गढ़िया पहाड़ के पार रूपई सोनई की लोकगाथाओं और जनजातीय लोक संस्कृति के संग मंचों पर थिरकने वाले डुमाली गांव के गांवकुमार *श्री हृदय राम शोरी,* जिन्होंने अपने काबिलियत के दम पर अपनी नई पहचान बनायी है,अन्तर्राष्ट्रीय खोजी लेखक युवा हस्ताक्षर विश्वनाथ देवांगन उर्फ मुस्कुराता बस्तर से खास बातचीत में पढ़िये,,,, मोर पावन धाम बस्तर

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गढ़िया पहाड़ के पार मानस मंचों, लोक कला मंचों में किसी चिर परिचित बुलंद आवाज की गूंज आती है,जो सुनने को बेताब श्रोताओं का मन मोह लेती है,रूपई सोनई की लोकगाथाओं और जनजातीय लोक संस्कृति के संग मंचों पर थिरकने वाले उद्घोषक जिन्होंने अपनी काबिलियत से नई पहचान बनायी है,कांकेर जिला मुख्यालय से महज 03 किमी दूरी पर स्थित डुमाली गांव का गांव कुमार  श्री हृदय राम शोरी जी से अन्तर्राष्ट्रीय खोजी लेखक युवा हस्ताक्षर विश्वनाथ देवांगन उर्फ मुस्कुराता बस्तर से खास बातचीत में पढ़िये,,,,मोर पावन धाम बस्तर,,,,

बस्तर की धरती पर रूपई सोनई की लोकगाथा के बीच कुछ दूर गांव में संस्कृति और ग्रामीण जीवन से प्यार करने वाला युवा पैदा होता है जो जीवन यापन की आधारशिला कृषि पर समर्पित करता है | “यह आकाशवाणी है और आप,,,,,,,, से समाचार सुनिये से स्वप्रेरणा लेकर एंकरिंग की दुनिया में हाथ आजमाने वाले किसान सम्मान पुरस्कार किसान *श्री हृदय राम शोरी*,जिन्होंने मानस गान और राज्य के कई महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में अपनी उद्घोषणा से लोहा मनवाया है | पेशे से किसान श्री हृदय राम सोरी बस्तर की लोक संस्कृति,रहन सहन वेश भूषा खान पान से बेहद लगाव रखने वाले बस्तरिया हैं, जिनकी अपनी अलग पहचान है, आज ऐसे संस्कृति प्रेमी को जानना निहायत जरूरी हो गया है,वरना हम और आने वाली पीढ़ी ऐसे लोक धरोंहरों को भूल जायेगी |

बचपन से समाजसेवा करने जिद ने बनाई खास पहचान कृषि,समाज सेवा के साथ ही शिक्षा स्वास्थ्य और प्रकृति के संरक्षण की दिशा में गुमनाम होकर काम करने वाले शख्सियत की कहानी कुछ मेरी कुछ उनकी जुबानी |

श्री हृदय राम शोरी जी की जन्मतिथि – 30/09/1967 को हुआ | इनके पिता – स्व श्री भैय्याराम शोरी माता- स्व श्रीमती धनिया बाई शोरी थे | इनका वर्तमान निवास- ग्राम डुमाली (कांकेर मुख्यालय से 03 km की दूरी पर छ ग के8 जीवनदायनी चित्रोत्पला नदी के तट पर बसा हुआ है ) इनकी प्राथमिक शिक्षा- शा.प्राथमिक शाला डुमाली माध्यमिक व उच्चतर शिक्षा – शा नरहरदेव उच्च.मा विद्यालय कांकेर,उच्च शिक्षा- एम ए हिंदी साहित्य पी जी कॉलेज कांकेर।

*समाज सेवा की स्वप्रेरणा-
राष्ट्रीय सेवा योजना में कक्षा 10 वी से समाज सेवा में रुचि लेकर राष्ट्रीय सवाे योजना के माध्यम से जुड़ाव। बचपन के दिन आज पचपन पार होने के बाद भी वही जोश जुनून है जो किसी भी युवा को जोश भरने उर्जा से लबरेज करने के लिए काफी है | इनकी उर्जी सकारात्मकता से भरा हुआ होता है |

