मंथन…War Effect on Environment: युद्ध दुनिया में कहीं भी हो रहा हो, लेकिन पर्यावरण पर इसका अदृश्य असर होता है… आखिर धरती हम सबका घर है

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गोपी साहू : जब सशस्त्र संघर्ष शुरू होता है, तो सबसे पहले हमारा ध्यान प्रभावित लोगों पर जाता है, लेकिन जब युद्ध रुक जाता है तब भी इससे उत्पन्न समस्याएं खत्म नहीं होतीं। युद्ध पर्यावरण को तहस-नहस कर देता है। तोपों के हमलों, राकेटों और बारूदी सुरंगों से प्रदूषक निकलते हैं, जिनसे जंगल तबाह हो जाते हैं और कृषि भूमि बेकार हो जाती है। यूक्रेन पर रूस के आक्रमण और इजराइल-हमास युद्ध को देखकर ऐसा लगता है कि एक तरह से कहा जाए तो युद्ध का दौर लौट आया है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से संघर्षों का दौर चरम पर है। मौतें 28 साल के उच्चतम स्तर पर हैं। युद्ध से जानमाल को होने वाले नुकसान का आकलन करते समय हमें इससे हुए दूसरे नुकसानों को अनदेखा नहीं करना चाहिए, जिसमें पर्यावरण को क्षति शामिल है।

सशस्त्र संघर्ष पर्यावरणीय क्षति जैसा गहरा असर छोड़ जाता है, जिसके परिणामस्वरूप हमारे और अन्य प्राणियों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। रासायनिक और अन्य हथियारों से होने वाला प्रदूषण जहर के तौर पर पर्यावरण में बना रहता है। विस्फोटकों से जो यूरेनियम प्रदूषक निकलते हैं, वे काफी समय तक लोगों की सेहत को नुकसान पहुंचाते हैं जबकि सेना की आवाजाही और बुनियादी ढांचे की क्षति से परिदृश्य और खराब हो जाता है। संघर्षों से हुआ नुकसान आपके अनुमान से कहीं अधिक समय तक रह सकता है। फ्रांस में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान वर्दुन की खूनी लड़ाई ने एक समय उपजाऊ मानी जाने वाली कृषि भूमि को प्रदूषित कर दिया था। आज उस युद्ध के एक सदी से अधिक समय के बाद भी कोई भी उस क्षेत्र में नहीं रह सकता, जिसे अब रेड जोन कहा जाता है।

युद्ध खत्म होने के बाद भी दिखता है असर
जैसे-जैसे रूस-यूक्रेन युद्ध आगे बढ़ रहा है, गंभीर वायु प्रदूषण, वनों की कटाई और मिट्टी का क्षरण बढ़ गया है। संघर्ष के चलते रहने के ठिकानों को नुकसान होता है और जैव विविधता में गिरावट आती है। 1946 से 2010 के बीच, सशस्त्र संघर्ष से प्रभावित अफ्रीकी देशों में वन्य जीवन में उल्लेखनीय गिरावट आई। युद्ध के दौरान बारूदी सुरंगों का इस्तेमाल खासतौर पर बहुत हानिकारक होता है, क्योंकि ये तब तक अपनी जगह कायम रहती हैं, जब तक की उन्हें छूने से उनमें विस्फोट न हो जाए। युद्ध समाप्त होने के काफी समय बाद भी, वे लोगों या जानवरों की मौत का कारण बन सकती हैं। लीबिया, यूक्रेन, लेबनान और बोस्निया हर्जेगोविना में बाढ़ का पानी गुजरने के बाद जमीन के नीचे बारूदी सुरंग होने का पता चला है।

समुद्र में डाल दिए जाते हैं हथियार
कई विस्फोटक ऐसे होते हैं, जो थोड़े समय की तीव्र गर्मी को तो बर्दाश्त कर लेते हैं। लेकिन जब उच्च तापमान रहता है, तो ये खुद ही फट जाते हैं। पश्चिम एशिया में ऐसा आमतौर पर होता रहा है, जहां तापमान काफी अधिक रहता है। इराक में, 2018 से 2019 के बीच भीषण गर्मी के दौरान छह आयुध डिपो में विस्फोट हुआ। जॉर्डन में 2020 में भीषण कर्मी के कारण इसी तरह आयुद्ध डिपो में विस्फोट होने की बात कही जाती है। युद्ध के अंत में, हथियार अक्सर समुद्र में फेंक दिये जाते हैं। प्रथम विश्व युद्ध से लेकर 1970 के दशक तक, यूनाइटेड किंगडम में पुरानी युद्ध सामग्री और रासायनिक हथियार समुद्र में फेंक दिए गए थे। यह एक आसान समाधान लग सकता है, लेकिन इससे पैदा हुआ खतरा खत्म नहीं होता। उत्तरी आयरलैंड और स्कॉटलैंड के बीच एक प्राकृतिक समुद्री खाई के तल पर 10 लाख टन से अधिक युद्ध सामग्री बिखरी हुई है। इनसे कभी-कभी पानी के अंदर विस्फोट हो जाता है, जबकि रासायनिक हथियार बहकर समुद्र तटों पर आ जाते हैं।

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सोलोमन द्वीप पर भीषण लड़ाई हुई। आज भी, हर साल उस दौर के बम फटने से लोग मर जाते हैं या घायल हो जाते हैं। मछुआरों को पानी के नीचे बमों से सावधान रहना होता है। कुल मिलाकर हम अब युद्ध और पर्यावरणीय नुकसान के बीच विनाशकारी संबंध को नजरअंदाज नहीं कर सकते। युद्ध जलवायु परिवर्तन से निपटने की हमारी क्षमता को बदतर बनाते हैं, और संघर्ष से होने वाला पर्यावरणीय नुकसान जलवायु परिवर्तन को और बदतर कर देता है।

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