गोपी : विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज की छत्तीसगढ़ इकाई के तत्वावधान में “छत्तीसगढ़ का पर्यटन स्थल” विषय पर एक राष्ट्रीय आभासी संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित डॉ. डी. पी. देशमुख (भिलाई, छत्तीसगढ़) ने कहा कि वैश्वीकरण के युग में पर्यटन सबसे बड़ा लाभार्थी क्षेत्र बनकर उभरा है। छत्तीसगढ़ भी इस दिशा में अपनी विशिष्ट पहचान बनाने के लिए तत्पर है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ न केवल “धान का कटोरा” है, बल्कि ऐतिहासिक, धार्मिक, नैसर्गिक, पुरातात्विक और सांस्कृतिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण प्रदेश है। उन्होंने सुझाव दिया कि राज्य को पर्यटन हब के रूप में विकसित करने के लिए लोक कला और संस्कृति को भी शामिल किया जाए, जिससे छत्तीसगढ़ की पहचान विश्व पटल पर और सशक्त होगी।
संगोष्ठी में वक्ता डॉ. दीनदयाल साहू (हरिभूमि समाचार पत्र, रायपुर) ने छत्तीसगढ़ के पर्यटन स्थलों के विविध आयामों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि प्रदेश के हर पर्यटन स्थल का धार्मिक, ऐतिहासिक और जन आस्था से जुड़ाव है। चाहे वह सीताबेंगरा गुफा हो, रामगढ़ की पहाड़ी, लक्ष्मणेश्वर मंदिर हो, या दंतेवाड़ा का दंतेश्वरी मंदिर। रायगढ़ और कांकेर अंचल के शैलचित्र, भोरमदेव और मल्हार के मंदिर, गरियाबंद का भूतेश्वर महादेव और राजिम जैसे स्थलों का समृद्ध इतिहास राज्य की सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाता है। उन्होंने इन स्थलों के संरक्षण और संवर्धन की आवश्यकता पर बल दिया।
कार्यक्रम का शुभारंभ जानकी साव की सरस्वती वंदना से हुआ। स्वागत डॉ. अनुरिमा शर्मा ने किया और संचालन सुश्री नम्रता ध्रुव ने किया। अध्यक्षता विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज के डॉ. गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी ने की। संगोष्ठी के आयोजन और संयोजन का दायित्व डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक ने निभाया। अंत में आभार प्रदर्शन शोधार्थी रतिराम गढ़ेवाल ने किया।
इस राष्ट्रीय आभासी संगोष्ठी में कई शिक्षाविद, साहित्यकार और शोधार्थी उपस्थित रहे। सभी ने छत्तीसगढ़ के पर्यटन स्थलों को संरक्षित करने और इसे पर्यटन के वैश्विक मानचित्र पर उभारने की आवश्यकता पर जोर दिया।