*लोककला मंच-
वैसे तो बचपन से ही यह निराला शौक रहा फिर स्कूली कार्यक्रम संचालन व अभिनय ने लोककला मंचो में मंच संचालन के प्रति रुचि बढ़ाई और छ ग के नामचीन लोक कला मंच जैसे बस्तर के सिंगार, धरती के सिंगार, अनुराग धारा ,चंदौनी गोंदा, दूध मोंगरा,रंग सरोवर के शुरुआती दौर में उद्घोषक के रूप में कार्यरत रहकर अपनी कला के प्रति समर्पित रहे। यहीं नहीं रूके बल्कि इनकी कई विधाओं में पकड़ धुरंधर बना दिया | लोक विधा कर्मा ,ददरिया, रेला,गोड़ी गीत में खास रुचि है,जब ये गाते हैं तो अनायास ही मन थिरकने लगता है,यह पल अद्भुत होता है जब ये थिरकते हैं,आज के युवा के लिए यह एक रास्ता गढ़ने जैसा कार्य होता है,निश्चित ही हमारे संस्कृति के संवाहकों को इनसे बहुत कुछ सीखने समझने की जरूरत है | बचपन मे नाटक मंडली से जुड़ाव रहा था जंहा अल्हड़ स्त्री,नायिका के पात्र के रुप मे सबका मन मोह लेते थे,आज भी जब कभी इन्हें मौका मिलता तो इनकी कला प्रतिभा किसी उम्र की मोहताज नहीं कहती है वह अपनी कला में रम जाती है,कहते हैं ना कि कला की लीला अपरंपार है,यह सार्थक लगता है | सन 1993-94 में शा. भानुप्रतापदेव स्नाकोत्तर महाविद्यालय की ओर से एक प्रतियोगिता के माध्यम से आकाशवाणी जगदलपुर में राष्ट्रीय वंदना गीत व नाटक मंचन प्रसारित हुआ। सूचना प्रसारण एंव क्षेत्रीय निदेशालय इकाई कांकेर से कई वर्षों तक इनका निस्वार्थ भाव से जुड़ाव रहा है। ये सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में भी अपने समाज के विभिन पदों का दायित्वों का निर्वहन करते हुए मानव सेवा माधव सेवा के मार्ग पर चल पड़े हैं साथ ही कई सामाजिक संगठनों से भी जुड़े हैं |

*मानस मंच –
छत्तीसगढ़ तुलसी मानस प्रतिष्ठान से जुड़कर ओडिशा,मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ के लगभग सभी जिलों में मानस मंच उदघोषक के रूप में एक अलग पहचान बनाया है। वर्तमान में प्रदेश उपाध्यक्ष तुलसी मानस प्रतिष्ठान छत्तीसगढ़ के दायित्व का सफल निर्वहन कर रहे है।

*सम्मान –
एक सफल कृषक के रूप पहचान बनाने के फलस्वरूप छ.ग. शासन तत्कालीन कृषि मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के कर कमलों से 2016-17 में “कृषक सम्मान” से सम्मानित हुए।
उनकी कुछ पंक्तियां जिन्हें वे अक्सर सुनाकर श्रोताओं के भाव विभोर करते हैं :-

*दंतेश्वरी हे तेलीन शक्ति हे,
*मोर भंगा राम संग मा
*जेकर पावन माटी हे।
*शंखनी डंकनी जीहँ बसे इन्द्रावती हे,
*कांकेर मा दुधनदी महानदी हे,
*जिन्हां सोनाई रुपाई ,संग गाड़ियां डोंगरी हे।
*मोर पावन धाम ,कांकेर जेकर सुघर माटी हे।।

*बस्तर के मांदर ताल थाप मारत हे,
*लेजा कर्मा संग झुमर नाचत हे,
*जिन्हा तेंदू फारत हे,संग महुआ झरत हे।
*मोर पावन धाम बस्तर जेकर सुघर माटी हे।

ये थे हमारे आज के खास शख्सियत श्री हृदय राम शोरी जी | जिन्होंने अपनी जिद और हौसला से समाज सेवा की दिशा में नया मुकाम पाया है | बस्तर संस्कृति को संरक्षण व उसे जीने वालों में एक नाम श्री हृदय राम शोरी जी का भी है | निश्चित ही आज की युवा पीढ़ी इनसे बहुत कुछ सीखेगी | फिर किसी नये शख्सियत के साथ खास मुलाकात में हाजिर रहूंगा | तब तक के लिए जय हिंद जय बस्तर |

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