राजस्थान के उदयपुर जिले के झाड़ोल में एक गांव है टिण्डोर। यह गांव गुजरात बोर्डर से ठीक 14 किलोमीटर पहले पड़ता है। आदिवासी बाहुल्य इलाका है। यहां चारों तरफ घना जंगल है। कथौड़ी जाति के परिवारों की बस्ती है। इन लोगों ने शहर कभी देखा तक नहीं, मगर लॉकडाउन में वो कमाल कर दिखाया जो बड़े-बड़े शहरों के लोग नहीं कर पाए।
बरसाती नालों से बुझाते थे प्यास
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक गांव टिण्डोर में मूलभूत सुविधाओं का नामों-निशां तक नहीं। यहां के लोगों को पेयजल तक नसीब नहीं हो रहा था। दशकों से पेयजल का कोई स्थाई स्रोत नहीं था। लोग बरसाती नालों में बहते पानी से प्यास बुझाने को मजबूर थे। कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन हुआ तो सब लोग बेरोजगार हो गए।
25 फीट गहराई पर आ गया पानी
ऐसे में टिण्डोर के ग्रामीणों ने मिलकर तय किया कि क्यों ना लॉकडाउन के वक्त का सही इस्तेमाल किया जाए और पूरी बस्ती के लिए कुआं खोदा जाए ताकि वर्षों पुरानी इस समस्या से निजात पाई जा सके। योजना बनी और प्रत्येक परिवार से वयस्क सदस्य मदद को आगे आए। सबने मिलकर बस्ती में हाथों से ही कुएं की खुदाई शुरू की। करीब तीन माह में 35 फीट गहरा कुआं खोद डाला। 25 फीट की गहराई पर ही पानी निकल आने पर खुदाई रोककर एक माह तक कुएं के पत्थर से दीवार बनाई।
ये जुगाड़ बनाकर खोदा कुआ
खास बात यह है कि टिण्डोर के लोगों के पास कोई अत्याधुनिक संसाधन नहीं थे। उन्होंने ‘जुगाड़’ से कुएं की खुदाई की। अपने तरीके से क्रेननुमा उपकरण बनाया। कटे पेड़ के एक तने को दूसरे तने से सहारा दिया, बीच में बांस से तगारीनुमा पात्र और दूसरे सिरे पर संतुलन के लिए रस्सी बांधी। दोनों छोर पर दो-दो लोग पेड़ का तना नीचे लाने, ऊपर ले जाने का काम करते।
पानी घर-घर पहुंचाने की योजना
आदिवासी बस्तियों में उनकी समस्याओं पर काम करने वाली सेवा मंदिर के सदस्य मांगू सिंह बताते हैं कि टिण्डोर के लोगों ने लॉकडाउन में हाथों से कुआं खोदा है। कुएं में अच्छा पानी आया है। यह पीने के साथ सिंचाई के लिए भी काम आ सकता है। हम इसे पाइप लाइन और टैंक से जोड़कर घरों तक पहुंचाने की योजना बना रहे हैं। आसपास के खेती को भी सिंचाई के लिए जोड़ेंगे।