पेरिस पैरालंपिक में कुल 167 देशों ने हिस्सा लिया है। जिसमें भारत की ओर से 84 खिलाड़ियों को भेजा गया है। भारतीय पैरा खिलाड़ियों ने 12 खेलों में प्रतिभाग किया है। 84 खिलाड़ियों के दल में 32 महिलाएं हैं। जिसमें पैरालंपिक के इतिहास में पहला स्वर्ण जीतने वाली महिला एथलीट अवनी लेखरा का नाम शामिल है। इसके अलावा मानसी जोशी, साक्षी कसाना, मानदीप कौर और कंचन लखानी समेत कई महिला एथलीट्स के नाम शामिल हैं।
इन पैरा एथलीट्स की पैरालंपिक तक पहुंचने की कहानी बहुत दिलचस्प भी है और प्रेरणादायक भी। ये भारतीय महिलाएं आज अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत का प्रतिनिधित्व कर रही हैं लेकिन इस मुकाम तक पहुंचने के लिए इन्होंने बहुत मेहनत और संघर्ष किए हैं जिसके बारे में हर देशवासी को पता होना चाहिए।
पैरालंपिक के आगाज के साथ ही पैरा बैडमिंटन में मानसी जोशी को हार का सामना करना पड़ा। पहला गेम जीतने के बावजूद ग्रुप चरण के मैच में मानसी जोशी इंडोनेशिया की कोंटिया इखितर से मुकाबले में हार गईं। हालांकि हार मान लेना उनके जीवन का हिस्सा नहीं है।
कौन हैं मानसी जोशी
मानसी जोशी के पिता होमी भाभा रिसर्च सेंटर में रिसर्च साइंटिस्ट हैं। मानसी बचपन में पिता के साथ बैडमिंटन खेला करती थीं लेकिन उनका बैडमिंटन को करियर बनाने का कोई इरादा नहीं था। हालांकि कोच माधव लिमये और विलास दामले से उन्हें ट्रेनिंग दी। उस दौरान मानसी को परमाणु ऊर्जा विभाग के ग्रीष्मकालीन बैडमिंटन शिविर में चुना गया। जिसके बाद उन्होंने बैडमिंटन को गंभीरता से लिया और शुरुआती वर्षों में स्कूल, कॉलेज और जिले में कई बैडमिंटन टूर्नामेंट में हिस्सा लिया।
मानसी जोशी की शिक्षा
मानसी ने मुंबई के केजे सोमैया कॉलेज से इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री ली और एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में करियर पर फोकस करना शुरू किया।
सड़क हादसे में खोया पैर
लेकिन एक सड़क हादसे में उन्होंने अपना बायां पैर खो दिया. जिसके बाद कृत्रिम पैर की सहायता से वह फिर से चलने लगीं। शारीरिक चोटों के ठीक होने के पांच महीनों बाद वह काम पर वापस गईं लेकिन मानसिक अवसाद से उभर नहीं पाईं।
बैडमिंटन ने अवसाद से निकाला बाहर
अवसाद से उबरने के लिए उन्होंने बैडमिंटन खेलना शुरू किया। उन्हें एहसास हुआ कि बैडमिंटन में वह अपना करियर बना सकती हैं। पहली सफलता एक वर्ष बाद राष्ट्रीय स्तर के टूर्नामेंट में रजत पदक जीतने पर मिली। उन्होंने स्पेन में अपना पहला अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट खेला।