राजनांदगांव। शिक्षा का अधिकार कानून की अनुच्छेद 8(व्याख्या), (1) व (2) के अनुसार राज्य सरकार बच्चों को निःशुल्क शिक्षा उपलब्ध कराने और अनिवार्य दाखिले, उपस्थिति और शिक्षा पूर्ण करने को सुनिश्चित करने के लिए बाध्य है।
छत्तीसगढ़ राज्य के 6500 प्राईवेट विद्यालयों में लगभग 2,85,000 बच्चे शिक्षा के अधिकार के अतर्गत पढ़ रहे है। यह बच्चें गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले परिवारों से आते है, जितने पास स्मार्ट फोन की सुविधा तक उपलब्ध नहीं होता है, कई पालकों के पास एक साधारण की-पैड वाला फोन होता है, जिसे वह अपने पास रखता है और सुबह से खाने कमाने की तलाश में निकल जाता है। कोरोना महामारी के कारण गरीब तबका ऐसे ही मंदी की मार झेल रहा है और जैसे-तैसे अपना जीवन-यापन कर रहा है।
प्राईवेट स्कूलों में नर्सरी से लेकर कक्षा बारहवीं तक के बच्चो के लिए ऑनलाईन क्लासेस दिनांक 15 जून से आरंभ हो चुका है और इस ऑनलाईन क्लासेस से आरटीई के बच्चे प्रभावित हो रहे है, क्योंकि आरटीई के बच्चे ऑनलाईन क्लासेस से वंचित हो रहे है और उनके पालक परेशान हो रहे है, क्योंकि कई पालकों ने पास स्मार्ट फोन नहीं है और ग्रामीण क्षेत्रों में नेटवर्क की समस्या भी लगातार बनी रहती है। राज्य सरकार के द्वारा आरटीई के अंतर्गत प्रवेशित बच्चों के लिए अब तक कोई ठोस कार्य योजना नही बनाया गया है।
छत्तीसगढ़ पैरेट्स एसोसियेशन के प्रदेश अध्यक्ष क्रिष्टोफर पॉल का कहना है कि आरटीई के बच्चों के पास स्मार्ट फोन नहीं है और बच्चें पढ़ाई में पीछे होते जा रहे है, क्योंकि प्राईवेट स्कूलों में तो 1 अप्रैल से ऑनलाईन क्लासेस के माध्यम से पढ़ाई आरंभ कर किया जा चुका है और पुनः 15 जून से पढ़ाई आरंभ हो चुका है।
आरटीई के बच्चों के लिए कॉपी-किताब, ड्रेस, स्मार्ट फोन की व्यवस्था कौन करेगा, इस पर सरकार ने अब तक गंभीरता से विचार नहीं किया है। पॉल का कहना है कि प्राईवेट स्कूलों को आरटीई के अंतर्गत मिलने वाली प्रतिपूर्ति की राशि भी विगत दो वर्षो से नहीं मिल रहा है, जो चिंता का विषय है। केन्द्र सरकार और राज्य सरकार को इस पर तत्काल गंभीरता से विचार करना चाहिए।