सामाजिक भेदभाव मिटाने व आदिवासी संस्कृति के विकास के लिए कार्यरत शोधार्थी दीनानाथ यादव को मिला पीएचडी अवॉर्ड

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छत्तीसगढ़। उत्कृष्ठ बाल अधिकार कार्यकर्ता व समाजसेवी दीनानाथ यादव को महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय, वर्धा ने डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी पीएचडी अवॉर्ड से सम्मानित किया है। डॉ. यादव को यह अवॉर्ड छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में पोक्सो एक्ट के क्रियान्वयन का मूल्यांकनात्मक अध्ययन विषय पर शोध करने के लिए मिला है। उन्होंने अपना शोध कार्य विवि में समाज कार्य विभाग के प्रो. डॉ. अमित राय के निर्देशन में पूर्ण किया है। शोध कार्य पूर्ण करने के बाद विश्वविद्यालय ने 10 जनवरी को पीएचडी की उपाधि से सम्मानित किया है।

उन्होंने बताया कि ये पीएचडी सिर्फ उनके पढ़ाई के लिए नहीं रही है बल्कि उससे कहीं ज्यादा यह उनके परिवार और समाज में सामाजिक सांस्कृतिक परिवर्तन व सुधार के लिए किया गया है। इसका सबसे बड़ा कारण उन्होंने बताया कि उनके परिवार को ग्रामीण और सामाजिक स्तर पर हमेशा कमजोर आंका गया है। उनके साथ विभिन्न तरीके से भेदभाव और उन्हें परेशान करने की तमाम कोशिशें की गई है। इसलिए वे अपने पीएचडी को इसका जवाब बताते हैं। करीब 5 साल के शोध कार्य के बाद अपनी इस उपलब्धि श्रेय उन्होंने अपने परिवार, गुरुजन और शुभचिंतकों को दिया है। वरिष्ठ शोधार्थी ने उस वक्त सबको चौंका दिया था जब वो अपनी शोध की अंतिम प्रस्तुत करने के दौरान ही आदिवासी लिबाज और अपने एक अलग ही अंदाज में पहुंचे थे। उनके इस वेषभूषा ने सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया था।

डॉ दीना नाथ ने उनका आभार व्यक्त किया है जिनकी वजह से उन्हें यह उपलब्धि मिली। उन्होंने सर्वप्रथम अपने गाइड डॉ. अमित राय (एसोसिएट प्रोफेसर) का आभार व्यक्त किया, जिन्होंने प्रारंभ से अंत तक इस चुनौतीपूर्ण कार्य को पूर्ण कर करने में सहयोग किया। इसी क्रम में सहायक प्राध्यापक डॉ. मिथलेश कुमार, जिन्होंने शोधार्थी की महत्वाकांक्षाओं से परिचित कराकर शोध की दृष्टि विकसित की। डॉ. आमोद गुर्जर जिन्होंने मार्गदर्शक की भूमिका में न होते हुए भी शोध के सभी महत्वपूर्ण चरणों में प्रोत्साहित किया। साथ ही विभाग के निदेशक प्रो. मनोज कुमार डॉ. मिथिलेश कुमार, डॉ. शम्भू जोशी, डॉ. शिव कुमार बघेल और डॉ. गजानन निलामे का आभार व्यक्त किया जिन्होंने शोध लेखन के लिए बेहतर माहौल तैयार किया। इसी क्रम में छत्तीसगढ़ राज्य बाल अधिकार आयोग के पूर्व अध्यक्ष श्रीमती शताब्दी सुबोध पांडे जी का विशेष सहयोग रहा, जो शोध क्षेत्र के चुनाव से लेकर अन्त लेखन कार्य तक बाल अधिकार के व्यवहारिक मुद्दों पर मार्गदर्शन करती रही। अन्य विशेषज्ञों को भी मुझसे जोड़ते रही। इसके साथ ही DCPU रायपुर के संरक्षण अधिकारी संजय निराला व शोध कार्य में सहयोग करने वाले सभी उत्तरदाताओं, विषय विशेषज्ञों का भी विशेष रूप से धन्यवाद किया, जिनसे प्रत्यक्ष मुलाक़ात कर विषय की गंभीरता को बेहतर तरीके समझने का अवसर मिला। इस अवसर पर राज्य बाल अधिकार एवम एवं संरक्षण आयोग की पूर्व अध्यक्ष श्रीमती शताब्दी पाण्डेय ने डॉ दीनानाथ को बधाई देते हुए बाल अधिकार के क्षेत्र में नवीन सृजनात्मकता कार्य करने के लिए शुभकामनाएं दी।

इसके अलावा उन्होंने अपने पिता श्री बोध प्रकाश, माता श्रीमती रथ बाई, भाई श्री महेश्वरनाथ व भाभी श्रीमती आशा, बहन कु. याचना व पुष्पा देवी, जीजा जी करम लाल इंडियन आर्मी नायाब सूबेदार का ह्रदय से आभार व्यक्त किया। अकादमिक जगत को मजबूती देने में मददगार अपने पीएचडी शोधार्थी डॉ. नरेश साहू, डॉ. जितेंद्र सोनकर, डॉ. प्रफुल्ल मेश्राम, डॉ. रवीन्द्र यादव, रजनीश कुमार अम्बेडकर, डॉ. श्याम कुमार यादव, रामदेव जुर्री, प्रफुल्ल साहू और अपने सहपाठी सत्यजीत सिंह कुर्रे, अविनाश भारद्वाज, मुकेश पटेल, दीपिका यादव, प्रतिभा, डॉ. अनीता प्यारे मांझी का आभार किया।

