भूली बिसरी पगडंडी……वो गांव का शुक्रवार

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वक्त कितनी तेजी से बदलता है,कल जो कुछ हमारे साथ था वो आज कही गुम सा गया है.गांव की वो गलियां,जहां बच्चो की चिल्लम, गुल्ली डंडे का खेल,पनघट पर पनिहारिनों के कदमो से आती पायलों की छुंन-छुंन की
आवाज और चौपालों पर बड़े-बुजुर्गों की सलाह-मशवरे आज गुम हो गए है।दोस्ती पर निसार करने वाले दोस्त,और गुम हो गए है-घड़ी साज,”छतरी बनवालो”की आती आवाजे,गुमटियां,ब्रेड वाले भैया की साइकल में लगे बीप की आवाज,सब कुछ कही खो से गए है.शादियों में रस्मो रिवाजो के शुभ-मांगलिक राग और धुनें, ये भी डी. जे.की शोर में खो गए.हा वक्त बदल गया है जिंदगी ने नए समीकरण बना लिए है,मनोवैज्ञानिक कहते है कि बदलाव जरूरी है परिवर्तन से ही विकास होता है.लेकिन भुलाए नही भूलती पुरानी पगडंडियां।

बदलाव कुदरत का नियम है,बहाव शुद्धता की निशानी है,इसलिए नदी साफ सुथरी होती है,और ठहरा हुआ पानी सड़ांध का आभास कराता है.शायद इसीलिए बदलना प्रकृति का नियम है.और वक्त के साथ चलना जिंदगी की निशानी है.वक्त के साथ बहुत कुछ बदल जाता है.मगर अफसोस किसलिए???हर मोड़ पर जब कुछ खो जाता है,तभी उसी राह पर कुछ नया मिल भी जाता है.इसी खोने और कुछ नया संजोने-मिलने को साथ लेते चले.पुराने का अहसास दिलो में समाया रहे और नए का स्वागत करते रहे.तरक्की बेहतरी के लिए होती है….

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