*दो प्रकृति दूतों ने 100 साल पुराने पेड़ को बचाने की मुहिम शुरू की है…*

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वडोदरा में दो लोगों ने मिलकर एक 100 साल पुराने बाओबाब (गोरक्षी) पेड़ को बचाने की पहल की है। देश में कोरोना वायरस के प्रसार को काबू करने के लिए सरकार ने लॉकडाउन लागू किया हुआ है। इसके बावजूद भी इन लोगों ने प्रकृति के देव दूत बनकर पेड़ को बचाने का प्रण लिया है।क्मयुनिटी साइंस सेंटर के निदेशक डॉ जितेंद्र गवली ने कहा कि बाओबाब पेड़ मुख्य रूप से अफ्रीका में पाए जाते हैं। अफ्रीका में इस पेड़ की नौ प्रजातियां, जिनमें से एक प्रजाति मध्यप्रदेश और गुजरात में पाई जाती है।

उन्होंने कहा कि हाल ही में, संक्रमण की वजह से इस पेड़ का एक हिस्सा टूट कर गिर गया था। 100 साल पुराने इस पेड़ में संक्रमण को और अधिक बढ़ने से रोकने के लिए, संक्रमित हिस्से पर एक लेप लगाया गया था। इस लेप को बगीचे की मिट्टी, नीम के तेल और पानी के मिश्रण से तैयार किया गया था।

इस पेड़ को बचाने की मुहिम में जुटे हितार्थ पांड्या ने कहा कि बढ़ते तापमान की वजह से पेड़ पर लेप लगाना जरूरी था। उन्होंने कहा कि हम जानते है कि कोरोना वायरस के कारण घर से बाहर निकलना खतरे से खाली नहीं है। हालांकि, तापमान में बढ़ोतरी की वजह से बाओबाब पेड़ को बचाना ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है।

बता दें कि बाओबाब को हिंदी में गोरक्षी कहा जाता है। इस पेड़ की ऊंचाई लगभग 30 मीटर और चौड़ाई लगभग 11 मीटर होती है। इस पेड़ की बनावट बहुत ही अजीब होती है, क्योंकि इसे देखने से ऐसा लगता है जैसे इनकी जड़े ऊपर और तना नीचे है।बाओबाब में केवल साल के छह महीने की पत्ते लगे रहते हैं। इसे लोग कई नाम से बुलाते हैं, जिनमें बोआब, बोआबोआ, बोतल पेड़ और उल्टा पेड़ मशहूर है। हालांकि, इसे अरबी में ‘बु-हिबाब’ कहते हैं जिसका अर्थ होता है ‘कई बीजों वाला पेड़’।

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