दुनिया भर में भारत का नाम रोशन करने वाले एक्वाकल्चरल साइंटिस्ट डॉक्टर अजय कुमार सोनकर जिन्होंने क़रीब तीन दशक पहले कल्चर मोती बनाने वाले देशों में भारत का नाम शामिल कराने का करिश्मा कर दिखाया था.बीते तीन दशक के अपने करियर में सोनकर ने मोती उगाने को लेकर अलग अलग तरह की उपलब्धियां हासिल की हैं.
डॉक्टर सोनकर ने टिश्यू कल्चर के ज़रिए फ़्लास्क में मोती उगाने का काम कर दिखाया है. सरल शब्दों में कहें तो सीप के अंदर जो टिश्यू होते हैं उन्हें बाहर निकालकर कृत्रिम वातावरण में रखकर उसमें मोती उगाने का करिश्मा उन्होंने किया है. यानी मोती उगाने के लिए सीप पर से निर्भरता ख़त्म हो गई है और इसके साथ ही उस सीप के लिए ज़रूरी समुद्री वातावरण की भी कोई ज़रूरत नहीं रही.
समुद्री जीव जंतुओं की दुनिया पर केंद्रित साइंटिफ़िक जर्नल ‘एक्वाक्लचर यूरोप सोसायटी’ के सितंबर, 2021 के अंक में डॉक्टर अजय सोनकर के इस नए रिसर्च को प्रकाशित किया गया है. इस रिसर्च के मुताबिक डॉक्टर अजय सोनकर ने अंडमान निकोबार द्वीप समूह के सीपों के टिश्यू से मोती उगाने का काम प्रयागराज के अपने लैब में किया है.”
“भारत के स्वतंत्र शोधकर्ता वैज्ञानिक डॉ. अजय कुमार सोनकर को ‘पद्मश्री’ सम्मान देने की घोषणा की गई है। गणतंत्र दिवस के मौके पर दिए जाने वाले राष्ट्रीय नागरिक सम्मानों में से एक, ‘पद्मश्री’ के लिए डॉ. अजय कुमार सोनकर के नाम की घोषणा विज्ञान एवं इंजीनियरिंग क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट वैज्ञानिक उपलब्धियों की वजह से की गई है। इन उपलब्धियों में अत्याधुनिक टिशू कल्चर के माध्यम से मोती बनाने की तकनीक शामिल है। उनके कार्यों के बारे में कई प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक पत्र-पत्रिकाओं में अध्ययन पत्र प्रकाशित हुए हैं।
सोनकर ने अपनी कार्य भूमि अंडमान और निकोबार में काले मोती बनाकर विश्व के वैज्ञानिक समुदाय का ध्यान आकर्षित किया था। इलाहाबाद में जन्मे डॉ. सोनकर ने समुद्र से दो हजार मील दूर समुद्री सीप में टिशू कल्चर तकनीक से मोती बनाने की तकनीक विकसित की है।