घर के बरामदे की बैठक पर लाठी के सहारे बैठी दादी अपनी नातीनों को जोर-जोर सेे आवाज लगा रही हैं,बेटा,उधर मत जाना,इधर आ जाओ,गेट से बाहर नहीं जाना |
अरी,सुनती हो सीमा,मुनिया,स्मिता बेटी इधर आ जाओ,गेट से बाहर जाना मना है,पापा आयेंगे तो डांटेंगे,यहीं सामने बरामदे के बाहर आंगन में खेलो,गेट से बाहर नहीं जाना बेटी |
स्मिता,मुनिया और सीमा तीनों बच्चियां दादी की बात सुनकर गेट अंदर आती हैं,और मन ही मन दादी पर कुढ़ती हैं कि बाहर सहेलियों के साथ खेलने जाने से मना कर रहीं,ये सोंचकर चुपचाप,बैठकर गोटी,बिल्ला खेल रही हैं |
बरामदे की बैठक के ठीक उपर दादा जी की तस्वीर लगी है,दादी बैठकर बच्चों को खेलते देख रही हैं,आखों में आंसू छलक रहे हैं,दुख और सुख दोनों के | दादाजी की तस्वीर की तरफ देखकर दादी के मन में याद कौंधते हैं | मन ही मन ‘काश! मेरी इकलौती,बेटी भी गेट से बाहर नहीं जाती सीमा पार नहीं करती तो समाज की ठोकर से आत्महत्या नहीं करती |’
याद में आसूं बहने लगते हैं,बेटी क्या होती है,माता पिता से बेहतर कोई नहीं जान सकता|
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*विश्वनाथ देवांगन”मुस्कुराता बस्तर”*
कोंडागांव,बस्तर,छत्तीसगढ़
मोबाइल :- 7999566755