कहते हैं कि अगर कुछ करने की लगन और जुनून हो तो आप कुछ भी कर सकते हैं। कुछ ऐसा ही इतिहास रच दिया है, स्पेन की रहने वाली मारिया रूईस ने। वह भारत में संस्कृत सीखने आईं थीं और वह यहां के विश्वविद्यालय में टॉपर बन गईं। हाल ही में उनकी इस उपलब्धि के लिए उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने सम्मानित किया। आज हर कोई उनकी चर्चा कर रहा है।
संस्कृत भाषा में दिलचस्पी और लगाव के चलते मारिया करीब आठ साल पहले स्पेन से भारत आईं थीं। अपने इस जुनून के लिए उन्होंने अपनी अच्छी खासी एअर होस्टेस की नौकरी छोड़ दी थी। तब उन्होंने शायद सोचा भी नहीं होगा कि जिस विषय को वो पढ़ना चाहती हैं, उसमें वह पारंगत होने के साथ सर्वोच्च स्थान प्राप्त करेंगी और उन्हें इसके लिए स्वर्ण पदक मिलेगा। आज हर तरफ उनके संस्कृत प्रेम की चर्चा है।
स्पेन की रहने वाली मारिया रूईस ने वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से पूर्व मीमांसा विषय में आचार्य यानी परास्नातक (एमए) की परीक्षा में पहला स्थान प्राप्त किया और पिछले दिनों विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में उन्हें यूपी की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने स्वर्ण पदक प्रदान किया। पूर्व मीमांसा को मुख्य विषय के तौर पर बहुत कम छात्र चुनते हैं। मारिया की मानें तो भाषा सीखने में बचपन से ही मेरी दिलचस्पी थी। भाषा विज्ञान के शिक्षकों से पता चला कि संस्कृत में काफी अनुसंधान हैं और मेरे सवालों के तमाम जवाब संस्कृत में मिल सकते हैं। तब मैंने संस्कृत पढ़ने का निश्चय किया। आज भारत में भले ही बेहद कम लोग संस्कृत पढ़ रहे हों और कॅरिअर की दृष्टि से इसे बहुत फायदे वाली भाषा न माना जाता हो लेकिन मारिया का मानना इसे अलग है। वो कहती हैं, मैंने रोजगार के लिए पढ़ाई नहीं की है बल्कि ज्ञान प्राप्त करने के लिए इसे सीखा है। आपको ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है तो बाकी चीजें कुछ मायने नहीं रखतीं। रोजगार की दृष्टि से भी देखें तो संस्कृत में भी अवसरों की भरमार है, यह केवल हमारा भ्रम है कि यह कॅरिअर के लिए उपयुक्त नहीं।
अब शोध करने का है मन, गुरुकुल में रहती हैं
मारिया अब आगे संस्कृत में ही पीएचडी करना चाहती हैं और फिलहाल भारत में ही रहना चाहती हैं। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान वह शहर में ही स्थित एक गुरुकुल में अपनी कुछ साथियों के साथ रहती हैं।
इस गुरुकुल में यूरोप के कई देशों के अलावा दूसरे देशों की छात्राएं भी रहती हैं। मारिया पारंपरिक भारतीय वेश-भूषा में यहां रहती हैं और उनकी भी दिनचर्या गुरुकुल के अन्य छात्र-छात्राओं जैसी ही है। मारिया बताती हैं कि भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत वो भारत आईं और पहले उन्होंने संस्कृत के सर्टिफिकेट कोर्स में दाखिला लिया। यहां आने से पहले वो स्पेनिश, जर्मन और अंग्रेजी भाषाएं तो जानती थीं लेकिन हिन्दी और संस्कृत नहीं जानती थीं। आज ये दोनों भाषाएं भी मारिया फर्राटेदार बोलती हैं। अपने अध्यापकों और अन्य छात्र-छात्राओं के साथ वह संस्कृत में ही संवाद करती हैं।
बच्चों को पढ़ाती हैं संस्कृत, सिखाती हैं योग
वाराणसी के वैदिक गुरुकुल में जहां मारिया रहती हैं वहां करीब पचास बच्चे भी रहते हैं। इन बच्चों को संस्कृत पढ़ाने के अलावा वह उन्हें ध्यान, संध्या और योग भी सिखाती हैं। मारिया कहती हैं, सुबह तीन बजे से उन लोगों की दिनचर्या शुरू हो जाती है और फिर ग्यारह बजे पढ़ाई के लिए विश्वविद्यालय जाती हैं।
लगन हो तो सब कुछ किया जा सकता है
मारिया कहती हैं कि अगर व्यक्ति में लगन हो तो वह सब कुछ कर सकता है। उन्हें भाषा सीखने में मेहनत जरूर करनी पड़ी लेकिन बहुत दिक्कत नहीं हुई। मारिया कहती हैं, लोगों को लगता है कि क, ख, ग से शुरू करके आचार्य तक की पढ़ाई कैसे कर ली। पहले मुझे भी यही लगता था कि यहां की भाषा और संस्कृत सीख पाऊंगी या नहीं, लेकिन सब कुछ बहुत आसानी से हो गया। विश्वविद्यालय के गुरुओं ने मेरी बहुत मदद की। उनका साथ न मिलता तो यह सब संभव नहीं था।
200 सालों में पहली बार कोई विदेशी टॉपर
विश्वविद्यालय में साहित्य और दर्शन विषय पढ़ाने वाले डॉक्टर देवात्मा दुबे कहते हैं कि मारिया ने जिस पूर्व मीमांसा विषय में आचार्य की डिग्री हासिल की है, उसे भारत में भी बहुत कम छात्र पढ़ते हैं। वह कहते हैं कि विश्वविद्यालय के दो सौ सालों के इतिहास में पहली बार किसी विदेशी छात्र ने टॉप किया है। एक रोचक बात यह है कि पूर्व मीमांसा विषय जो कि वैदिक कर्मकांडों और दर्शन पर आधारित विषय है, बेहद कठिन है, लेकिन मारिया ने न केवल मीमांसा के गूढ़ तत्वों को समझा बल्कि उसमें सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया। यह बेहद ही शानदार है।
मारिया का परिवार स्पेन में रहता है
मारिया का परिवार स्पेन में ही रहता है। उनके दो भाई हैं, जिनमें एक इंजीनियर हैं और एक अभी पढ़ाई कर रहा है। बनारस आने से पहले मारिया ब्रिटिश एअरलाइंस में एअर होस्टेस थीं और उन्हें अच्छी तनख्वाह मिलती थी। वाराणसी आने से पहले उन्होंने स्पेन से सोशल वर्क में ग्रेजुएशन की डिग्री ली थी। वाराणसी में पहले उन्होंने शास्त्री यानी ग्रेजुएशन और फिर आचार्य की डिग्री हासिल की।