
उन्हें हफ्ते में तीन बार डायलिसिस कराना पड़ता है… इसके बावजूद उन्होंने अपने जैसे अन्य पीड़ितों की मदद के लिए एक आशावादी अभियान शुरू किया है. वह उनकी काउंसलिंग करती है और उन्हें जीने की उम्मीद देती है…पढ़िए बेहद आत्मविश्वासी और जिंदगी को जिंदादिली से जीने वाली लड़की मुक्ता श्रीवास्तव की प्रेरक कहानी
कमलेश यादव: बेहद आत्मविश्वासी और जिंदगी को जिंदादिली से जीने वाली लड़की मुक्ता श्रीवास्तव . छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में रहने वाली मुक्ता के जीवन मे सब कुछ अच्छा चल रहा था,अच्छी नौकरी और अपने करियर से संतुष्ट थी। अचानक जिंदगी ने करवट ली और उन्हें पता चला कि गंभीर बीमारी (किडनी रोग ) ने दस्तक दे दी है . साहसी मुक्ता ने प्रकृति द्वारा दी गई इस चुनौती को भी सहजता से स्वीकार कर लिया . हफ्ते में 3 बार उन्हें डायलिसिस से गुजरना पड़ता है। इसके बावजूद उन्होंने अपने जैसे अन्य पीड़ित लोगों की मदद के लिए एक आशावादी अभियान शुरू किया है. वह उनकी काउंसलिंग करती है और उन्हें जीने की उम्मीद देती है। उनका मानना है कि,अगर उम्मीद का दीया रोशन है तो सब कुछ खत्म होने के बाद भी नई शुरुआत की जा सकती है।
आपबीती
मुक्ता श्रीवास्तव ने सत्यदर्शन लाइव को बताया कि 7 साल पहले जब मुझे पता चला कि मैं किडनी की गंभीर बीमारी से पीड़ित हूं तो मैं बहुत उदास हो गई थी। जिंदगी का क्या होगा कुछ समझ नहीं आ रहा था. अकेली और चुप रहने लगी थी . वह खुद से सवाल पूछती रही कि मुझे क्या हुआ है। फिर मैंने जीने का एक बड़ा कारण बना लिया, अब मैं पीड़ित लोगों की हर संभव मदद करने लगी । मैं उन्हें इलाज से जुड़ी सावधानियां और बचाव दोनों के बारे में जागरूक करती हूं. मैं सभी पीड़ितों में भगवान को देखती हूं। एक तरह से मुझे मदद करके संतुष्टि महसूस होती है.
मैं खुद से वादा करती हूं
वह कहती हैं, ‘जब भी मैं खुद को आईने में देखती हूं तो बात करती हूं और खुद से वादा करती हूं कि जिंदगी बस इसी पल में है। आज और अभी आपका है और आपको इसका भरपूर उपयोग करना है। जो हो गया उस पर दुखी रहने से बेहतर है कि नई संभावनाओं के बीज बोएं। और मैं हर चीज के लिए भगवान को धन्यवाद देती हूं।
सबसे कठिन समय में दृढ़ता
मैं मुंबई, दिल्ली और वेल्लोर के बड़े अस्पतालों में इलाज के लिए गई । मैं जानती थी कि आपके कार्य ही आपका दीपक हैं, वही आपको आगे की राह दिखाएंगे। अंततः सत्य को स्वीकार कर मैंने अंतः करण की शक्ति जागृत की और आज मैं खुश हूं। हमें जीने के लिए केवल एक ही जीवन मिला है। आशा, शक्ति और दृढ़ता सबसे कठिन समय में भी पाई जा सकती है और यह आपको आगे बढ़ने में मदद करेगी।
माता-पिता की बातें मार्ग प्रशस्त करती हैं
बीमारी या किसी अन्य कठिन परिस्थिति से जूझ रहे किसी भी व्यक्ति के लिए सकारात्मकता ही ठीक होने की कुंजी है। मेरे लिए, यथासंभव सामान्य जीवन जीने में सक्षम होना आश्चर्यजनक है। मेरे पिता श्री विष्णु प्रसाद जी एवं माता श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव ने मुझे हमेशा एक अच्छा इंसान बनने के लिए प्रेरित किया है। पिता कहते हैं कि हर किसी की जिंदगी और प्राथमिकताएं अलग-अलग होती हैं, इसलिए किसी से कंपेयर करना कभी भी सही नहीं होता।
बहुमुखी प्रतिभा की धनी
चित्रकारी और गायन मेरा शौक रहा है। जब भी मैं फूल खिलते हुए देखती हूं और वसंत में पत्तों का गिरना या बरसात में बादलों की गड़गड़ाहट सुनती हूं तो नाचने लगती हूं। मैं तितलियों से बात करती हूं और कभी-कभी मैं खुद को हवा में उड़ते हुए महसूस करती हूं। मैंने ट्रैकिंग भी की है. मैं बैडमिंटन की नेशनल प्लेयर भी रह चुकी हूं. आज भी मैं हमेशा कुछ नया करने की कोशिश में रहती हूं.
हर पल को नई चुनौती के रूप में स्वीकार करने वाली मुक्ता श्रीवास्तव का दिल खुशी और उत्साह से भरा है। अपने सार्वभौमिक सकारात्मक दृष्टिकोण के माध्यम से, वह सभी के लिए एक प्रेरणा हैं और उनकी जीवनशैली हमें सिखाती है कि जीवन को उत्साह और निरंतर प्रयास के साथ जीना हमेशा संभव है। सत्यदर्शन लाइव मुक्ता श्रीवास्तव के जज्बे को सलाम करता हैं।
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