सत्यदर्शन साहित्य ….सच्चे मार्गदर्शक बनकर सबके लिए सही व शिक्षाप्रद साहित्य रचे….साहित्यकार विश्वनाथ देवांगन(मुस्कुराता बस्तर) से संपादक कमलेश यादव की खास बातचीत…

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साहित्यकारों की कलम देश-दुनिया समाज को परिवर्तित करने का हुनर रखती हैं। राष्ट्रीय विकास में उनका योगदान सराहनीय होता है। इसी कारण साहित्य हमारे जीवन का अहम हिस्सा है,साहित्यकार भी एक अच्छा आम आदमी होता है,निरंतर कलम की ताकत से समाज की हूबहू तस्वीरें उकेरने व देश दुनिया को बताने के लिये संघर्षरत रहता है,उनके संघर्ष को नकारा नहीं जा सकता तो आइए ऐसी छुपी हुई प्रतिभाओं को उभार कर दुनिया के समक्ष लाएं। तो आइए  एक ऐसी ही साहित्यकार का परिचय करायेंगे जो खासकर बस्तर,एवं छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति,भाषा,बोली,धरोहरों को विश्व मंच पर मुखर होकर रखते आ रहे हैं,कहते हैं कि मंजिल पर चलते हुए बात रखने के लिये किसी को सालों लग जाते हैं और कोई जुनूनी व्यक्ति कम समय में पायदान के अग्रिम पंक्तियों में मेहनत से पहुंच जाता है,बस्तर के ऐसे ही युवा हस्ताक्षर कलमकार गजब के आत्मविश्वास से लबरेज व्यक्तित्व से आपको रूबरू कराने जा रहे हैं :-
*०१. नाम-*
विश्वनाथ देवांगन”मुस्कुराता बस्तर”
*०२. पिता -*
श्री दशरू राम देवांगन,
*माता-*
श्रीमती जानकी देवांगन
*०३. जन्मतिथि-*
02-06-1980
*०४. शिक्षा-*
एम.ए.(हिन्दी साहित्य),कम्प्यूटर(पीजीडीसीए),
*०५.व्यवसाय-*
ग्राम पंचायत सचिव,
*०६. साहित्य सेवा(विवरण)-*
कई राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में हिन्दी,हल्बी,छत्तीसगढ़ी भाषाओं में लिखित कविता,कहानी,गीत,लघुकथा,कहानी,यात्रा वृतान्त,आदि का प्रकाशन,अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में शोध पत्र का प्रस्तुतिकरण,क्षेत्रीय फिल्मों,एल्बमों के लिये गीत रचनाएं,दुरदर्शन और आकाशवाणी से रचनाओं प्रसारण |
*०७. प्राप्त सम्मान-*
प्रमुखत:
1) युवा रत्न सम्मान-2016(छ.ग)
2) यंग क्रिएटर अवार्ड -2016(छ.ग)
3)लोक असर सम्मान -2017(छ.ग.)
4) तुलसी अलंकरण सम्मान -2017(छ.ग.)
5)अग्निशिखा अवार्ड -2017(मुंबई)
6) डॉ.अंबेडकर समता अवार्ड-2018(छ.ग.)
7) रचनाकार सम्मान-2018(छ.ग)
8)साहित्य मनीषी सम्मान-2018(राजस्थान)
9)सारस्वत सम्मान-2019(हरियाणा)
10)नीरज साहित्य श्री सम्मान-2019(मध्यप्रदेश)
11)बस्तरपाति उज्जवल सम्मान -2017(छत्तीसगढ़) आदि |
व अन्य क्षेत्रों में योगदान के लिये सम्मानित |
*०८. लेखन की विधा -*
हिन्दी, हल्बी,छत्तीसगढ़ी भाषाओं में कविता,कहानी,गीत,लघुकथा,यात्रा वृतान्त,खेल,पर्यटन,फिल्म संवाद,बाल साहित्य,शोध पत्र लेखन,यूट्यूब पर कई रचित हिट गीत आदि |
*०९. साहित्य सेवा आपके लिए क्या है?-*
मेरी नजर में साहित्य समाज का दर्पण ही नहीं है,उसके आगे भी बहुत कुछ है,साहित्य मन की आराधना है,पूजा है |
*१०. पसंदीदा साहित्यकार-*
लाला जगदलपुरी,जयशंकर प्रसाद
*११. पता-*
         *११.१ वर्तमान-*
“परमेश्वरी छाया”
ग्राम+पोस्ट- भीरागांव(ब),
तह.+जिला- कोंडागांव(बस्तर)
राज्य- छत्तीसगढ़
पिन- 494226
*११.२ स्थायी-*
“परमेश्वरी छाया”
ग्राम+पोस्ट- भीरागांव(ब),
तह.+जिला- कोंडागांव(बस्तर)
राज्य- छत्तीसगढ़
पिन- 494226
*12- ईमेल.-*
muskuratabastar@gmail.com
*13- प्रकाशित कृतियां-*
कविता संग्रह –
1) काश! मैं कवि होता! (हिन्दी)
2) ककसाड़..आमचो मया परब (हल्बी)l

