गुड़ दुम दुम बाजा बाजे से, गुड़दुम हल्बी में नई इबारत गढ़ेगी: डॉ.राजाराम त्रिपाठी

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गुड़ दुम दुम बाजा बाजे से री गुड़ दुम दुम बाजा बाजे से,,, पारंपरिक गीत के साथ हल्बी में कविता पाठ करते हुए ये उद्गार थे मुख्य अतिथि की आसंदी से हेलीकाप्टर वाले किसान, सुप्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक,जैविक कृषि के अगुआ,ककसाड़ पत्रिका के संपादक, वरिष्ठ साहित्यकार और सम सामयिक चिंतक डॉ राजाराम त्रिपाठी के।

सुदूर आदिवासी क्षेत्र की लोक संस्कृति व साहित्य का हल्बी हिन्दी त्रैमासिक गुड़दुम का विमोचन बईठका कक्ष, दंतेश्वरी हर्बल इस्टेट कोण्डागाँव में किया गया। कार्यक्रम के प्रथम सत्र में हल्बी त्रैमासिक पत्रिका गुड़दुम का विमोचन एवं द्वितीय सत्र में काव्य महोत्सव आयोजित हुआ। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि डॉ राजाराम त्रिपाठी व बस्तर अंचल के अन्य साहित्यकार उपस्थित रहे जिनमें हल्बी के मशहूर साहित्यकार यशवंत गौतम जी, छत्तीसगढ़ हिंदी साहित्य परिषद के अध्यक्ष हरेंद्र यादव जी, छत्तीसगढ़ हिंदी साहित्य भारती के जिलाध्यक्ष उमेश मंडावी जी, छत्तीसगढ़ हिंदी साहित्य परिषद के कोषाध्यक्ष बृजेश तिवारी जी व गुड़दुम पत्रिका के संपादक डॉ विश्वनाथ देवांगन के करकमलों से सम्पन्न हुआ ।

सर्वप्रथम कार्यक्रम की शुरुआत माँ सरस्वती की चित्र पर पूजा अर्चना एवं मां सरस्वती की वंदना से हुई। अँचल की गायिका एवं व्याख्याता श्रीमती देशवती पटेल ‘देश’ जी ने सरस्वती वंदना से सबको रोमांचित कर दिया। कार्यक्रम का संचालन बृजेश तिवारी ने अपने चिर परिचित अंदाज़ में किया। धन बस्तर माटी के गीतों को गुनगुनाते हल्बी में संचालन करना एक नया अनुभव रहा। वरिष्ठ साहित्यकार यशवंत गौतम जी ने हल्बी भाषा की व्यापकता, वर्तनी,शुद्धता और साहित्य में सार्थकता का वर्णन किया व इतिहास के सम्बंध में रोचक जानकारी प्रदान की। उन्होंने कहा कि हल्बी भाषा में वर्तमान में मिलावट आ गई है। लेकिन हल्बी भाषा का शुद्ध रूप कोण्डागाँव अँचल में सुनने देखने को आज भी मिलता है। साथ ही अपनी हल्बी कविता से सबको प्रभावित किया। परिषद के अध्यक्ष और वरिष्ठ साहित्यकार हरेन्द्र यादव जी ने पत्रिका के महत्व के विषय में बतलाया व अपनी प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ी कविता चांटी से सबको खूब हंसाया।

दूसरे सत्र में उपस्थित साहित्यकारों कवियों जिनमें से पत्रिका में रचना प्रकाशित हुई है ने रचना पाठ किया। साथ ही उपस्थित साहित्यकारों ने भी रचना पाठ किया। सर्वप्रथम दिनेश कुमार विश्वकर्मा ने अपनी हल्बी कविता ‘धरतनी तुचो आय’ से समां बांधा व वाहवाही बटोरी।

अँचल के युवा रचनाकार गणेश मानिकपुरी ने हल्बी में कविता के माध्यम से पर्यावरण बचाने का सन्देश दिया व श्रृंगारिक हल्बी गीत ‘मरून जायेंदे अपटी कचाड़ी होऊन’ सुनाकर खूब प्रशंसा बटोरी। वरिष्ठ साहित्यकार गायिका देशवती पटेल जी की रचनाओं को श्रोताओं का बेहतर प्रतिसाद मिला। इसी क्रम में हल्बी विधा में अनवरत योगदान देने वाले पुरुषोत्तम पोयाम जी ने भी अपनी रचनाओं से सबका मन मोह लिया। सनत सोरी कोयतुर ने हिंदी में अपना काव्य पाठ किया जिसे काफी सराहा गया । नवोदित रचनाकार अनिल कुमार यादव जी ने अपनी कविता प्रस्तुत की,जिसे सबका आशीर्वाद मिला ।

साहित्यकार बृजेश तिवारी जी ने समीक्षा के साथ ही सारगर्भित हल्बी में पारंपरिक व वरिष्ठ रचनाकारों की कविता के पंक्तियों,अंशों को साझा किया व हल्बी भाषा के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की । हल्बी भाषा है अथवा बोली इस पर भी उन्होनें विचार व्यक्त किया। आज की युवा पीढ़ी को समाचार पत्र व अन्य पत्रिकाएँ पढ़ने का संदेश दिया । व्यंग्य के सशक्त हस्ताक्षर उमेश मंडावी जी ने शराबियों की व्यथा कथा पर बेहतरीन व्यंग्य रचना पेश किया जिसे सुनकर श्रोता लोटपोट हो गए । पत्रिका के संपादक मुस्कुराता बस्तर ने अपनी बहुचर्चित हल्बी कविता ‘रान बन के नी गोंदा हामके होयसे हानि’ सुनाया। जिसे सबने बहुत सराहा ।

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि डॉ राजाराम त्रिपाठी जी ने हल्बी में गीत सुनाकर सभा में चार चाँद लगा दिए। उन्होंने हल्बी भाषा के विषय में कई रोचक जानकारी दी । अपने व्याख्यान में हल्बी के विभिन्न आयामों पर विशेष व्याख्यान दिए। अंत में अपनी चर्चित कविता ‘मैं बस्तर बोल रहा हूँ’ भी कविता सुनाया जिसमें खूब तालियाँ बजीं ।

कार्यक्रम में कृष्णा जी,शंकर नाग का विशेष सहयोग रहा। अनुराग त्रिपाठी जी शुरू से अंत तक सबका उत्साह वर्धन करते रहे। रमेश पंडा जी,जसमति नेताम जी व रामदेव कौशिक जी की गरिमामयी उपस्थिति रही ।

ककसाड़,छ ग हिन्दी साहित्य भारती व हिन्दी साहित्य परिषद,संपदा, सरगीफूल एवं जिले के साहित्यकारों के आयोजन में यह सफल कार्यक्रम हल्बी भाषा में प्रत्येक विधा हेतु एक नई इबारत गढ़े़गा।

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