मन में कुछ बातें थीं, मैंने सोचा भावनाओं के रंगों को कैनवास पर उकेरता ही हूँ, कुछ शब्दों के सहारे आज अपनी बात साझा करूं…कभी कभी नियति हमे कुछ फ़रिशतों से मिलवा देती है…चित्रकार बसंत साहू

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बसंत साहू:मैंने अपनी जिंदगी में 4 दशक से भी ज्यादा वसन्त देखे है ऐसे वसन्त जिन्होंने हरेक परिस्थितियों में मुझे अडिग बनाये रखा।मेरा नाम बसंत साहू है हां वही बसंत जिसे आप ऋतुओं का राजा भी कहते है इस मौसम की सुन्दरता और चारों ओर की खुशियाँ, मस्तिष्क को कलात्मक बनाती है और आत्मविश्वास के साथ नए कार्य शुरु करने के लिए शरीर को ऊर्जा देती है।जिंदगी में इससे बड़ी और क्या बातें हो सकती है कि पिछले 25 सालों में बिस्तर पर पड़ा हुआ हूं लेकिन इस बात की परवाह किये बगैर बीते दिनों से कहि अधिक हर रोज मुझे एक असीम ऊर्जा मिलती है।शरीर का 90% से ज्यादा भाग का मूवमेंट न होते हुए भी मैंने पेंटिंग्स को कैरियर नही जिंदगी बनाया।ऐसी जिंदगी जो मेरी सांसों की हरेक गति से जुड़ी हुई है।

मन मे कुछ बातें थी सोचा कैनवास में तो उतारता ही हूँ कुछ शब्दों के जरिये आज आप सभी से साझा करूँ।कैनवास पर मैंने सैकड़ो पेंटिंग्स को जीवंत रूप दिया है असल मे इसके पीछे का श्रेय जाता है भिलाई में रहने वाले मेरे प्रिय मित्र चंद्रप्रकाश वर्मा को जिन्होंने मेरी चित्रकारी को हमेशा प्रोत्साहित किया है।समय समय पर मुझे अमूल्य रूपी आर्थिक सहयोग दिए है जिसके बल पर मैंने अपनी भावनाओं को पेंटिंग्स के माध्यम से आप सभी के समक्ष रख सका हूं।भीड़ भरी दुनिया मे जहा कलाकार अपनी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है कला के कुछ ही कद्रदान बच गए है।

मुझसे कई दिव्यांग कलाकार भाई जुड़े हुए है।आप बहुत अच्छा कर रहे हो पेंटिंग्स तो बहुत अच्छी है बहुत ही बढ़िया और शानदार कलाकारी है ऐसे ढ़ेरो कमेंट मुझे रोजाना मिलते है।पर धरातल में सहयोग मिल नही पाता हालांकि मुझे शिकायत न पहले थी और न ही आगे रहेगी।जिंदगी की आपाधापी में सभी व्यस्त है लेकिन समाज का एक ऐसा भी वर्ग है जो सक्षम है उन्हें मदद के लिए आगे आना चाहिए।बोलते हुए अच्छा नही लगता पर ऐसे ढ़ेरो कलाकार है जिसकी पेंटिंग्स तो बन जाती है पर कोई खरीदार ही नही मिल पाता।

मैंने तो अपनी जिंदगी पूरी गुजार ली है सब कुछ ईश्वर के हाथों पर सौप दिया है अलबत्ता आने वाली पीढ़ियों की चिंता सताती रहती है कहि कला और कलाकार की जिंदगी गुमनामी में न खो जाए।दर्द तो ज्वार भाटा की तरह उबाल मारती है।विडंबना यह है इस समाज मे जो चीजे जिसके लिए बनी हुई है उन्हें उसका लाभ नही मिल पाता।माना कि उत्साहित करना अच्छी बात है लेकिन उत्साहित होना ही मंजिल नही है उसके आगे भी तो कुछ और है।बस सबके हिस्से की खुशी सभी को मिले यही ईश्वर से प्राथना करता हूँ।

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