क्या आप जानते है जाने-अनजाने में कलर थेरेपी का इस्तेमाल कर रहे हैं…रंगों का अस्तित्व तब से है जब से पृथ्वी बनी जबकि यह विधा कुछ हजार साल ही पुरानी है…माना जाता है कि रंग शरीर के कई तत्वों को बैलेंस करने में मदद करते हैं

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क्या आप हर सोमवार को सफेद और बृहस्पतिवार को पीले रंग के कपड़े पहनते हैं? इंटव्यू में जाते वक्त लाल साड़ी या पिंक शर्ट आपकी पहली पसंद होती है? क्या आपने भी पुखराज, माणिक, मोती जैसे महंगे रत्नों की अंगूठी पहनी हुई है? अगर हां तो आप जाने-अनजाने में कलर थेरेपी का इस्तेमाल कर रहे हैं।

जरा सोचिए, ये रंग हमारी जिंदगी में इस तरह से शामिल हैं कि हम हर दिन के हिसाब से कपड़ों के रंगों को चुनते हैं। यही नहीं, हर खास मौके पर लकी कलर को पहनना भी पसंद करते हैं। कलर्स के इस साइंस को कई मशहूर हस्तियां भी अपना रही हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जीवन पर लिखी नीलांजन मुखोपाध्याय की किताब ‘Narendra Modi: The man, the times’ में जिक्र है कि नरेंद्र मोदी काले रंग के कपड़े नहीं पहनते।

रंगों का अस्तित्व तब से है जब से पृथ्वी बनी। जबकि यह विधा कुछ हजार साल ही पुरानी है। रंगों की दुनिया कैसे पहचानी गई, कैसे कलर थेरेपी से रोगों का इलाज होने लगा, आज हम आपको इसके बारे में बताने जा रहे हैं कलर थेरेपी को ‘क्रोमोथेरेपी’ भी कहते हैं। माना जाता है कि रंग शरीर के कई तत्वों को बैलेंस करने में मदद करते हैं। इस थेरेपी में रंगों के साथ ही रोशनी का भी इस्तेमाल होता है। कलर थेरेपी में 2 तरीके अपनाए जाते हैं।

पहला तरीका: इंसान को एक रंग को इस उम्मीद से देखने के लिए कहा जाता है कि वह रंग उसके शरीर की निगेटिविटी को दूर करते हुए उन्हें सेहतमंद बना रहा है। आप सूरज की रोशनी, नदी, अपने घर की बेडशीट, पर्दे और दीवारों के पेंट को तो रोज देखते होंगे। लेकिन क्या आपको पता है कि इन चीजों के रंग कलर हीलिंग के काम आते हैं।

दूसरा तरीका: इसमें किसी खास रंग को शरीर के उस हिस्से में टच कराया जाता है जिसमें समस्या है। यह कपड़ों, स्टोन या खाने-पीने की चीजों से हो सकता है। अगर आप क्रिकेट प्रेमी हैं तो आपने गौर किया होगा कि मोहिंदर अमरनाथ हमेशा अपने पास लाल रंग का रुमाल रखते थे। वीरेंद्र सहवाग हमेशा लाल रंग का रुमाल हेलमेट के अंदर पहनते थे या जेब में रखते थे। ‘मुल्तान का सुल्तान’ वे तभी कहलाए थे, जब उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ टेस्ट क्रिकेट में तिहरा शतक लगाया था।

कलर थेरेपिस्ट मानते हैं कि रंग आंखों और त्वचा के जरिए शरीर में प्रवेश करते हैं। हर रंग की अपनी अलग तरंग यानी वेव लेंथ और फ्रीक्वेंसी होती है। हर रंग अलग-अलग लोगों में अलग तरीके से काम करता है और इससे बीमारी को दूर करने में मदद मिलती है।

सूरज के रंग हमें एनर्जी देते हैं। घास पर चलकर हरे रंग से एनर्जी मिलती है। हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में डायरेक्ट या इनडायरेक्ट तरीके से कलर थेरेपी का इस्तेमाल कर रहे हैं। हम जिस रंग की चीज खा रहे हैं, पी रहे हैं या कोई रंग पहन रहे हैं तो उससे भी हमें एनर्जी मिलती है। माना जाता है कि हमारे शरीर में 7 चक्र होते हैं। ये 7 रंग से बने हैं। ऐसे ही हमारा ऑरा भी 7 रंगों से बना होता है। चक्र शरीर के अंदर हैं और ऑरा शरीर के बाहर होता है।