*………तो आइए जानते हैं,संपादक कमलेश यादव जी से हुई  बातचीत के कुछ और अंश….*

1. किस विधा में लिखना आपको रूचिकर लगता है? क्यों?

जवाब :– हिन्दी साहित्य में अलग – अलग कई विधाएं एक से बढ़कर एक विधाएँ हैं । पर अच्छी लगने,उसमें समय व परिश्रम के बावज़ूद भी मैंने लगभग बहुत सी विधाओं में हाथ आज़माया है । फिर भी मुझे
नई कविताएं लिखना अच्छा लगता है , क्योंकि इसमें मात्राओं के गिनने की झंझट ही नहीं है और इस विधा में जल्दी भी लिखा जाता है,और एक ही दिन में मैंने दो से अधिक कविताएँ भी लिखी हैं । 

2. लेखन की शुरुआत कब और किससे प्रेरित होकर की गई?

जवाब :– मेरे लेखन की शुरुआत छात्र जीवन में ही हो गयी थी । प्राइमरी कक्षाओं में पढ़ी कविताएँ व श्लोक तथा रेडियो से प्रसारित कुछ गीत आदि रुचिकर लगने के कारण जल्दी कंठस्थ हो जाते थे । संभवतः इन रचनाओं ने परोक्ष रूप से मेरे मस्तिष्क में कहीं गहरे प्रभाव छोड़ स्थान ग्रहण कर लिया था , जो आगे चलकर मेरे अंतर्मन में प्रस्फुटित होने लगीं । लंजोड़ा के छात्रावास में रहकर हाई स्कूल व किराये के रूम में रहकर ही लंजोड़ा से हायर सेकेण्डरी करनी पड़ी थी । कक्षा  में मेरी क्लासमेट छात्रा के साथ खेल में जब पैर में चोट पहुंचा तो किसी ने सुध नहीं ली किन्तु एक लेक्चरर श्री दीपक कुमार रायस्त द्रवित हो गए,उन्हें देखकर काश,मैं कवि होता पहली बार लिखा था,फिर ककसाड़ के डॉ राजाराम त्रिपाठी और बस्तरपाति के श्री सनत कुमार जैन ने पैडगरी से महानगर की ओर रूख कराया तो लोक असर के संपादक श्री दरवेश आनंद ने पंख दिये,डॉ नरेश सिहाग ने अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर मार्गदर्शन दिया,माई मनीषा महंत माता पिता बस्तर माटी और आप जैसे सेनापितयों की दुलार से कई संस्थाओं से सम्मानित हो चुका हूँ। संघर्ष का सफर जारी है मुकाम अभी भी बाकी है ।

3. साहित्य उत्थान में आपकी सहभागिता व आपके लेखन का संघर्षों भरा दौर या उसके पीछे छिपा किस्सा?

