*मैं तो…..ढूंढने निकला हूं….*
!
अंग्रेज तो चले गए,
पर,अंग्रेजी जबरदस्ती है |
चाहते तो,,,
सबकुछ ठीक होता,
पर,बड़ा तबका मौन है |
स्वतंत्रता बलिदानों पर मिली,
किसी के सुहाग तो,
घर गांव सपूत की चढ़ी बली,
आज सामाजिक समरसता,
सहजने को जिम्मेदार कौन है..?
कभी थी पड़झड़ सी,
बारिश दलों की सावन सी है,
मैं तो….
ढूढने निकला हूं,
ये आजादी कौन सी है…?
मरीज अस्पताल में,
तड़प रहा है |
इलाज हो या न हो..,
डॉक्टर की चांदी है…,
बिन पैसे मरण हाल में,
बड़े अस्पताल की आजादी है..,
मरीज को मर जाने दो,
गरीब होना बदनसीबी है,
जब पैसा ही सबकुछ है..?
तो फिर,,,,
ये आजादी कौन सी है…?
किसान के देश में,
किसान ठगा जा रहा है,
अन्नदाता किसको भा रहा है..,?
कोई बिल्डिंग तो,
कोई कारखाना उगा रहा है,
फसल के दाम,
किसान तय नहीं कर सकता,
कर्ज से दब जाता है,
फांसी लगाता है…?
तो फिर,,,,
ये आजादी कौन सी है…?
शिक्षा की आड़ में,
बड़ा कारोबार चला रहा है,
गांव गरीब किसान,
आज भी सूखी रोटी खा रहा है,
कोई कलेक्टर कोई मंत्री,
फाइव स्टार होटल,
माइंस-फार्म सैकड़ों प्रौपर्टी,
किसान का बेटा,
एमए,एमएससी,एलएलबी,
फिर भी,,,,
रिक्शा चला रहा है,
तो फिर,,,,
ये आजादी कौन सी है…?
मैं आजाद हो गया हूं..?
ये मेरा दिवास्वप्न है,
या फिर भावी ख्वाब,
किससे करूं ये सवाल…,
और किसको दू ये जवाब….?
है कोई जिम्मेदार,
जब सब के सब,
या तो हो गए गुनाहगार,
या फिर नवाब रसूखदार,
अब तो होने दो,
आम आदमी की,
ऐसी की तैसी..?
समझ मुझे ये नहीं आया..?
जब सब कुछ ठीक है,
जो हो रहा है,
यही आजादी है |
या
तो फिर,,,
ये आजादी कौन सी है…?
✍©®
*विश्वनाथ देवांगन’मुस्कुराता बस्तर’*
कोंडागांव,बस्तर,छत्तीसगढ़