10 महिला शक्ति की प्रेरणादायी कहानी….आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाली महिलाओं ने समाज में सफलता के नए प्रतिमान गढ़े हैं…मन में संकल्प धारण कर समर्पित हो तो इस समाज में उसे वह सब कुछ प्राप्त हो सकता है जो वह मन में ठान ले

1259

गोपी साहू:आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाली महिलाओं ने समाज में सफलता के नए प्रतिमान गढ़े हैं। यह बदलाव समाज में नीचे से ऊपर तक देखा जा रहा है। आज हम ऐसी ही सफल महिलाओं की कहानियां आप तक पहुंचाने का प्रयास किया है। कहा जाता है नारी नारायणी का रूप है अगर वह मन में संकल्प धारण कर समर्पित हो तो इस समाज में उसे वह सब कुछ प्राप्त हो सकता है जो वह मन में ठान ले। ऐसी ही संदेश पद जीवन की स्वामिनी कुछ नारायणीओं से सजा है आज का यह अंक।शिक्षा,चिकित्सा, प्रशासन,पुलिस,खेल,कृषि से लेकर प्रकृति संरक्षण तक हर क्षेत्र में अंचल की मातृ शक्ति ने अपने बुलंद इरादों से सफलता का आसमान छुआ है।

अपूर्वा त्रिपाठी
छत्तीसगढ़ के सबसे ज्यादा पिछड़े अंचल बस्तर के कोंडागांव जिले के ग्राम चिखलपुटी और आसपास के गांवों की करीब 400 आदिवासी महिलाएं आज ‛मां दंतेश्वरी हर्बल समूह’ से जुड़ी हैं। इस संस्थान की गुणवत्ता नियंत्रण तथा राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय मार्केटिंग का कार्य अपूर्व त्रिपाठी देखती हैं. बौद्धिक संपदा अधिकार अधिनियम की जानी-मानी विशेषज्ञ अपूर्वा को पच्चीस लाख रुपए सालाना के पैकेज के ऑफर भी मिले, लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा कर अपनी जन्म भूमि बस्तर की आदिवासी महिलाओं की संस्था के साथ जुड़कर निस्वार्थ भाव से निशुल्क सेवा दे रही हैं।

श्रीमती जाम बाई बिसेन
वनांचल ग्राम भाजी डोंगरि छुईखदान राजनांदगांव उम्र 60 वर्ष है लेकिन समाज के प्रति इनकी जज्बा काबिलेतारीफ है।कोरोना काल मे अपने पंचायत में जितने भी कोविड पॉजीटिव मरीज है सभी के परिवार के लिए दैनिक जीवन की सामग्रियां की व्यवस्था की है।ग्राम सरपंच है और स्वयं मितानिन का कार्य भी करती है।घर घर जाकर स्वास्थ्य के प्रति लोगो को जागरूक करते रहती है।निश्चित ही इनकी सेवा कार्य प्रसंशा की पात्र है।

सविता देवांगन
समाज सेविका के रूप में कार्य कर रही है।कोरोना काल मे एक परिवार में घर की मुखिया चल बसे उनकी शादी योग्य बिटिया थी।स्वर्गीय पिता दिहाड़ी मजदूरी करते थे।यह महिला बिटिया की शादी की जिम्मेदारी अपनी संस्था जय सहकार जनकल्याण समिति के द्वारा उठाई।पूरे रीति रिवाज और उत्साह के साथ बिटिया की शादी हुई।सविता देवांगन जी निःशुल्क ऑनलाइन कोचिंग सेंटर भी कोरोना काल मे शुरू की है।आज भी मदद का सिलसिला अनवरत चल रहा है।

आम बाई जंघेल
दूरस्थ वनांचल क्षेत्र साल्हेवारा राजनांदगांव में ANM के रूप में अपनी सेवाएं दे रही है।कोरोना काल मे निरन्तर सेवा कार्य जज्बे के साथ चलते रहा है।बहुत ही सह्रदय से मरीजो की देखभाल करती है।इनके यहां मरीजो को संगीत के माध्यम से इलाज किया जाता है।सेवा को अपने जीवन का कर्तव्य और लक्ष्य दोनो बनाकर चलने वाली आम बाई नर्स के रूप में पूरे क्षेत्र में ख्याति प्राप्त है।

