कहते हैं,नीम सबसे बड़ा हकीम…आज पूरे विश्व में नीम आधारित औषधियों एवं सौंदर्य प्रसाधनों के अनेक उत्पाद बाजार में भारी मात्रा में उतारे जा रहे हैं…भारत में नीम-संपदा के काफी अच्छे संसाधन हैं और देश भर में नीम के लाखों वृक्ष बिखरे हुए हैं

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कहते हैं, नीम सबसे बड़ा हकीम। आज पूरे विश्व में नीम आधारित औषधियों एवं सौंदर्य प्रसाधनों के अनेक उत्पाद बाजार में भारी मात्रा में उतारे जा रहे हैं। नीम के बीज (निम्बौली) की कीमत बाजार में दिनोदिन बढ़ती जा रही है। चीन तो नीम के महत्त्व को पहचानते हुए चौदह करोड़ हैक्टेयर भूमि पर इसकी बागवानी कर रहा है और उससे नीम के उत्पादों के बाजार पर अपनी पकड़ बढ़ाता जा रहा है। हमारे देश में नीम के पेड़ काटे जा रहे हैं। सरकारों की ओर से भी इस पर कोई ध्यान नहीं है। नीम अकेला ऐसा वृक्ष है, जिसमें निर्यात की जा सकने वाली कई वस्तुएं उत्पन्न करने की संभाव्यता है। इसीलिए संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, जर्मनी, फ्रांस और नीदरलैण्ड जैसे विकसित देश, जिनके पास पर्याप्त नीम-संपदा नहीं है, अनन्य रूप से नीम के लिए अनुसंधान प्रयोगशालाएं विकसित कर रहे हैं।

इसके विपरीत, भारत में नीम-संपदा के काफी अच्छे संसाधन हैं और देश भर में नीम के लाखों वृक्ष बिखरे हुए हैं, किन्तु अनुसंधान को छोड़कर, जो कि कुछ प्रयोगशालाओं में किया जा रहा है, अब तक नीम अनुसंधान व्यवस्थित रूप से आरंभ नहीं किया गया है। भारत में नीम से हर साल लगभग 35 लाख टन मींगी (निबौली) उत्पन्न्न होती है। इससे लगभग सात लाख टन तेल उत्पादित किया जा सकता है। खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) ने पिछले कुछ दशकों में नीम के फल और बीज प्रसंस्करणों पर गंभीरता से ध्यान दिया है। नीम सत्व कीटनाशक, नाशिकीटमार और फफूंदनाशकों के रूप में प्रयोग किए जाते हैं। नीम के तेल में जीवाणुरोधी, विषाणुरोधी गुण होते हैं और उसका प्रयोग त्वचा एवं दांतों से संबंधित समस्याओं में किया जाता है।

नीम-उत्पादों का उपयोग मलेरिया, ज्वर, दर्द, गर्भनिरोधक, सौन्दर्य-प्रसाधन, लुब्रीकेन्ट्स, उर्वरक, साबुन बनाने में किया जा रहा है। ऐसे में पुणे और मध्य प्रदेश के दो उत्साही युवाओं ने नीम को ही अपने बिजनेस का आधार बनाकर बड़ी कमाई का रास्ता खोल लिया है। गांवों में मेलियासिए परिवार के नीम के पेड़ बहुतायात से पाये जाते हैं लेकिन अपने आसपास मौजूद इस अद्भुत खजाने को लोग भूल गये है। नीम के पेड़ में फूल (बगर) जनवरी-फरवरी में आते हैं तथा मई-जून में फल लगने शुरू हो जाते हैं। नीम के फल (निम्बोली) जुलाई से अगस्त माह में पककर तैयार होते हैं। निम्बोली का गूदा चिपचिपा एवं हल्का मीठा होता है। पकी हुई निम्बोली में लगभग 24 प्रतिशत छिलका, 47 प्रतिशत गूदा, 19 प्रतिशत कठोर कवच एवं 10 प्रतिशत गिरी होती है।

पुणे (महाराष्ट्र) के गांव खलदकर निवासी रमेश खलदकर फॉरेस्ट्री में बीएससी करने के बाद पहले तो आयुर्वेदिक कंपनी और सरकार के टूरिज्म डिपार्टमेंट की नौकरियों में भटकते रहे। उन्हीं दिनो उनको समझ में आया कि जीवन में आगे बढ़ने, कुछ कर दिखाने के लिए अपना ही कोई काम-धंधा शुरू करना होगा। तीन साल पहले उन्होंने नीम प्रोडक्ट की ओर रुख किया। एग्री क्लिनिक एंड एग्री बिजनेस सेंटर्स से दो महीने का प्रशिक्षण लिया। नीम केक मैन्युफैक्चरिंग यूनिट का दौरा भी किया। फिर 48 लाख रुपए लगाकर अपना बिजनेस शुरू किया। नीम ऑयल, नीम सीड केक बनाने की यूनिट शुरू करने के बाद लोकल स्तर पर कंपनी का प्रचार किया और फिर उनको तीन ऑर्गेनिक कंपनियों से लोकल किसानों के लिए कुछ टन का ऑर्डर मिला।

