मातृसत्तात्मक समाज…भारत में विभिन्न संस्कृतियों के लोग रहते हैं…उनकी वेशभूषा,खानपान और मान्यताएं एक दूसरे से अलग हैं…एक ऐसी जनजाति के बारे में बताने जा रहें हैं जहा महिलाप्रधान है…इस जनजाति में वंशीय परंपरा माता के नाम पर चलती है

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भारत विविधताओं का देश है।यहां पर धर्म,जाति,रंग, विचार जैसे अनेकों स्तर पर आपको विभिन्नता देखने को मिलेगी। यही खास बात भारत को दूसरे देशों से अलग बनाती है। भारत में विभिन्न संस्कृतियों के लोग रहते हैं। उनकी वेशभूषा, खानपान और मान्यताएं एक दूसरे से अलग हैं। इसी क्रम में हम आपको एक ऐसी जनजाति के बारे में बताने जा रहें हैं, जहां पर शादी होने के बाद दुल्हन, दूल्हे के घर नहीं जाती बल्कि दूल्हा, दुल्हन के घर पर आकर रहता है। यह प्रथा मेघालय की खासी जनजाति में विद्यमान है। यह एक मातृसत्तात्मक समाज है। इस जनजाति में वंशीय परंपरा माता के नाम पर चलती  है।

इस समुदाय में माता-पिता की संपत्ति पर पहला अधिकार महिलाओं का होता है। लड़का और लड़की को विवाह हेतु अपना जीवन साथी चुनने की पूरी आजादी दी जाती है। खासी समुदाय में किसी भी प्रकार के दहेज की व्यवस्था नहीं है, जो कि एक खास बात है इस समुदाय की। महिलाएं अपनी इच्छा पर किसी भी वक्त अपनी शादी को तोड़ सकती हैं। परिवार की सबसे छोटी बेटी पर सबसे अधिक जिम्मेदारी होती है। वही घर की संपत्ति की मालिक होती है। खासी लोगों की संख्या तकरीबन 9 लाख के करीब है। इनकी ज्यादातर आबादी मेघालय में रहती है। इनकी आबादी का कुछ हिस्सा असम, मणिपुर और पश्चिम बंगाल में रहता है। यह समुदाय झूम खेती करके अपनी आजीविका चलाता है। संगीत के साथ इसका एक गहरा जुड़ाव है। ये विभिन्न तरह के वाद्य यंत्रों जैसे गिटार, बांसूरी, ड्रम आदी को गाते बजाते हैं।

ये लोग पहले म्यंमार में रहते थे। इसके बाद इस जनजाति ने वहां से अप्रवास किया और भारत के पूर्वी असम में आकर रहने लगे। इसके बाद धीरे-धीरे इनकी आबादी मेघालय में आकर बसने लगी। इस जनजाति की भाषा खासी है। खासी जनजाती के अलावा मेघालय की अन्य दो जनजातियों (गारो और जयंतिया) में भी यही प्रथा है। इन दोनों जनजातियों में यही व्यवस्थाएं चलती है। यहां पर भी शादी के बाद दूल्हा, अपनी सासू मां के घर पर जाकर रहता है। अमूमन भारत में यह देखा जाता है कि लड़का होने पर ज्यादा खुशी मनाई जाती है। वहीं खासी जनजाति में लड़की होने पर खुशी मनाई जाती है।

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