नहीं रहे धरती के भगवान नकुल सिंह नेताम
सैंकड़ों लोगों के जीवन में चमत्कारिक बदलाव लाने वाले जीवन जीने की कला और भारतीय संस्कृति के पुरोधा धरती के भगवान थे | लोग जीने के लिए सबकुछ करते हैं पर ये लोगों के लिए जीते थे | जीवन में लोगों की ज़िन्दगी में सकारात्मक बदलाव के साथ आदिवासियों और जनजातीय समाज में बदलाव के पक्षधर होने के साथ ही शिक्षा का अलख गुमनाम होकर करने वाले द्रोणाचार्य नहीं रहे |
इंसान और इंसानियत के बाद परमात्मा के दर्शन इनके जीवन में शामिल था | गरीबों और पीड़ीतों के लिए मसीहा थे | बिना किसी लाग लपेट के लोगों की ज़िन्दगी में रौशनी की वकालत की पर मन में सुकून और चमत्कारिक इच्छाशक्ति के लिए जाने जाते हैं |
शिक्षा का बाजारीकरण हो चुके इस वर्तमान समय में यदि कहीं यह सुनने को मिले कि शासकीय या अशासकीय विद्यालय में पदस्थ कोई शिक्षक गरीब सहित अन्य विद्यार्थियों को न केवल नि:शुल्क शिक्षादान कर रहा है, बल्कि परीक्षा फीस न पटा पाने वाले बच्चों को अपने वेतन की राशि में से पर्याप्त आर्थिक सहयोग देकर उच्च शिक्षा दिलाने का भी भरपूर प्रयास कर रहा है, तो इस बात पर आसानी से कोई भी विश्वास नहीं करेगा। लेकिन यह बात पूरी तरह सच है और इस सच्चाई को सिद्ध कर रहे थे | शासकीय हाई स्कूल जैतपुरी में उच्च श्रेणी शिक्षक के पद पर पदस्थ नकुल सिंह नेताम।
जिला मुख्यालय बन चुके कोण्डागांव नगर के आलबेड़ापारा निवासी सोमारूराम नेताम व श्रीमती सोनारी नेताम के पुत्र नकुल सिंह नेताम 53 वर्षीय एक मध्यम वर्गीय परिवार से संबंधित हैं। वे बताते थे कि शिक्षक नकुल सिंह नेताम के पिता राष्ट्रीय राजमार्ग विभाग में समयपाल के पद पर कार्यरत थे और उनकी माली हालत इतनी मजबूत नहीं थी कि वे अपने मेधावी पुत्र को उच्च शिक्षा दे सकें। नकुल सिंह नेताम बचपन से ही पढ़ाई में आगे रहे हैं, गणित विषय में 11 वीं की परीक्षा अच्छे अंकों से उतीर्ण करने पर उनका चयन बी.ई. हेतु मेरिट आधार पर हो गया, लेकिन आर्थिक परेशानियोें के कारण वे इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल नहीं कर सके, उन्हें पढ़ाई छोड़कर घर लौटना पड़ा और अपने परिवार को आर्थिक सहयोग देने हेतु वन काष्ठागार कोण्डागांव में मजदूरी करनी पड़ी। इसी बीच 1982 में शिक्षक भर्ती हेतु विकेन्सी निकलने पर उन्होंने अपना भाग्य आजमाया और भाग्यवश उन्हें शिक्षक की नौकरी मिल गई। इसके बाद उन्होंने प्रा. शाला दाढ़िया में लंबे समय तक पदस्थ रहकर शिक्षक के कर्तव्यों का पूरी ईमानदारी से निर्वहन करते हुये वाणिय विषय में स्नातक की उपाधि ली। फिर स्थानांतरण के बाद इन्होंने पूर्व मा.शा.बुनागांव में अपनी सेवाएं दीं, उसी दरम्यान मुझे भी उनसे कक्षा 6 वी से 8 वी तक पढ़ाई करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ | बताते थे कि बुनागांव में पदस्थ रहने के दौरान ही अंतत: स्नातक की उपाधि प्राप्त की। अच्छे व ईमानदारी से शिक्षण कार्य करते रहने के कारण 2006 में इनको उच्च श्रेणी शिक्षक के रूप में पदोन्नत करते हुये शा.उ.मा.वि. जैतपुरी, फरसगांव में स्थानांतरित किया गया। तब से अब तक इसी संस्था में पदस्थ रहे,और पूर्व की तरह ही ज्ञान के भण्डार को नि:शुल्क दोनों हाथों से विद्यार्थियों को देते रहे हैं। यही नहीं, जब कभी उन्हें पता चलता है कि कोई गरीब मेधावी या अन्य विद्यार्थी आगे की शिक्षा आर्थिक कारणों से नहीं ले पा रहा है, तो वे स्वयं उस तक पहुंचकर परीक्षा फीस आदि हेतु आर्थिक मदद देकर सहयोग करते हैं। नकुल सिंह नेताम द्वारा शिक्षण कार्य की लंबी यात्रा के दौरान गायत्री शक्ति पीठ कोण्डागांव में नगर के गरीब सहित अन्य बच्चों को नि:शुल्क टयूशन देने का कार्य लंबे समय तक किया गया। हालिया शा.उ.मा.वि.जैतपुरी में अपने पद के दायित्वाें का निर्वहन करने के साथ ही गायत्री शक्ति पीठ लंजोड़ा द्वारा संचालित ऋषि विद्यालय में अपनी नि:शुल्क सेवाएं देते रहे । शिक्षक नकुल सिंह नेताम न केवल ज्ञान के भण्डार को नि:शुल्क लुटाते रहे हैं, बल्कि अपने वेतन के आधे से अधिक राशि को गरीब विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा दिलाने, बीमारजनों की मदद करने व गायत्री शक्ति पीठ ऋषि विद्यालय लंजोड़ा में उपयोग हेतु लुटाते रहे हैं। इस बीच वे अपने पालकों को भी नहीं भूले हैं। वे बताते थे कि बाकायदा वे अपने माता-पिता को अपने वेतन का एक पर्याप्त हिस्सा प्रतिमाह देते रहे हैं। इसके बाद अपनी सीमित आवश्कताओं की पूर्ति हेतु आवश्यक धन रखने के बाद शेष राशि को जनहित के कार्यों में लगा देते थे | यह पूछने पर कि इतना सब जनहित का कार्य करने के बाद भी उन्होंने राष्ट्रपति या अन्य पुरस्कार पाने हेतु आवेदन देने का प्रयास क्याें नहीं किया? इस पर स्व.नकुल सिंह नेताम ने कहते थे कि वे उक्त जनहित का कार्य मानव धर्म व कर्तव्य को निभाने के लिए कर रहे हैं, न कि पुरस्कार पाने के लिए। यदि किसी व्यक्ति को मेरे कार्य अच्छे लगते हों तो वे मेरे कार्य का अनुसरण करें। हमेशा लोगों की भलाई और ईंसानियत का पाठ पढ़ाने वाले धरती के भगवान ने 18 नवंबर 2020 को अपनी अंतिम सांस रोक लिया |मिशन प्रणय और टंकेश्वर बचाओ जैसे गुमनाम सेवा कार्य में रत धरती पर देव मानव को अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि समर्पित करते हैं |