“कहानी
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन अपने संतुलित विचार और वाणी के लिए प्रसिद्ध थे। वे अपनी विद्वत्ता का प्रदर्शन अकारण कभी नहीं करते थे। एक दिन वे बहुत प्रसन्न थे।
डॉ. राधाकृष्णन के साथ वाले लोगों को उन्हें प्रसन्न देखकर बहुत आश्चर्य हुआ। सभी ने सोचा कि शायद प्रसन्नता का कारण ये होगा कि वे भारत के दूसरे राष्ट्रपति बनाए गए हैं। फिर लोगों ने सोचा कि ये तो पहले उपराष्ट्रपति भी थे। आज इतने प्रसन्न क्यों हैं? इतने बड़े गणराज्य का राष्ट्रपति बनने पर क्या इन्हें अहंकार आ गया है? एक इतना बड़ा शिक्षाविद् विद्वान पद से इतना प्रसन्न हो गया।
किसी ने उनसे पूछा, ‘डॉक्टर साब आप बहुत प्रसन्न दिख रहे हैं। क्या बात है?’
कुछ ही समय पहले उनके राष्ट्रपति बनने की घोषणा हुई थी। डॉ. राधाकृष्णन ने उस व्यक्ति से कहा, ‘पद तो आते-जाते रहते हैं। मैं इसलिए प्रसन्न हूं, क्योंकि मेरे पास एक पत्र आया है और वो है बर्ट्रेंड रसेल का। वे बिट्रेन के गणितज्ञ और दर्शनशास्त्री हैं। साहित्य के लिए उन्हें नोबल प्राइस भी मिला है।’
उस पत्र में लिखा था, ‘भारत ने अपने राष्ट्रपति के रूप में एक शिक्षाविद् को चुना है। जब एक विद्वान व्यक्ति किसी पद पर बैठता है तो उस पद की गरिमा और बढ़ जाती है।’ विद्वत्ता इतना बड़ा पुरस्कार पाएगी, यह देखकर रसेल बहुत संतुष्ट थे।
राधाकृष्णन बोले, ‘मैं आज इस पत्र को पढ़कर बहुत प्रसन्न हूं। इसलिए मेरे मन में भाव है कि अपनी विद्वता को, अपने ज्ञान को सदैव संजोकर रखना चाहिए। हर व्यक्ति के अंदर एक शिक्षक है और हर शिक्षक के भीतर एक देवता है। उसकी रक्षा करनी चाहिए। मेरी प्रसन्नता की वजह यही है।’
सीख – अपनी विद्वत्ता पर भरोसा रखें, एक न एक दिन उसे उचित सम्मान जरूर मिलता है।”