कलर थेरेपी में उस ऑरा के रंग से इलाज होता है, जहां समस्या हो। जैसे अगर किसी को पेट में दिक्कत है यानी शरीर में पीले रंग की कमी है तो मरीज को इस रंग का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करने को कहा जाएगा।

डॉ.हरलीन कौर के अनुसार शरीर में जिस रंग की कमी हो, वही रंग आपको अपनी ओर आकर्षित करता है। आपके साथ ऐसा कई बार होता होगा कि एक ही रंग के कपड़े आपके पास ज्यादा हो जाते हैं। या वही एक रंग आपको अपने आसपास ज्यादा दिखने लगता है। इसका मतलब यह है कि आपका ऑरा ऑटोमैटिक हील हो रहा है। आपके फेवरेट कलर इसी वजह से बदलते रहते हैं।

नीला और हरा रंग स्ट्रेस से दूर रखता है। जिन लोगों को भूख नहीं लगती, उनका चटख रंगों से इलाज किया जाता है। मौसम बदलते ही जिन्हें डिप्रेशन घेर लेता है (इसे सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर कहा जाता है), उन्हें चटख रंगों से थेरेपी दी जाती है। इसके लिए पीले और नारंगी रंग का भी इस्तेमाल किया जाता है। जो लोग सुस्त होते हैं उनकी लाल और पीले रंग से एनर्जी बूस्ट की जाती है।

‘क्रोमोथेरेपी’ का इतिहास करीब 4000 साल पुराना है। तब ‘फोटोथेरेपी’ यानी रोशनी और अलग-अलग रंगों को दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। इस तरह के इलाज को प्राचीन मिस्र, यूनान, चीन और भारत में अपनाया गया।

प्राचीन मिस्र में इसकी सबसे पहले शुरुआत हुई। मिस्र के लोगों का मानना था कि ‘क्रोमोथेरेपी’ भगवान थोथ (Thoth) ने बनाई है। तब लाल, नीले और पीले रंग से इलाज होता था। मिस्र के बाद यूनान में इसके सबूत मिले। दोनों जगहों पर इलाज के लिए रंग-बिरंगे पत्थर, मिनरल्स और क्रिस्टल का इस्तेमाल होता। उस समय सूरज की रोशनी को भी हीलिंग के लिए इस्तेमाल किया जाता था। उस दौर में लोगों को रंगों की शक्ति पर गहरा यकीन था।

पारसी चिकित्सक इबन सिना जिन्हें Avicenna भी कहते थे उन्होंने कलर थेरेपी को नया आयाम दिया। उन्होंने एक चार्ट बनाया जो रंगों के तापमान और शरीर से जुड़ा था। उन्होंने इस सिद्धांत पर काम किया कि लाल रंग खून में जोश लाता है और नीला व सफेद रंग दिमाग को कूल रखता है। पीला रंग मांसपेशियों के दर्द से छुटकारा दिलाता है।

अमेरिका के Augustus Pleasonton ने 1876 में एक किताब लिखी। ‘The Influence of the Blue Ray of the Sunlight and of the Blue Color of the Sky’ नाम की इस किताब के अनुसार कलर थेरेपी में सबसे पहले केवल नीला रंग इस्तेमाल किया गया। इस रंग से चोट लगने, जलने और मांसपेशियों में खिंचाव आने पर इलाज किया जाता था।

ऑरा एक किस्म की ऊर्जा है, जिसे एनर्जी भी कहते हैं। हर व्यक्ति के शरीर से एनर्जेटिक फ्रीक्वेंसी (ऊर्जावान आवृत्तियां) निकलती हैं। इसे आप शरीर की इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड भी कह सकते हैं। यही ऊर्जा अच्छा, बुरा या खतरा महसूस कराती है।

ऑरा आम इंसान को नजर नहीं आता। इसे ऑरा रीडर ही देख सकते हैं। जब किसी व्यक्ति को प्रॉब्लम हो तो उसके ऑरा में ब्लॉकेज, काले धब्बे या क्रैक नजर आते हैं। जिस जगह पर ये धब्बे होते हैं, वहां के चक्र के रंग के हिसाब से इलाज होता है। यह इलाज रंग पहनने से, उस रंग का खाना खाने से और मेडिटेशन (ध्यान) से होता है।

