राधामनी केपी एक ऐसा नाम है, जिन्होंने अपने काम के ज़रिये एक रियल हीरो के काम को पारिभाषित किया है. वह पिछले 8 साल से लगभग 30 से अधिक पुस्तकों के साथ वह अपने गांव के आसपास घूमती है. यहां तक कि रविवार को भी घरों की महिलाओं को पुस्तकालय की किताबें बांटती हैं.
राधामनी केरल के वायनाड में प्रतिभा लाइब्रेरी में काम करती हैं. मीडिया से बात करते हुए उन्होंने बताया, जब से उन्होंने ‘वॉकिंग लाइब्रेरियन’ बनी हैं,तब से यह काम कर रही हैं. उनके गांव की महिलाएं आम तौर पर मनरेगा योजना के तहत काम करती हैं. वो रविवार को घर पर होती हैं और इस तरह उनके लिए किताबों को पढ़ने का सबसे अच्छा समय होता है.”
64 साल की उम्र में राधामनी इन महिलाओं को किताब देने के लिए रोज़ दो से तीन किलोमीटर पैदल चलती है.मूल रूप से वॉयस ऑफ रूरल इंडिया के लिए अपनी कहानी लिखते हुए राधामनी कहती हैं कि पहले तो इन महिलाओं को केवल मंगलम और मनोरमा जैसी स्थानीय पत्रिकाएँ के अलावा किताबें पढ़ने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी, लेकिन आखिरकार जब उन्होंने उन्हें दिए गए उपन्यासों में दिलचस्पी लेनी शुरू की.
केरल स्टेट लाइब्रेरी काउंसिल ने ‘वॉकिंग लाइब्रेरियन’ की पहल शुरू की थी, जो गांवों की महिलाओं को वनिता वायना पद्तति (महिला पढ़ना परियोजना) के नाम से पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती है. राधामनी हर दिन सुबह साढ़े पांच बजे अपना दिन शुरू करती हैं. वह लाइब्रेरी जाने से पहले घर का काम पूरा कर लेती है. वह अपने पति को एक छोटी सी दुकान चलाने में मदद भी करती हैं.