राजनांदगांव के स्टेट स्कूल मैदान में 16 फरवरी से 22 फरवरी तक स्वदेशी मेले का आयोजन किया जा रहा है। दर्शकों ने इसे हुनर पहचानने का राष्ट्रीय मंच बताया है. विभिन्न प्रकार के उत्पादों की प्रदर्शनी देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ रही है.
कमलेश यादव: वन संपदा और धान की उपलब्धता से समृद्ध छत्तीसगढ़ राज्य में हस्तशिल्पियों का अद्भुत सौंदर्य देखा जा सकता है। जो अपने हुनर और कलात्मकता से छत्तीसगढ़ का नाम पूरी दुनिया में रोशन कर रहे हैं। राजनांदगांव जिले के स्वदेशी मेले में हस्तशिल्प कलाकृति को जिसने भी देखा, बस देखता ही रह गया। ऐसा लग रहा था मानो गांव के कारीगर अपनी संस्कृति और विरासत के साथ बांस से बने उत्पादों की झलक लेकर एक जगह इकट्ठा हो गए हों।
स्वदेशी मेले में बांस से बना समान लोगों को काफी पसंद आ रहा है. इस मेले में आए दिलीप पाल अपने पुरखों से मिली कला को आगे बढ़ा रहे हैं. दिलीप पाल के बनाए होम डेकोरेशन और गार्डनिंग उत्पाद पर्यटकों की पहली पसंद बन गए हैं. वहीं,दूसरी तरफ प्लास्टिक से दूर रहकर इन आइटम के माध्यम से पर्यावरण बचाने का संदेश भी दे रहे हैं.
सत्यदर्शन लाइव को उन्होंने बताया कि स्वदेशी मेले में बांस के बने प्रोडक्ट से एक तरफ जहां किसानों को इसकी खेती करने से उस पर बहुत अच्छे दाम मिल रहे हैं. वहीं, इस आइटम को बनाने में हमारे ग्रुप के सैकड़ों लोगों को रोजगार मिल रहा है. उन्होंने बताया कि बांस के बने इन उत्पादों में रखी गई खाद्य सामग्री काफी देर तक खराब नहीं होती है. इन उत्पादों के लिए जब हम किसी भी मेटल का प्रयोग करते हैं तो उसका कहीं न कहीं हमारे पर्यावरण पर भी विपरीत असर पड़ता है।
मेला परिसर में उनके स्टॉल पर होम डेकोरेशन के आइटम, कप, प्लेट, गिलास, फ्लावर पोट, हैंगर लैंप, कुर्सी, टेबल लैंप सेट, गार्डनिंग प्रोडक्ट सहित अन्य घरेलू उत्पाद पर्यटकों को खूब लुभा रहे हैं. उन्होंने बताया कि वे इस तरह के मेलों में हमेशा आते हैं. उनके द्वारा बनाए बांस के गार्डनिंग आइटम देशभर में भेजे जाते हैं.
गौरतलब है कि,बांस कला और शिल्प को बांस हस्तशिल्प के रूप में भी जाना जाता है । यह उद्योग हमारी भारतीय सांस्कृतिक विरासत से संबंधित है। प्राचीन काल में, हमारे हस्तशिल्प और हथकरघा उद्योग का व्यवसाय दुनिया भर में फैला हुआ था, लेकिन धीरे-धीरे, आधुनिकता की चमक में, हमारे व्यक्तिगत जीवन का हिस्सा बनने वाले सभी उद्योग समाप्त हो गए और हस्तशिल्प पर मशीनीकरण का काम बढ़ गया।