सौर ऊर्जा वाला गांव…ना बिजली गुल होने का तनाव और न ही पीने के साफ पानी की कोई किल्लत…जहां हर घर की रसोई में सौर ऊर्जा की सहायता से भोजन तैयार किया जाता है

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सतपुड़ा की सुरम्य वादियों के बीच बसे मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के आदिवासी बाहुल्य ‘बाचा गांव’ में न तो चूल्हों से निकलने वाले धुएं का प्रदूषण है, ना बिजली गुल होने का तनाव और न ही पीने के साफ पानी की कोई किल्लत. ये देश का ऐसा गांव है जिसे दुनिया आज सोलर विलेज के नाम से जानने लगी है. गांव में हर घर के आंगन या आसपास सोलर पैनल नज़र आते हैं. ऊर्जा की सभी ज़रूरतें यहां सौर ऊर्जा से पूरी हो रही हैं. इस आदिवासी बाहुल्य गांव के सोलर विलेज बनने की शुरुआत साल 2018 में हुई थी. इसमें पूरे गांव के लोगों ने अपना योगदान दिया.

पानी की समस्या हुई दूर
विद्या भारती संस्था से जुड़े समाजसेवी मोहन नागर की प्रेरणा से गांव के लोगों ने परंपरागत ग्राम-विज्ञान के जरिए बारिश के पानी को एकत्रित करना शुरू किया. इसके लिए पहाड़ी की ढलान से आने वाले पानी को रेत की दीवार बनाकर एकत्र किया गया. इससे न केवल खेती के लिए पानी जमा हुआ, बल्कि गांव का भू-जलस्तर भी बढ़ गया. ग्रामीण लोगों ने इस प्रयोग को ”बोरी बंधान” नाम दिया.

महिलाओं को ऐसे मिली धुएं से छुटकारा
पानी संरक्षण के अलावा बाचा गांव की पहचान देश के पहले ऐसे गांव के रूप में हुई है, जहां हर घर की रसोई में सौर ऊर्जा की सहायता से भोजन तैयार किया जाता है. ओएनजीसी के अधिकारियों के सहयोग से गांव में इलेक्ट्रिक सोलर इंडक्शन लगाए गए हैं. अब यहां लोगों को न घरेलू गैस की जरूरत पड़ती है और न ही जंगल से लकड़ी काटना पड़ता है. इस सोलर इंडक्शन से महिलाओं की जिंदगी पर काफी सकारात्मक असर पड़ा है. अब उन्हें रसोई में धुंए से छुटकारा मिल गया है.

कोरोना काल में गांववालों की पहल
कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए ग्रामीणों ने खुद ही जनता कर्फ्यू लगा दिया. हर आने-जाने वालों की बाकायदा चेकिंग की गई. ग्रामीणों के इस प्रयास को मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने सराहा है और नाकाबंदी वाली फ़ोटो ट्वीट भी किया था.

गांव पर बन चुकी है डॉक्यूमेंट्री
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल के प्राध्यापक लोकेन्द्र सिंह और प्रोड्यूसर मनोज पटेल ने इस गांव की कहानी को सबसे सामने लाने के उद्देश्य से डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘बाचा: द राइजिंग विलेज” बनाई है. इस डॉक्यूमेंट्री को ”नेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑन रूरल डेवलपमेंट” श्रेणी में द्वितीय पुरस्कार मिल चुका है. इसके अलावा इस फिल्म को कोलकाता में आयोजित 5वें अंतरराष्ट्रीय विज्ञान फिल्म फेस्टिवल में स्क्रीनिंग के लिए भी चुना गया था

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