होली पर्व हमें परम्पराएं, प्रकृति में बदलाव, जीवन के मूल्य और न जाने कितना कुछ जानने का मौक़ा देता है

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बच्चे जीवन के हर क्षण को उत्सव की तरह मनाते हैं और जब मौक़ा हो होली का तो इनका उत्साह देखते ही बनता है। रंग, पिचकारी, पानी से भरे गुब्बारे और बच्चे, इन्हीं सब से तो होली लगती है। लेकिन बच्चों को होली का असल अर्थ बताना बहुत ज़रूरी है। होली क्यों मनाई जाती है, इसका क्या महत्व है, इससे जुड़े पौराणिक तथ्यों से हमें क्या सीखना चाहिए व सही रूप में इसे कैसे मनाया जाए, ये सभी बातें बच्चों को समझाना हमारी ज़िम्मेदारी है।

त्योहार की अहमियत
हर त्योहार के पीछे परम्परा की कहानी होती है। त्योहार केवल मौज-मस्ती, लोगों से मिलने-जुलने व अच्छे पकवान खाने के लिए ही नहीं होते बल्कि इनका संबंध हमारे शरीर, स्वास्थ्य, और ऋतुओं के हम पर पड़ने वाले प्रभावों से भी है। इसे ख़ुद समझना और बच्चों को समझाना ज़रूरी है। बच्चे हर चीज़ का कारण जानना चाहते हैं। इसलिए त्योहार के पीछे का वैज्ञानिक और ऋतु संबंधी कारण और इतिहास उन्हें बताएं।

होलिका दहन कैसे हो
अब होली नाम-मात्र की है। न पहले-सी रौनक़ दिखती है, न लोगों के बीच वह अपनापन। हुल्लड़ के कारण लोग घरों में अंदर रहते हैं। आप बच्चों को सिखाएं कि होली को सही तरीक़े से कैसे मनाएं। सबसे पहले बात करें होलिका दहन की। बच्चों को बताएं कि गोबर के कंडों की होली जलाएं जिससे प्रकृति का संरक्षण होता है। कंडों की होली में कपूर,नीम की सूखी पत्तियां भी डालें, ताकि हवा भी शुद्ध हो सके।

प्रकृति मनाती है होली
होली केवल हम नहीं मनाते बल्कि पूरी प्रकृति मनाती है। टहनियों पर खिलते टेसू के फूल होली का संकेत देते हैं, पतझड़ के बाद नए पत्ते भी ये उत्सव मनाते हैं। होली नए सृजन की भी प्रतीक है, क्योंकि पतझड़ के बाद होली से ही प्रकृति फिर हरी-भरी हो जाती है। होली मनाने का वैज्ञानिक कारण भी है। सर्दियों में हमारी त्वचा रूखी और बेजान हो जाती है और पतझड़ के मौसम में ये रूखापन और बढ़ जाता है। पहले के समय में प्राकृतिक रंगों से होली खेली जाती थी, उसके बाद जब नहाया जाता था तो त्वचा की मृत कोशिकाएं व रूखापन दूर हो जाता था।

होली की कथाएं
बच्चों को ये बताना बहुत ज़रूरी है कि कोई भी त्योहार क्यों मनाया जाता है। होली के पीछे कई कथाएं हैं। जैसे हिरण्यकशिपु व उसकी बहन होलिका की कथा। होलिका दहन का अर्थ बुराइयों को ख़त्म कर अच्छाई की जीत होना है। दूसरी कथा वृंदावन में कृष्ण और गोपियों की होली की है, जिससे होली प्रेम का प्रतीक बन जाती है। तीसरा कारण है फसल पक जाने पर किसान को होने वाली ख़ुशी को त्योहार के रूप में मनाना। इसलिए होली सफलता और समृद्धि की प्रतीक है। ये सभी कारण बच्चों को कहानियों के रूप में सुनाएं, ताकि वे इन्हें गहराई से आत्मसात कर सकें।

ख़ुद बनाएं रंग
अब बात आती है रंगों की। आजकल रसायनिक वाले रंगों की प्रधानता है, इस वजह से माता-पिता बच्चों को होली खेलने से मना करते हैं। लेकिन बच्चों को होली खेलने से रोकने के बजाय उनके साथ मिलकर प्राकृतिक रंग बनाएं। इस समय टेसू के फूल आसानी से मिल जाते हैं तो उनका रंग, हल्दी और मुलतानी मिट्टी मिलाएं, चंदन के पाउडर में चुकंदर का रस मिलाकर उसका रंग तैयार करें। इससे वे रंग भी खेल सकेंगे और त्वचा को नुकसान भी नहीं पहुंचेगा।

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