कमलेश यादव:अच्छी नौकरी,बड़ी गाड़ी और प्यारा सा घर सभी का सपना होता है।ज्यादातर युवाओं की पहली पसंद नौकरी है।हो भी क्यो नही बस जिंदगी एक सेफ मोड में आ जाती है।इतिहास और वर्तमान की कुछ समानताओं में से एक है बेरोजगारी।वजह साफ है बढ़ती जनसंख्या और रोजगार की कमी।आज हम आपसे मिलवाएंगे ऐसे युवा से जिन्होंने किसानी में अपना कैरियर बनाया है।असल मे छत्तीसगढ़ जिसे धान का कटोरा कहा जाता है यहां के युवा परम्परागत खेती और आधुनिक खेती में सामंजस्य बनाकर काम कर रहे है।संस्कारधानी राजनांदगांव जिले के कुछ दूरी में बसा छोटा सा गांव भँवरमरा जहा युवा कृषक देवानन्द सिन्हा रहते है उनका मानना है कि,किसी भी काम को सुनियोजित तरीके से करने से सफलता मिलती है।वही अन्य युवाओं को भी कृषि कार्य के लिए प्रेरित कर रहे है।
फिलहाल,वह अपने 8 एकड़ पैतृक जमीन पर धान,गेहूँ जैसे परम्परागत फसलों के अलावा,मौसमी सब्जियों की खेती करते हैं।आज जब, हर क्षेत्र में कुछ न कुछ नए प्रयोग किए जा रहे हैं, तो फिर खेती में क्यों नहीं? ऐसा इसलिए क्योंकि ज्यादातर किसान नई फसलों के साथ प्रयोग करने से डरते हैं। उनका डर थोड़ा लाजमी भी है। अगर महीने भर की मेहनत के बाद, उगाई फसल की सही कीमत किसान को न मिले,तो उन्हें काफी नुकसान उठाना पड़ता है।
तेजी से हो रहे शहरीकरण के कारण शिक्षित युवा कृषि कार्यों से दूर होकर शहरों की चकाचौंध की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इन सबके बीच ग्रामीण परिवेश में रहने वाले ऐसे युवा भी हैं, जो पढ़े लिखे होने के बावजूद नौकरी के लिए भागदौड़ करने की बजाय खेतों की ओर लौट रहे हैं।वास्तव में उद्यमी हमारे ब्लड में बसा हुआ है।खेती फाउंडेशन है जीवन चक्र का,इसमे युवाओं का रुझान निश्चित ही सुनहरे भविष्य की दिशा तय करेगी।