जवाब :– साहित्य उत्थान में मुझसे जितना संभव हो सका , मैंने सहभागिता कर रहा हूं,कई बार बाधाएं आ रही हैं,संघर्ष जारी है। ककसाड़ व बस्तरपाति में मेरी रचनाएँ प्रकाशित हुई,जिन्होने मुझे राष्ट्रीय पटल पर मान दिलाया। मुझे संघर्षों भरे दौर से आज गुज़रना ही पड़ता है,कई बार मुझसे लोगों को शिकायतें रहती हैं कि मैं ग्राम पंचायत में सचिव होकर भी साहित्य लिखता हूं,सबकी सोंच की सीमाएं और अपना नजरिया है,किसी की सोंच को रोका तो नहीं जा सकता है,उसके पीछे छिपा कोई किस्सा मुझे याद रहा है रहेगा ,क्योंकि मुझे ऐसे किसी संघर्ष का भान ही नहीं ऐसी बात नहीं है,मैं सब समझता हूं,मेरा बस्तर आज भी जल और लड़ रहा है,जल,जंगल,जमीन की लड़ाई में बहुत कुछ खो रहा है,फिर भी मौन सह रहा है,मुस्कुरा रहा है,तभी तो मुस्कुराता बस्तर है , जो साहित्यिक क्षेत्र में हो सकता है मैं भी बस्तर की अस्मिता और हक के लिये कलम के बल लड़ रहा हूं। मैं पत्र – पत्रिकाओं में भी विभिन्न विषयों पर रचनाएँ प्रेषित करने लगा , जो देश – विदेश की पत्र – पत्रिकाओं में प्रकाशित होती हैं, और मैं खुश होकर उन्हें समेट – सँभाल कर रख लेता हूं, हाँ घर में मैंने कभी नहीं बताया था कि मैं लेखन क्षेत्र में अग्रसित हो रहा हूँ । छुपकर कविताएँ लिखता था । रेडियो ब्राॅडकास्टिंग जगदलपुर से मेरी रचनाएँ प्रसारित हुई  तो मैंने अपने पिताजी को सुनवाया,तब वो बहुत खुश हुए,मेरी किताबें विमोचन हुई तो बस्तर कमिश्नर के समक्ष माता पिता खड़े होकर गदगद हुए,मेरे माता पिता को साहित्य और बाकी बातों से ज्यादा लेना देना नहीं है,वो तो हमारे ईश्वर हैं,सब जानते हैं फिर भी अनजान बनते हैं,कल ही मुझे पापा ने कहा बेटा,तुम्हें फिर से पुरूस्कार मिलने वाला है,ये मिलने का सिलसिला कब बंद होगा,मैं कहा ये बंद नहीं होगा। ग्रामीण प्रकृति से मुझे अगाध स्नेह है |

4. आपके पसंदीदा कवि, साहित्यकार या प्रेरणास्रोत ?

जवाब :– मेरे पसंदीदा कवि , साहित्यिककार या प्रेरणास्रोत तो बचपन में पढ़ी रचनाएँ , सुने हुये गीत,जगार गुरूमाय सोनादई,लाला जगदलपुरी,बस्तर के वन,जीवन,संस्कृति, निराला व प्रेमचन्द ही रहे हैं , जिनमें मुझे जीवन्तता , यथार्थ व जीवन के करीब होने का आभास हुआ ।

5. आप नवोदित साहित्यकारों को और नव पीढ़ी , समाज को क्या संदेश व क्या सुझाव देना चाहेंगे ?