पहले लॉट में उन्होंने 300 एमटी नीम केक मैन्योर और 500 लीटर नीम ऑयल का प्रोडक्शन किया। सारे खर्चे काटकर उन्होंने 22 लाख रुपए का प्रॉफिट कमाया। इससे उनको प्रोत्साहन मिला और नीम से अन्य प्रोडक्ट भी बनाने लगे। आज उनके पास 21 ऑर्गेनिक प्रोडक्ट हैं। उनकी कंपनी का सालाना टर्नओवर आज दो करोड़ रुपए हो गया है। आज वह बंजर भूमि में हर महीने 1.5 लाख रुपए की कमाई कर रहे हैं। अब वह वर्मी कम्पोस्ट और कीटनाशक भी बना रहे हैं। एग्री कंसल्टिंग पर ध्यान केंद्रित करते हुए एग्री सेक्टर की कंपनियों के कंसल्टेंट रूप में मार्केटिंग स्ट्रैटजी बना रहे हैं। इसमें भी उन्हे अच्छी कमाई हो रही है। इसके अलावा उन्होंने हाल ही में आरके एग्री बिजनेस कॉरपोरेशन की शुरुआत कर दी है। इस तरह उन्हे सालाना कुल लगभग सोलह लाख की कमाई हो रही है।

नीम की निम्बौली के बाजार से किसानों और व्यापारियों के अच्छे दिन आने लगे हैं। इस बार के सीजन में यह नौ-दस रुपए रुपए किलो और इसकी गिरी चौदह रुपए किलो तक किसान बेच रहे हैं। सैकड़ो टन निम्बौली हर सीजन में बाजार में पहुंच रही है। नीम उत्पाद तैयार करने वाली कंपनियां हर सीजन में इसकी भारी मात्रा में खरीद कर रही हैं क्योंकि औषधि, कीटनाशक दवा एवं प्रसाधन उत्पाद निर्माता कंपनियों में इसकी भारी खपत हो रही है। अनाज व्यापारी भारी मात्रा में निम्बौली खरीद रहे हैं। निम्बौली का सीजन मई-जून में रहता है। मध्यप्रदेश, गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश में नीम उत्पादों के लिए बाजारों और कारखानों में निम्बौली की भारी डिमांड है। पुणे के रमेश खलदकर की तरह ही धार (म.प्र.) के गांव गुजरी निवासी युवा अभिषेक गर्ग नीम की फैक्ट्री लगा लिए हैं। कई राज्यों को वह नीम का तेल और खली सप्लाई कर रहे हैं।

नीम का तेल डेढ़ सौ रुपए लीटर और खली डेढ़ हजार रुपए कुंतल बेच रहे हैं। उनकी फैक्ट्री में हर साल लगभग पचास टन नीम का तेल और सात सौ टन नीम पाउडर तैयार हो रहा है। अभिषेक ने नीम से खुद का एक बड़ा बिजनेस तो खड़ा कर ही लिया है, वह इसमें तमाम आदिवासियों को रोजगार मुहैया करा रहे हैं। मध्यप्रदेश के हजारों किसान उनकी फैक्ट्री की निबौलियों का इस्तेमाल कर रहे हैं। वह पिछले बारह वर्षों से अपने क्षेत्र के लोगों को बेकार पड़ी निम्बौलियां इकट्ठी कराने, फिर उनसे खरीदने लेने के काम में जुटे रहते हैं। इस कारोबार से उन्हें लाखों की कमाई हो रही है।

कुछ समय से हमारे देश में भी नीम उत्पादों की ओर कई बड़ी कंपनियों का ध्यान गया है। फर्टिलाइजर और केमिकल कारोबारी कंपनी गुजरात नर्मदा वैली फर्टिलाइजर्स (जीएनएफसी) नीम आधारित प्रोडक्ट्स के कारोबार भी करने लगी है। इस कंपनी का मार्केट कैप सात हजार करोड़ रुपये का है और कंपनी में प्रोमोटरों की 41.21 फीसदी हिस्सेदारी है। कंपनी नीम फेस वॉश और हेयर ऑयल उत्पादित करने के साथ ही मच्छरों से बचाव के लिए नीम आधारित प्रोडक्ट भी बाजार में उतार रही है। उसके नीम प्रोडक्ट्स लगभग तीन हजार रिटेल दुकानों में बेचे जा रहे हैं और अभी टारगेट पांच हजार रिटेल दुकानों तक पहुंचने का है। उसने नीम आधारित उत्पाद पोर्टफोलियो से अगले दो वर्षों में पांच सौ करोड़ रुपये के कारोबार का लक्ष्य रखा है। कंपनी को नीम उत्पाद पोर्टफोलियो में ग्राहकों का अच्छा आकर्षण दिख रहा है। नीम साबुन, हेयर ऑयल बाजार में उतारने के बाद जीएनएफसी अब नीम हैंड वॉश, शैंपू एवं अन्य और कई नीम उत्पादों को बाजार में उतारने की योजना बना रही है।

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