डॉ. शोभना तिवारी
छत्तीसगढ़ की रायपुर से डॉ. शोभना तिवारी होमियोपैथी चिकित्सक है।कोरोना काल मे मरीजो का इलाज तो की है साथ ही आज वह जरूरतमन्दों को निःशुल्क चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराती है।सेवा का भाव इतनी सुंदर है कि इन्होंने 2018 में सरकारी नौकरी से इस्तीफा देकर लोगो की मदद में लगी हुई है।उनका कहना है कोई उनके पास गम्भीर बीमारी से पीड़ित मरीज ठीक होकर जाते है जो खुशी मिलती है वह करोड़ो कीमत देकर भी खरीदी नही जा सकती।

संध्या यादव
छोटे से ग्राम खोरपा अभनपुर जिला रायपुर की संध्या यादव ने कोविड के समय अपनी गांव में मोहल्ले क्लास की जिम्मेदारी उठाई है।यह महिला दिहाड़ी मजदूरी करके अपने परिवार का भरण पोषण करती है।ग्राम सरपंच से बात करके पंचायत के सभी बच्चों की शिक्षा की जिम्मेदारी कोरोना काल मे ली है।और स्वयं अभी पढ़ाई कर रही है।पति भी दैनिक मजदूरी करने जाते है।इनके हौसले और जज्बे को काफी लोगो ने सराहा है।खुद अभाव में रहकर शिक्षा की क्रांति छोटे छोटे बच्चों में फैला रही है।इसके अलावा बच्चों की स्वास्थ्य जागरूकता में भी कार्य करती है।

कु.कविता पात्रे (रूरल हेल्थ ऑर्गनाइजर)
अति नक्सल प्रभाव क्षेत्र अबूझमाड़ नारायणपुर में अपनी स्वास्थ्य सेवाएं दे रही है।कोरोना काल मे गांव वालों को स्वास्थ्य को लेकर समझाना काफी चुनौती भरा काम है।आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र जहा इन्हें नाव से पार करके जाना पड़ता है।इनके कार्यक्षेत्र में बाइक भी चलाने में दिक्कत है।और माओवादी हमले के डर के बावजूद यह अपनी ड्यूटी बेफिक्र होकर करती है।कोरोना और वैक्सीन से सम्बंधित जानकारियां आदिवासियों के बीच जाकर निर्भयता के साथ देना काबिलेतारीफ है।इस क्षेत्र को नक्सलियों का गढ़ भी कहा जाता है।

झुलेश्वरी साहू
छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के छोटे से गांव भैसमुंडी (कुरूद से 10 किमी) में निवास है।पति का कोरोना से निधन हो गया है।छोटी सी बिटिया है जिसकी पढ़ाई का जिम्मा स्वयं उठाई है।पति थे तब छोटे से कृषि केंद्र से आजीविका चलाते थे लेकिन उनके जाने के बाद स्वयं को आगे लाना पड़ा।कोरोना से दुनिया उजड़ गई लेकिन हार नही मानी है।संघर्ष करते हुए बच्चे की अच्छी परवरिश ही एकमात्र ध्येय है।अपने कार्य को ईश्वर पर समर्पित कर कार्य कर रही है।

खैरुन निशा
अपनी बिटिया को खोने के बाद कोरोना काल मे सैकड़ो मरीजों के लिए मदद के लिए आगे रही।कोरोना काल के अलावा आज भी कोई मरीज इन्हें सहायता के लिए सम्पर्क करते है हर सम्भव मदद के लिए तैयार रहती है।गांव गांव जाकर लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक कर रही है।

श्रीमती धीमेश्वरी शांडिल्य (महिला कमांडो)
कोरोना काल अपने गांव में एक एक मुट्ठी चांवल दाल इकट्ठा कर गांव वालों की मदद की है।मास्क वितरण सेनेटाइजर की व्यवस्था भी इन्ही के माध्यम से किया गया।इनके गांव में पुलिस की सारी व्यवस्था यह महिला कमांडो करती है।छत्तीसगढ़ सरकार ने इनके किये हुए रचनात्मक कार्यो को देखकर आरक्षक के समकक्ष दर्जा दिया है।

Live Cricket Live Share Market

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here