कमलेश यादव: जिंदगी बचाने वाले देवदूत डॉक्टर हैं लेकिन हम उन लोगों को भूल जाते है जिन्होंने डॉक्टर के साथ हर पल कदम से कदम मिलाकर चलें है जी हां सभी सहयोगी स्टाफ और खासकर एम्बुलेंस ड्राइवर।आज हम आपकों लेकर जाएंगे नारायणपुर के घनघोर जंगलो के बीच कैसे एम्बुलेंस ड्राइवर की सूझबूझ और चिकित्सक की पूरी टीम ने मरीज की मदद की है।शहरी क्षेत्र में बैठकर जैसा हम सोचते है ठीक भयावह स्थिति है जंगलो के बीच में कार्य करना।सड़क के नाम पर पगडंडी और एम्बुलेंस के नाम पर लकड़ी से बना हुआ कांवर।टूटी फूटी अनजान रास्तो पर चिकित्सीय सुविधाएं पहुंचा पाना रोज एक नया चैलेंज लेकर आता हैं।।
जंगली क्षेत्रो में दिन में आपातकालीन चिकित्सा कॉल आये तो ठीक है जब घुप अंधेरी रात हो तब यह मरीज की जान कैसे बचाएं यह पहली प्राथमिकता हो जाती हैं।आज की वास्तविक कहानी नारायणपुर जिले के धनोरा स्वास्थ्य केंद्र का हैं यहां के डॉक्टर को मरीज के परिजन का रात्रि में कॉल आया डिलीवरी पेसेंट थी डॉक्टरों की टीम के लिए जच्चा बच्चा दोनों को सुरक्षित करना था।अंततः काफी चुनौतियों के बीच नन्हे बालक की किलकारी से चिकित्सालय परिसर गूंज उठा।सभी चिकित्सीय टीम के चेहरे में खुशी थी एक ऐसी खुशी जिंदगी बचानें की जो करोड़ो रूपये के दौलत से भी खरीदी न जा सकें।आइये डॉक्टर जैनेन्द्र शांडिल्य से जाने आपबीती।
धनोरा अस्पताल के चिकित्सा अधिकारी डॉ जैनेंद्र कुमार शांडिल्य जी ने बताया कि 23 दिसंबर शाम 4 बजे मुझे और श्री अविनाश साखरडंडे ( आर एम ए ) और ई आर सी संस्था के सदस्य युवराज पटेल हम सभी को एक अज्ञात नंबर से फोन आया।वो हांफते घबराते हुए कह रहे थे कि सर एक डिलीवरी केस है अचानक दर्द चालू होकर दर्द बहुत ज्यादा बढ़ गया है , महिला को बहुत ज्यादा दिक्कत हो रही है , शायद बच्चा फंस गया है , यहां तक एंबुलेंस आना भी बहुत मुश्किल है पर आप ओरछा मेन रोड के इंडिया गेट तक आप एंबुलेंस भिजवा देंगे तो अच्छा होगा । वहां से 3 कि मी अंदर जंगल अंदर गांव रेंगाबेड़ा से हम कांवड़ में उठाकर महिला को रोड तक लायेंगे सर ।मैंने फोन पर ही महिला की स्थिति जानने की कोशिश की पर वो भी बताता कैसे ? क्योंकि घर से बहुत दूर जाकर नेटवर्क खोज कर वो मुझे काल किए थे ।
सभी की ड्यूटी खत्म होने के बावजूद भी स्थिति को भांपते हुए , हमने सोचा की जल्द से जल्द गाड़ी जितना जंगल अंदर जा पायेगा हम ले जायेंगे तभी हम महिला और बच्चे की जान बचा पाएंगे ।जानकारी में पता चला कि ऐसे जंगल रास्ते में तीन पहिया वाली बाइक एंबुलेंस से वहां पहुंचना थोड़ा कठिन था । फिर हम अपने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र धनोरा के एंबुलेस पायलेट देवू राम पात्रा को कॉल कर स्थिति बताते हुए तुरंत बुलाया , हमारे ड्राइवर अपने ड्यूटी के प्रति बहुत ही सजग और जुझारू हैं , और मैं मानता हूं कि आज के हीरो वही है ।
मैं डॉ. जैनेंद्र कुमार शांडिल्य , युवराज पटेल और देवू राम पात्रा तीनों निकल पड़े ग्राम रेंगाबेडा की ओर जो कि रायनार पंचायत में आता है और धनोरा अस्पताल पर आश्रित ग्राम है । ओरछा मेन रोड के इंडिया गेट में पहुंचने के के बाद पता चला की महिला की स्थिति और भी ज्यादा खराब होती जा रही है , तो हमने जंगल अंदर 3 कि मी एंबुलेंस को घुसा दिया रास्ता बहुत खतरनाक था , दोनो तरफ से हमारा एंबुलेंस जंगल झाड़ी से ढंक चुका था , एंबुलेंस के दोनो ओर से झाड़ियां हमारे गाल को मार रही थी , रास्ते में 3 खाई जैसा नाला पड़ा जिसे पार कर हम चौथे नाले तक पहुंचे जिसे पार करना नामुकिन था । मरीज के परिवार वालों ने भी बिना देरी के कांवड़ में बिठाकर महिला को एंबुलेंस तक लाया । हम आपातकालीन स्थिति में एंबुलेंस में भी डिलीवरी कराना पड़ जाए उसके लिए हम पहले से ही तैयार थे । ऐसा करते हुए हम इस जंगल के रास्ते में बार बार उतर कर , फिर चढ़कर बहुत दिक्कतों का सामना करके प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र धनोरा पहुंचने वाले ही थे । अस्पताल पहुंचने के कुछ दूर पहले ही नेटवर्क आने के बाद मैने हमारे स्टाफ को कॉल करके सब तैयार रखने बोल दिया था । हम अस्पताल 6:30 को पहुंचे ।जिसमें डॉ जैनेंद्र कुमार शांडिल्य , स्टाफ नर्स सविता नेताम , कंचन दुग्गा , राधा सलाम और वार्ड आया लछमती कोर्राम ने टीम वर्क करते हुए पूरी स्थिति को सुधार कर महिला की सुरक्षित डिलीवरी करवाई । 7:30 बजे 2.6 किलो के खूबसूरत लड़के ने जन्म लिया । गर्भवती महिला का नाम राधा कश्यप , पति सुमित कश्यप जो रेंगाबेड़ा , ग्राम पंचायत रायनार , तहसील और जिला नारायणपुर के निवासी हैं । अभी मां और बच्चा दोनो स्वस्थ हैं ।