देश की पहली महिला अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला की तस्वीरें देखकर अनगिनत आंखों में चांद पर जाने का सपना टिमटिमाता है। भारतीय बेटियों का यह सपना अब सच साबित हो सकता है। दरअसल, कल्पना चावला की याद में उनके दोस्तों ने एक फैलोशिप शुरू की है, जिसके तहत विज्ञान के क्षेत्र में प्रतिभाशाली भारतीय बेटियों को चांद पर ले जाया जाएगा। इसके बाद अंतरिक्ष में महिलाओं का दबदबा बढ़ सकता है। फिलहाल, कुल अंतरिक्ष यात्रियों में से 89 फीसदी पुरुष और 11 फीसदी महिलाएं हैं।
कल्पना चावला के दोस्तों ने उनकी सोच को साकार करने के लिए ‘चावला प्रोजेक्ट फॉर इनोवेशन, एंटरप्रेन्यारिज्म एंड स्पेस स्टडीज’ पहल शुरू की है। इसके जरिये विज्ञान के क्षेत्र में भारत की चुनिंदा और प्रतिभाशाली महिलाओं को अंतरराष्ट्रीय मंच पर मौका मिल सके। बता दें कि कल्पना चावला कहती थीं- अगर आपके पास सपना है तो उसे साकार करने को कोशिश करें। इससे फर्क नहीं पड़ता कि आप औरत हैं, भारत से हैं या कहीं और से।
किन महिलाओं को मिलेगा इसका लाभ
इस फैलोशिप का उद्देश्य उन भारतीय महिलाओं को मौके उपलब्ध करवाना है, जो साइंस, मेडिसिन, मटेरियल्स, सैटेलाइट टेक्नोलॉजी और स्पेस से जुड़े विषयों में पोस्ट ग्रेजुएशन कर चुकी हैं। जो महिलाएं अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला की तरह सोचती हैं और उन्हीं की तरह शिक्षा व हुनर को लेकर जुनूनी हैं। वे कल्पना की सोच और अपने सपने को इस फैलोशिप के जरिए पूरा कर सकती हैं।
पहली बार कब अंतरिक्ष पहुंची महिला यात्री?
12 अप्रैल, 1961 को सोवियत संघ के अंतरिक्ष यात्री यूरी गागरिन ने अंतरिक्ष जाने वाले दुनिया के पहले व्यक्ति होने का तमगा हासिल किया। इसके दो साल बाद ही सोवियत संघ की वेलेंटीना तेरेश्कोवा दुनिया की पहली महिला अंतरिक्ष यात्री बन गई। उन्होंने 16 जून, 1963 को अंतरिक्ष के लिए उड़ान भरी। तेरेश्कोवा 48 बार पृथ्वी की परिक्रमा कर तीन बाद धरती पर लौटी थीं। उन्होंने दो रिकॉर्ड अपने नाम किए। पहला- दुनिया की पहली महिला अंतरिक्ष यात्री और दूसरा- 71 घंटे अंतरिक्ष में रहीं थीं। यह समय अंतरिक्ष में सबसे ज्यादा देर तक रहने का रिकॉर्ड था।
60 साल में सिर्फ 65 महिलाएं गईं अंतरिक्ष
तेरेश्कोवा के बाद दुनिया भर की महिलाओं ने अंतरिक्ष की सैर पर जाने का सपना देखा, लेकिन करीब 20 वर्षों तक इस क्षेत्र में किसी और महिला की एंट्री नहीं हुई। 1980 के दशक के बाद महिलाएं इस दिशा में सक्रिय हुई है और रूस की ही बाला स्वेतलाना सवित्सकाया अंतरिक्ष पहुंची। वह न सिर्फ दूसरी महिला अंतरिक्ष यात्री थीं बल्कि अंतरिक्ष में चहलकदमी करने वाली पहली महिला भी बनीं अंतरिक्ष में किसी इंसान के जाने के 60 साल बाद भी गिनी-चुनी महिलाएं ही स्पेस में उड़ान भर सकीं हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, अब तक 566 लोगों ने अंतरिक्ष की यात्रा की, जिनमें से 65 यानी 11.5 फीसदी महिलाएं हैं। इनमें भी सबसे अधिक अमेरिकी महिलाएं शामिल हैं।
भारत की इन बेटियों ने की अंतरिक्ष की सैर
अंतरिक्ष में इतिहास बनाने वाली बेटियों में भारतीय मूल की कल्पना चावला, सुनीता विलियम्स और सिरिशा बांदला का नाम शामिल है। देश की पहली महिला अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला की 1 फरवरी, 2003 को धरती पर लौटते एक हादसे में मौत हो गई थी।
नोएडा स्थित गवर्नमेंट पीजी कॉलेज के फिजिक्स डिपार्टमेंट में सेवारत एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. आईडी सिंह बताते हैं, मेरे अपने स्टूडेंट और सेमिनार में मिलने वाले प्रतिभाशाली बच्चे स्पेस साइंस में कुछ कर गुजरने की बात करते हैं। कई छात्र मुझसे कहते हैं कि अगर मदद मिले तो वे चांद पर जाना चाहते हैं। ‘चावला प्रोजेक्ट फॉर इनोवेशन, एंटरप्रेन्यारिज्म एंड स्पेस स्टडीज’ ऐसी ही छात्राओं के सपनों को पूरा कर सकता है। यह पहल भारत की बेटियों के लिए पंख मिलने जैसी साबित हो सकती है।
कैसे बनें अंतरिक्ष यात्री?
अंतरिक्ष यात्री यानी एस्ट्रोनॉट बनने के लिए इंजीनियरिंग, बायोलॉजिकल साइंस, फिजिकल साइंस, कंप्यूटर साइंस या गणित में बैचलर डिग्री होनी चाहिए। साथ ही तीन साल का प्रोफेशनल अनुभव होना चाहिए। प्रतिभागियों को नासा का एस्ट्रोनॉट फिजिकल एग्जाम पास करना होता है। चयन में कई अन्य स्किल जैसे- स्कूबा डाइविंग, जंगल की सैर, लीडरशिप और कई भाषाओं का ज्ञान आपके लिए मददगार साबित होगा। नासा जिन लोगों का एस्ट्रोनॉट के तौर पर चयन करता है, उन्हें प्रशिक्षण के लिए बुलाया जाता है।