली है। साल 2002 में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने उन्हें उनके काम के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा था। 2003 में उन्हें कमलादेवी चट्टोपाध्याय अवार्ड से सम्मानित किया गया। इसके अलावा 2014 में INTACH ने राजू को लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड के सम्मानित किया। क्राफ्ट्स काउंसिल ऑफ तेलंगाना ने भी उन्हें 2019 में लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया है। पिछले साल, ‘वोकल फॉर लोकल’ को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ प्रोग्राम में सीवी राजू के प्रयासों की सराहना की।

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