ऑरा रीडिंग के 3 तरीके हैं:
मेडिटेशन: ऑरा रीडर ध्यान लगाकर व्यक्ति के आसपास फैला ऑरा देखते हैं।
मेटल टूल्स: तांबे, पीतल या अन्य धातु से बने कुछ उपकरण की मदद से ऑरा नापा जाता है।
ऑरा कैमरा: इसमें व्यक्ति के आसपास से निकल रही रंगबिरंगी रोशनी को पढ़ा जाता है।
ये तो हुई ऑरा को देखने और समझने की बात। अब जानते हैं कि कलर थेरेपी किस तरह ऑरा को हील करती है।

मेडिटेशन के जरिए मरीज के चक्रों को जागृत किया जाता है और उन्हें बैलेंस किया जाता है। जो व्यक्ति पॉजिटिव होता है उसका ऑरा बहुत बड़े आकार का होता है और जो निगेटिव लोग होते हैं उनका ऑरा छोटा और डार्क कलर्स का होता है। डॉ. हरलीन के अनुसार ऑरा ठीक होने में कम से कम 21 दिन लगते हैं लेकिन यह व्यक्ति की इच्छाशक्ति पर निर्भर करता है। कई लोगों को ऑरा हीलिंग में महीनों भी लग जाते हैं

ऑरा को पढ़ने के लिए Kirlian Camera बना है। 1939 में रूस के टेक्नीशियन सिमॉन किरलिएन (Simon KIRLIAN) ने महसूस किया कि जब वह हाई वोल्टेज एरिया में फोटोग्राफिक प्लेट पर काम कर रहे थे तो उनकी अंगुलियों से रोशनी निकली। यह देख उन्होंने Kirlian Camera बनाया जो ऑरा पढ़ने वाला पहला कैमरा था।

रेकी एक्सपर्ट प्रणिता देशमुख ने बताया कि जैसे बॉडी की भीतरी जांच के लिए MRI मशीन फोटो लेती है, उसी तरह ऑरा को चेक करने के लिए Kirlian Camera होता है। इससे भी एक फोटो जेनरेट होती है जो इंसान के शरीर से निकल रही ऊर्जा को अलग-अलग रंगों में दिखाती है।

कलर थेरेपी रंगीन कांच की बोतल में रखा पानी पीने से भी होती है। इस टेक्नीक में कांच की रंग बिरंगी बोतल का इस्तेमाल किया जाता है। या कांच की बोतल पर सेलोफेन (Cellophane) नाम की रंगीन शीट लगा दी जाती है। यह शीट लकड़ी या कॉटन से बनी होती है।

शरीर में जो कमी हो, उस रंग की बोतल से पानी पीने को कहा जाता है। इस बोतल को प्लास्टिक या लोहे के ढक्कन से नहीं बल्कि लकड़ी के कॉर्क से बंद किया जाता है। पानी की इस रंगीन बाेतल को जमीन की जगह लकड़ी के पटरे पर (जिसमें लोहे की कील न हो) सूरज की रोशनी में कम से कम 8 घंटे रखा जाता है।

रेकी हीलिंग से जुड़ीं प्रणिता देशमुख कहती हैं कि अगर किसी को एनर्जी से हीलिंग सीखनी है तो उन्हें चक्र भी समझने पड़ेंगे। कलर थेरेपिस्ट 2 तरह के होते हैं। एक एनर्जी आधारित हीलिंग करते हैं और दूसरे साइकोलॉजी पर आधारित होते हैं। कलर थेरेपिस्ट जो एनर्जी को आधार बनाते हैं, वह चक्र की ऊर्जा को रंगों के जरिए ठीक करते हैं। जैसे अगर ‘आज्ञा चक्र’ प्रभावित है और इंसान को माइग्रेन हो तो उन्हें नीले रंग के क्रिस्टल पहनने और कपड़े या खाने में भी नीले रंग को शामिल करने को कहा जाएगा।

वहीं, साइकॉलोजी कलर थेरेपी में व्यक्ति को एक खाली शीट पर ड्राइंग बनाने को कहा जाता है। इसमें रंगों के इस्तेमाल से इंसान की मानसिकता पहचानी जाती है।डॉ. हरलीन कौर कहती हैं कि कहा जाता है ‘जहां चाह, वहां राह।’ कलर थेरेपी का आधार भी यही विश्वास है। अगर आप सकारात्मक सोच रखते हैं तो काफी हद तक अपने कष्टों पर काबू पा सकते हैं।

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