कारवी यादव : छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में रहने वाले वीरेंद्र सिंह का नाम आज हर किसी की जुबान पर है। जंगलों और पेड़ों के प्रति उनके अनोखे प्रेम और समर्पण ने उन्हें एक मिसाल बना दिया है। वीरेंद्र सिंह ने पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए एक ऐसी पहल शुरू की है, जिसने न सिर्फ स्थानीय लोगों का ध्यान खींचा, बल्कि पूरे देश में उन्हें एक प्रेरणा स्रोत बना दिया है।
वीरेंद्र सिंह का बचपन जंगलों के बीच बीता। पेड़ों के झुरमुट, पक्षियों की चहचहाहट, और हरे-भरे वातावरण ने उन्हें हमेशा मोहित किया। जब उन्होंने देखा कि जंगलों की कटाई और बढ़ते शहरीकरण के कारण जंगलों की हरियाली धीरे-धीरे कम हो रही है, तो उन्होंने इसे रोकने का संकल्प लिया।
वीरेंद्र सिंह ने एक सरल लेकिन प्रभावी तरीका अपनाया: गुलेल से बीज बोना। उन्होंने आम, जामुन, करंज, और नीम जैसे पेड़ों के बीज इकट्ठा किए और जंगल के खाली स्थानों में इन्हें गुलेल से फेंकना शुरू किया। यह तरीका न केवल सस्ता और आसान था, बल्कि बीजों को सही जगह तक पहुंचाने में भी मददगार साबित हुआ।
उनका यह प्रयास धीरे-धीरे रंग लाने लगा। जहां पहले सूखी और बंजर जमीन थी, वहां अब छोटे-छोटे पौधे उगने लगे। इन पौधों ने समय के साथ मजबूत पेड़ों का रूप ले लिया, जिससे जंगलों की हरियाली लौट आई। वीरेंद्र के इस प्रयास ने न केवल पर्यावरण को संजीवनी दी, बल्कि स्थानीय लोगों को भी प्रेरित किया।
वीरेंद्र की मेहनत और समर्पण ने छत्तीसगढ़ के जंगलों को नया जीवन दिया। उनके इस कार्य ने पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में एक नया दृष्टिकोण पेश किया, जिसमें साधारण तकनीकों का उपयोग कर बड़े पैमाने पर बदलाव लाया जा सकता है।
आज वीरेंद्र सिंह को लोग “पर्यावरण प्रेमी” के नाम से जानते हैं। भोला गौर जैसे कई युवा और स्थानीय निवासी उनके साथ जुड़कर इस नेक काम को आगे बढ़ा रहे हैं। वीरेंद्र सिंह का जीवन और उनका कार्य यह संदेश देता है कि अगर सच्चे दिल से कोई काम किया जाए, तो कुछ भी असंभव नहीं है।
वीरेंद्र सिंह ने अपने प्रयासों से यह साबित कर दिया कि एक व्यक्ति भी बड़े बदलाव ला सकता है, बशर्ते उसके इरादे पक्के और नीयत साफ हो। उनकी कहानी हमें प्रेरित करती है कि हम भी अपने पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनें और उसकी रक्षा के लिए आगे आएं।