शोधार्थी के रूप में कई रोचक झलकियां:
डॉ दीना नाथ यादव ऐसे उत्कृष्ठ बाल अधिकार कार्यकर्ता हैं जो न केवल पिछले कई सालों से सामाजिक भेदभाव व आदिवासी संस्कृति के विकास के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं बल्कि अकादमिक और सामुदायिक स्तर पर भी लड़ाई लड़ रहे हैं। वे पिछले 5 सालों से बाल अधिकार संरक्षण के लिए लगातार कार्य कर रहे हैं साथ ही निरंतर प्रयासरत भी हैं। इसी क्रम में उन्होंने छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिलों में सृजनात्मक पहल किए हैं जिसमें बाल अधिकार आयोग का भी विशेष सहयोग रहा है। उन्होंने स्तरीय बाल संरक्षण समिति के गठन पर जोर दिया है साथ ही इसके क्रियान्वयन के लिए व्यवस्थित मॉडल भी प्रस्तुत किया है जिससे इसे प्रभावी रुप से जमीनी स्तर पर लाया जा सके। इसके साथ-साथ उन्होंने जिला प्रशासन रायपुर के सहयोग से दो विद्यालयों में बाल संरक्षण समिति की संरचना बनाकर स्कूल स्तर पर क्रियान्वयन भी किया जो एक शोधार्थी के रुप में उत्कृष्ट व हस्तक्षेपी प्रयोजन है। इसी विशिष्ट कार्य के लिए उन्हें छत्तीसगढ़ राज्य बाल आधिकार आयोग ने गणतंत्र दिवस के अवसर पर उत्कृष्ठ बाल अधिकार सामाजिक कार्यकर्ता के रुप में सम्मानित किया है।

देश के विभिन्न संगठनों ने किया सम्मानित:
बाल आधिकार के क्षेत्र में शोधार्थी को 4 राष्ट्रीय और 5 राजकीय व सांस्थानिक सम्मान प्राप्त है। सामाजिक बुराइयों, कुरीतियों व रूढ़िवाद को समाप्त करने के प्रयास के लिए इन्हें 2018 में छत्तीसगढ़ के जन चेतना सम्मान से सम्मानित किया गया। दिव्यांग बच्चों के कल्याण हेतु विशेष पहल के लिए निःशक्त कल्याण सेवा समिति पामगढ़ (छ. ग.) के द्वारा 2021 में उत्कृष्ठ बाल आधिकार सामाजिक कार्यकर्ता के रुप में सम्मानित किया है। इसके अलावा हाल ही में इसी सम्मान से इन्हें छत्तीसगढ़ राज्य बाल आधिकार संरक्षण आयोग ने गणतंत्र दिवस के अवसर पर उत्कृष्ठ बाल अधिकार सामाजिक कार्यकर्ता के रुप में सम्मानित भी किया है।

विभिन्न राष्ट्रीय फेलोशिप में चयनित
शोधार्थी का चयन भारतीय सामाजिक अनुसंधान परिषद (ICSSR) व विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) जैसे राष्ट्रीय संस्थानों के फेलोशिप प्रोग्राम में हुआ है। तथा बाल अधिकार के क्षेत्र में काम करने वाली राष्ट्रीय नोडल नोडल एजेंसी चाइल्ड राइट्स एंड यू (CRY) ने भी सम्मानित किया है।

# बैकबैंचर से गोल्ड मेडलिस्ट बनने तक का सफर:
गांव में तो इन्होंने और इनके परिवार ने पहले ही विभिन्न समाजिक भेदभाव का सामना किया था, लेकिन प्रारंभिक उच्च शिक्षा के दौरान भी ग्रामीण क्षेत्र से आने और इनके वेशभूषा और भाषा के कारण इनका मजाक बनाया जाता था। जवाब इन्होंने अपनी कड़ी मेहनत और इस मुकाम पर पहुंच कर दिया। अंतराष्ट्रीय विश्वविद्यालय वर्धा में सोशल वर्क में 2015 में मास्टर की पढ़ाई में ये टॉप कर गोल्ड मेडलिस्ट बने और एमफिल करते हुए ही पीएचडी की प्री परीक्षा पास कर अपनी उत्कृष्ट योग्यता परिचय देते हुए 2016 में पीएचडी में प्रवेश लिया।

# अंतराष्ट्रीय व राष्ट्रीय शोध पत्रों का प्रकाशन:
इनके शोध पत्र की बात करें तो इस क्षेत्र में इनके 30 से अधिक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रों का प्रकाशन हो चुका है। और आगे भी ये इसके किए प्रयासरत हैं। इस समय श्री यादव जी अपनी सामजिक बहिष्कार : एक सामाजिक सांस्कृतिक प्रतिरोध नामक शीर्षक की पुस्तक का लेखन कर रहे हैं। शोधार्थी दीनानाथ यादव ने एक छोटे से गांव से निकलकर संघर्ष किया और अंत तक हार नहीं मानी और जिस वेषभूषा और भाषा बोली का मजाक बनाया जाता था उसी अंदाज में उन्होने अपने शोध को प्रस्तुत कर सामाजिक संदेश देने का प्रयास किया और अपने कार्यों से पूरे छत्तीसगढ़ का नाम रोशन किया।

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