जवाब :– वैसे तो मैं समाज में रहकर क़दम – दर – क़दम स्वयं ही सीख रहा हूँ । मैं स्वयं ही अभी बहुत कच्चा हूँ , फिर भी जैसा कि मैं कभी – कभी अनुभव करता हूँ कि आजकल हलके – फुलके मज़ाकिया चुटकुलों व अधकचरे ज्ञान को लोग साहित्य समझने लगे हैं , जो कतई ठीक नहीं है । अत: मैं स्वंय नवोदित हूं फिर भी साहित्यकारों को व नवागन्तुक पीढ़ी और समाज को यह संदेश देना चाहूँगा कि वे स्टेज पर ताली बजैया लेखन से हटकर,गनपतराय जैसा साहित्य लेखन का प्रयास करें,तभी कल कोई मुंशी प्रेमचंद नव पीढ़ी को मिलेगा,सबके सच्चे मार्गदर्शक बनकर सबके लिए सही व उचित मार्गदर्शन के लिए बढ़िया शिक्षाप्रद साहित्य रचें , जिन्हें पढ़कर सभी प्रोत्साहित व प्रेरित हों व देश के लिए समर्पित सच्चे , अच्छे व नेक नागरिक बनें ।

6. साहित्यकार की तलाश कब समाप्त होती है और कैसे ?

जवाब :– साहित्यकार की तलाश तो कभी भी समाप्त नहीं होती , और न ही हो सकती है । उसकी आन्तरिक पिपासा भले ही समाप्त हो जाये , पर वह समाज में रहकर कुछ ऐसी तलाश में रहता है कि वह अपने प्रदत्त हुनर से सबका भला करता चले , ताकि उसका समाज , उसका देश संसार में नेकनीयति व ईमानदारी की मिसाल बन जाये ।

7. साहित्य राजनीति के हर पहलू पर अपनी प्रबलता प्रदान करने की भरकस कोशिश करता है ? आप राजनीति में साहित्य भूमिका सही मानते हैं ?

जवाब :– यह सच है कि साहित्य राजनीति के हर पहलू पर अपनी प्रबलता प्रदान करने की कोशिश तो ज़रूर करता है , पर मेरे विचार से चाहे वह जितना ज़ोर लगा ले , वह गंदी राजनीति को साफ़ – सुथरा जामा नहीं पहना सकता , क्योंकि साहित्य और राजनीति का दूर- दूर तक भाईचारा स्थापित नहीं हो सकता , न उनका एक – दूसरे से कोई वास्ता होता है । साहित्य की रचना किसी प्रकार की राजनीति करने के लिए नहीं होती । एक अच्छे व्यक्तित्व वाला राजनीतिज्ञ साहित्यकार ज़रूर हो सकता है , इसका उदाहरण अपवादस्वरूप हमारे पूर्व स्वर्गीय कविहृदय प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी थे , जो साहित्य में गहरी पैठ रखते थे । साहित्य की रचना मानवतावाद , अपनी भावनाओं को दूसरों तक पहुँचाने , समाज सुधार , देश में परिवर्तन लाने , लोगों को अच्छे कार्यों व क्रियाकलापों के लिए उकसाने व प्रेरित करने के लिए की जाती है । उसे किसी प्रकार की कमाई या नोटों से कुछ लेना – देना नहीं होता ।

8. एक और सवाल कि आप अधिकतर हल्बी में कविता,कहानी व गीत व अन्य विधाओं पर लिखते हैं,ऐसा क्यों..?

जवाब:- हल्बी मेरी धड़कन,बस्तर मेरा दिल है,मुझे हल्बी पसंद है,बस्तर राज की राजभाषा हल्बी है,और रहेगी | हल्बी में गीत,कविताएं,लघुकथा,कहानियां आदि लिखी जायेंगी तभी तो आने वाली पीढ़ी और लोग पढ़ेंगे,बस्तर के लिये अभी बहुत काम बाकी हैं,सफर जारी है,मुकाम अभी बाकी है |

(यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हो तो हमें satyadarshanlive@gmail.com लिखे,
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