गांव के बरगद के शीतल छाव….वो लहलहाते खेत…टेढ़ी मेढ़ी गलियां जो पूछती है हमेशा….आखिर कब वापस आओगे..युवा कलमकार विश्वनाथ देवांगन उर्फ मुस्कुराता बस्तर की कलम से.. *गांव इंतजार कर रहा है…|*

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गांव की गोरी निश्छला,यौवना, सुनैना,सुंदर,सुशील,युवती ‘शीला’ कब बड़ी हो गई पता नहीं चला | चांदनी की तरह सौम्य अल्हड़ परिवार की दुलारी है | मां की लाडली के लिए सारी दुनिया हाजिर है | पिता बचपन में ही चल बसे | मां ही उसकी दुनिया है | स्कूल की पढ़ाई करने के बाद हाई स्कूल की पढ़ाई के लिये संबलपुर जाने लगी | सहेलियों में सबसे मेधावी होने के कारण सबके नयनों का तारा थी | वैसे शीला को तारा भी कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी | शिक्षक शिक्षिकाओं की पहली पसंद | कब स्कूल से कालेज की डगर पहुंच गई सब कुछ यूं ही ठीक होता गया |
शहर में कालेज में दाखिला लेकर किराये के रूम में रहकर सहेलियों के साथ पढ़ाई करने लगी | अब कालेज की पढ़ाई और आधुनिक जीवन शैली ने शीला को भी प्रभावित किया | सुंदरी तो थी ही फिर कालेज में दोस्तों की क्या कमी | शीला एक गांव की निश्छला युवती पर सब कुछ अनहोनी की तरह जानबूझकर या अनजाने ही सहीं होने लगा,खिलखिलाती जिन्दगी सरपट दौड़ने लगी | कौन कैसा है,यह बात जाने बगैर शीला की दोस्ती शहर के बड़े घरानों के लड़कों से हो गई | कब एक दुसरे के करीब आ गये पता ही नहीं चला | कहते हैं जवानी की आग और भूखा बाघ किसी को भी नहीं छोड़ता | शीला कालेज के बाद दोस्तों के साथ घूमने फिरने लगी | उसे भी अच्छा लगने लगा | अब तो शीला कालेज के दोस्तों के साथ होटल बार पब भी जाने लगी और अपनी जिन्दगी में मस्त रहने लगी |
मां की याद कम आती थी अब शीला को | कभी कभार एक दो दिन के लिए शीला छुट्टी पर घर आती थी पर दूसरे दिन शहर चली जाती थी | मां दिहाड़ी मजदूरी करके पैसे जमा कर बैंक खाते में बेटी की पढ़ाई के लिये जमा करती थी | पर शीला की आज की जिन्दगी के बारे में मां को कोई खबर नहीं है | मां तो बस मां होती हैं,उन्हें बस संतान की खुशी ही नजर आती हैं | संतान की खुशी के लिए सब कुछ न्यौछावर कर देती हैं |
एक दिन दोस्तों के साथ कालेज के बाद होटल में जाते हैं तभी वहां पर पोछा लगाता हुआ सुनील दिखता है | शीला ने सुनील को पहचान लिया पर सुनील ने शीला को देखकर अंदर चला गया | शीला को यह बात ठीक नहीं लगा कि इतनी पढ़ी लिखी लड़की जब बात करने के लिए उसके पीछे गई तो वह नजर गिराकर क्यों अंदर चला गया | फिर दूसरे दिन उसी होटल में चली गई और दोस्तों के साथ इंतजार करने लगी सुनील की | पर सुनील के बारे में किसी को भी नहीं बताया था | बहुत देर के बाद अचानक से सुनील अपने काम पर पोछा लगाते हुए निकला तभी अचानक शीला ने सुनील के पास जाकर पूछी सुनील तुम यहां क्या कर रहे हो क्या हुआ जो तुम पोछा लगा रहे हो तुम तो टेलेंटेड लड़के हो चाहते तो तुम अच्छी नौकरी कर लेते पर यह क्या? लेकिन सुनील ने कोई जवाब नहीं दिया अपने काम करता रहा | जब कुछ नहीं बोला तो उनके दोस्तों ने सुनील को बोला ये क्या देहाती तुम्हें बतायेगा,इसकी औकात यही है,चाहे कितना भी पढ़ ले पर लगायेगा तो पोछा ही,शीला को भी अपनी योग्यता और जीवन शैली पर घमंड हो गया था उसने भी मुस्कुरा दिया | तभी सुनील से रहा न गया सुनील ने जवाब दिया- ‘हां,मैं पोछा लगाता हूं,ये बात सहीं है पर मैं मेहनत की कमाई खाता हूं,तुम्हारी तरह मां के भेजे पैसे और परिवार के पैसों से गुलछर्रे नहीं उड़ाता हूं | मेरे माता पिता मेरे जान हैं मैं पढ़ाई के साथ काम भी पार्ट टाइम करता हूँ फिर जिस दिन अपने दम पर खड़ा होउंगा तो शौक भी पूरा कर लूंगा,अच्छा होगा मुझे मेरा काम करने दीजिये |’ सुनील बातें सुनकर शीला की जवानी का नशा छू मंतर-फुर्र हो गया | शीला को अपनी औकात और गलती का एहसास हो गया |
शीला होटल के बाहर निकल कर रूम की ओर जाने लगी | सभी दोस्त कहने लगे पर शीला ने किसी की नहीं सुनी और लौट कर रूम में आ गयी | सारी रात उसे नींद नहीं आई,सुनील की बातें रह रह कर गूंज रही थी | शीला सोंच रही थी मेरी जैसी हजारों युवक और युवतियां गांव की पगडंडी से निकल कर शहरों में चले जाते हैं और अपनी असली मंजिल भूल जाते हैं | नहीं सुनील तुम ठीक कहते हो हम अब नहीं रूंकेगे यहां शहर में | शहर तो हम पढ़ाई करने आये हैं हमारी मंजिल और जिन्दगी तो गांव में है,आओ हम सब गांव की ओर लौट चलें,अभी मां और गांव भी इंतजार कर रही हैं | हमें बहुत कुछ करना है |
दुसरे दिन सुबह होटल के बाहर सुनील झाड़ू लगा रहा था तभी शीला ने जाकर सुनील से माफी मांगी और अपनी जिंदगी में वापस लाने के लिए शुक्रिया अदा किया | सारे दोस्तों ने भी सीख ली जिन्दगी में अपना भी कुछ होना चाहिए दूसरों पर आश्रित रहकर तो कोई भी जी लेता है |
आज जब दो साल बाद सुनील और शीला की पढ़ाई पूरी हुई |गांव की ओर शीला और सुनील पढ़ाई पूरी करने के तुरंत बाद बृहद कार्ययोजना के साथ गांव की ओर लौट चलें हैं,गांव इंतजार कर रहा है |
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*विश्वनाथ देवांगन”मुस्कुराता बस्तर”*
कोंडागांव,बस्तर,छत्तीसगढ़

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