विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस : किसी को जिंदगी से जोड़ें…अब पुलिस समझाएगी-वह ‘पागल’ नहीं, ‘बीमार’ है, उसका इलाज कराएं

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राजनांदगांव। दुर्ग संभाग में पुलिस अब लोगों को मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूक करेगी। यह फैसला संभाग में बढ़ती हुई आत्महत्याओं को देखते हुए किया गया है। इस दिशा में लोगों को जागरूक करने के लिए अभियान द्वारा समुदाय को समझाया जाएगा कि जिंदगी अनमोल होती है, इसलिए इसे बर्बाद न करें बल्कि हिफाजत करना सीखें। मानसिक रोगी की पीड़ा समझने और इलाज के लिए रोगी को प्रेरित करने की कोशिश पर भी जोर दिया जाएगा।

मानसिक रोगी को ‘पागल’ करार दिए जाने के बजाय उसका उपचार करवाना चाहिए, इस संदेश के साथ दुर्ग संभाग की पुलिस अभियान द्वारा यह समझाने का प्रयास करेगी कि मानसिक स्वास्थ्य के उपचार और इससे जुड़ी गलत भ्रांतियों को हटाने पर मानसिक विकारों का उपचार संभव है। यदि किसी में भी दिमागी असंतुलन के लक्षण दिखें तो सबसे पहले डॉक्टर की सलाह लें। इससे न सिर्फ रोगी की जान बचाई जा सकती है, बल्कि उसे एक स्वस्थ जिंदगी भी मिल सकती है।

दुर्ग संभाग के आईजी विवेवकानंद सिन्हा ने लॉकडाउन के बाद आत्महत्याओं के अचानक बढ़े ग्राफ को देखकर संभाग के पांचों जिलों से रिपोर्ट तैयार करवाई है। रिपोर्ट तैयार हुई तो पता लगा वर्ष 2016 से जून 2020 के बीच दुर्ग, राजनांदगांव, बालोद, बेमेतरा और कबीरधाम जिले में 6035 लोगों ने आत्महत्या की है। इनमें सबसे ज्यादा दुर्ग जिले में 2307 लोगों ने खुदकुशी की, जबकि सबसे कम आंकड़ा कबीरधाम जिले का है।

रिपोर्ट से पता चला है कि 18 कारण ऐसे हैं जिनकी वजह से लोग मौत को गले लगाने का निश्चय कर बैठते हैं। इनमें पति-पत्नी में विवाद, बीमारी से व्याकुलता या प्रेम संबंध में तनाव के कारण ज्यादातर लोगों ने खुदकुशी की है। आईजी दुर्ग रेंज विवेकानंद सिन्हा ने बताया हर साल 10 सितंबर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस मनाया जाता है। इससे ठीक पहले इस साल संभाग के पांचों जिलों से आत्महत्या की घटनाओं की रिपोर्ट तैयार करवाई गई है। आत्महत्या के कारणों को एनॉलिसिस किया जा रहा है। सुसाइड को कैसे रोका जा सकता है, इस दिशा में पुलिस बेहतर काम करने का प्रयास करेगी। वहीं पुलिस अधीक्षक राजनांदगांव डी. श्रवण ने कहा कि आत्महत्या का मामला एक हो या अनेक, विषय तो यह संवेदनशील है और पुलिस इस दिशा में गंभीर है। आत्महत्या के खिलाफ लोगों में जागरूकता लाने के लिए आईजी विवेकानंद सिन्हा के मार्गदर्शन में जिला पुलिस हरसंभव प्रयास करेगी।

नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़ में आत्महत्या की दर 24.7 प्रति लाख जनसंख्या है, जो राष्ट्रीय दर 10.4 प्रति लाख जनसख्या है। भारत में छत्तीसगढ़ चौथा सबसे ज्यादा आत्महत्याओं वाला प्रदेश हैे। मानसिक तनाव आत्महत्या का एक महत्वपूर्ण कारण होता है, अगर लोग मानसिक तौर पर स्वास्थ्य होंगे तो आत्महत्याओं का आंकड़ा भी घटेगा। इसके अतिरिक्त सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में पदस्थ डॉक्टरों को भी नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेज द्वारा मानसिक स्वास्थ्य पर ट्रेनिंग दी जा रही हैे। राज्य में टेली मेडिसिन द्वारा भी मानसिक विकारों का उपचार किया जा रहा हैे।

*परामर्श या इलाज के लिए स्पर्श क्लीनिक
आत्महत्या मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा है। अगर लोग मानसिक तौर पर स्वस्थ होंगे तो आत्महत्याओं में भी कमी आएगी। इसी के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने कई प्रकार के कार्यक्रम शुरू किए हैं, जिनमें 104 हेल्पलाइन एंड स्पर्श क्लीनिक भी हैं। मनोरोग के उपचार की सुविधा के बारे में सीएमएचओ डॉ. मिथलेश चौधरी ने बताया कि मनोरोगियों के उपचार के लिए राजनांदगांव में भी स्पर्श क्लीनिक है। यहां विशेषज्ञों के माध्यम से मनोरोगियों की काउंसिलिंग की जाती है तथा आवश्यकता पड़ने पर समुचित इलाज सुनिश्चित किया जाता है। रोगियों की जानकारी गुप्त रखी जाती है।

*गलत अवधारणाएं…
० मानसिक रोग का उपचार नहीं है।
० मानसिक रोग से शर्मिंदगी होती है।
० यह भूत या प्रेतात्माओं के कारण होता है।
० यह छूत का रोग है।
० झाड़-फूंक से इलाज संभव है।
० मरने से ही ठीक होता है।

*…और सच्चाई
० मानसिक रोग का उपचार संभव है।
० मानसिक रोग भी उसी तरह है, जैसे शरीर के अन्य रोग। इसमें शर्मिंदगी जैसा कुछ नहीं।
० इस रोग को भूत या प्रेतात्माओं से जोड़ना गलत और अंधविश्वास है। इसके वैज्ञानिक प्रमाण नहीं हैं।
० यह छूत का रोग नहीं है।
० इसका चिकित्सकीय उपचार ही सबसे बेहतर और प्रमाणिक है।
० आत्महत्या किसी भी रूप में इसका उपचार नहीं है।

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