गोपी साहू:शिक्षक दिवस यानी शिक्षकों का सम्मान दिवस ‘आचार्य देवो भवः’ का बोध वाक्य सुनकर हम बड़े हुए हैं। यह दिवस पूरे देश में प्रतिवर्ष 5 सितंबर को मनाया जाता है। यह हमारे देश के द्वितीय राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म दिवस है। राधाकृष्णन ने चालीस वर्षों तक शिक्षण कार्य किया था। वह महान शिक्षक तो थे ही, साथ में शिक्षक और छात्रों के उत्तम समन्वयक भी थे। उन्होंने अपने जन्म दिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने की इच्छा व्यक्त की थी, जिसका उद्देश्य शिक्षकों को सम्मान दिलाना था।
डॉ. राधाकृष्णन शिक्षा और शिक्षक जगत के मसीहा थे। उनके विचार थे कि यदि देश का प्रत्येक शिक्षक अपने धर्म का पालन करे तो पूरा देश अशिक्षा और अज्ञान से मुक्त हो जाएगा। शिक्षक अर्थात गुरु का अर्थ है ‘अंधकार दूर करने वाला’। ‘गु’ का अर्थ है ‘अंधकार’ और ‘रु’ का अर्थ है ‘मिटाने वाला’। आदर्श शिक्षक अपने शिष्यों के हृदय में अच्छे संस्कारों और ज्ञान का सृजन करता है।
वही कुप्रवृतियों का नाश करता है, इसलिए वह भगवान के समान पूजनीय और वंदनीय है। संत कबीर मानते हैं कि गुरु का दर्जा ऊपर वाले से भी बड़ा है, क्योंकि गुरु के कारण ही परमात्मा को पाया जा सकता है। हमारे देश में गुरु-शिष्य परंपरा के अनेकानेक उदाहरण मिलते हैं।
गुरु द्रोणाचार्य-अर्जुन, चाणक्य-चंद्रगुप्त मौर्य और रामकृष्ण परमहंस-विवेकानंद परस्पर संबंधों की अनूठी मिसाल हैं। इसी तरह विश्व के महान दार्शनिक सुकरात के शिष्य प्लेटो और प्लेटो के शिष्य अरस्तु को हम सब जानते हैं। गुरु-शिष्य की परंपरा इस तरह गंगा की अविरल धारा की तरह बहती चली आ रही है।
वर्तमान में गुरु-शिष्य परंपरा का स्वरूप काफी बदला है। इंटरनेट का जमाना आ गया है। ऑनलाइन पढ़ाई भी विद्यार्थियों को प्रदान की जा रही है और ई-लर्निंग में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से विद्यार्थियों को पढ़ाया जाता है। इसका सबसे बड़ा लाभ सैकड़ों किलोमीटर दूर बैठे विद्यार्थियों को हो रहा है। वे ऑनलाइन गुरु से मिल सकते हैं और ई-टीचिंग कर सकते हैं। ई-शिक्षक और ई-टीचिंग से सबसे बड़ा लाभ यह है कि हम किसी भी विषय को बार-बार पढ़कर समझ सकते हैं, याद कर सकते हैं।ब्लॉग,सोशल नेटवर्किंग, वेबसाइट, वीडियो फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब, कंप्यूटर, लैपटॉप, टैबलेट, स्मार्टफोन भी ई-शिक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।