छोटी सी पहल किस तरह बड़े परिवर्तन में बदल सकती है, यह एक परिवार ने कर दिखाया है। भोपाल के बीज व्यवसायी राजकुमार कनकने ने बेटे प्रांशु की शादी में कागज के निमंत्रण कार्ड देने के बजाय पौधों के गमले देकर मेहमानों को आमंत्रित किया था। इसके पीछे उनकी मंशा यह थी कि यह प्रेम और शादी लोगों को याद रहे। आमतौर पर कागज के शादी के कार्ड लोग फेंक देते हैं, लेकिन गमला न सिर्फ घर में संभालकर रखेंगे, बल्कि जब-जब उसे देखेंगे पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी उन्हें याद आएगा। हुआ भी यही। न सिर्फ मेहमानों ने बल्कि दूसरे लोगों ने भी इस पहल की खुले मन से सराहना की। फिर क्या था..राजकुमार के छोटे बेटे पीयूष ने लॉकडाउन के दौरान इसी का कारोबार करने का फैसला कर लिया। खुद की नर्सरी खोली और वेबसाइट बनाई। जान-पहचान वालों से संपर्क किया। धीरे-धीरे इसके ऑनलाइन आर्डर भी मिलने लगे।
संदेश लिखे गमलों की मांग
मध्य प्रदेश में ही नहीं उत्तर प्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र, बंगाल, गुजरात, राजस्थान और छत्तीसगढ़ तक होने लगी। पिछले चार महीने में पीयूष छह हजार लोगों को ऐसे गमले बेच चुके हैं, वह भी बाजार से कम कीमत पर। नया स्टार्टअप खड़ा करते हुए 20 लाख रुपये कमाई भी हुई है। शादी ही नहीं हर खुशी के लिए गमले पीयूष शादी ही नहीं हर खुशी के मौके के अलग-अलग संदेश लिखे गमले बेच रहे हैं। चीनी मिट्टी के इन गमलों में तुलसी, एलोवेरा, मनी प्लांट, फेस लिली जैसे पौधे और बोनसाई होते हैं। प्रांशु ने बताया कि शुभ कार्य, जन्मदिन व दीपावली पर करीब तीन हजार गमले भोपाल समेत देश के विभिन्न शहरों में पहुंचाए गए। लोग गुलदस्तों या मिठाई की जगह पौधों के गमले देना पसंद कर रहे हैं, ताकि उपहार यादगार बन सके।
परिवार मिला तो आया आइडिया, बदल दिया नजरिया
प्रांशु बताते हैं कि शादी के चार महीने बाद ही लॉकडाउन लग गया था। पीयूष तब हैदराबाद में एमबीए कर रहा था। वह भी घर आ गया। जब पिता, बड़े भाई प्रतीक के साथ बैठे तो नया काम करने का विचार आया। अनलॉक होने पर पीयूष ने होशंगाबाद रोड पर नर्सरी खोली। परिवार में बीज का कारोबार पहले से होता था इसलिए परेशानी नहीं आई। पीयूष विभिन्न किस्म के पौधे पुणे से मंगवाते हैं। उन्हें यहां बड़ा किया जाता है
जल शक्ति मंत्रालय ने ट्वीट कर की सराहना
केंद्र सरकार के जल शक्ति मंत्रालय ने हाल ही में प्रांशु व उनकी पत्नी सुमि की मेहमानों को गमले भेंट करते हुए तस्वीर ट्वीट करके नवाचार की सराहना की है। महाराष्ट्र का एक एनजीओ पीयूष को ‘पर्यावरण रत्न’ से सम्मानित भी कर चुका है। दस दिन तक पौधा जिंदा रहे ऐसी पैकिंग पीयूष बताते हैं कि ई-कॉमर्स वेबसाइट की तरह ही वे भी पौधों की ऑनलाइन डिलीवरी करते हैं। डिलीवरी के दौरान पौधों के टूटने या खराब होने का डर भी रहता है, इसलिए ऐसा पैकिंग बॉक्स तैयार किया गया है जिनमें आठ से 10 दिन तक पौधा जिंदा रहे। ट्रांसपोर्ट कंपनी के माध्यम से डिलीवरी की जाती है।