कमलेश यादव: एक सशक्त महिला का पर्याय हैं श्रीमती पुष्पलता सेरुवा जो घरेलू हिंसा की शिकार जरूरतमंद महिलाओं के उत्थान के लिए काम कर रही हैं। यदि उनके बचपन से लेकर वर्तमान तक के जीवन और कार्यों को एक शब्द में वर्णन किया जा सके तो वह शब्द होगा “सेवा”। छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले की रहने वाली श्रीमती पुष्पलता सेरुवा जी कहती हैं कि मेरे जीवन मे सेवा का महत्व बहुत खास है। समाज में योगदान देकर मुझे बहुत संतुष्टि मिलती है। जब मैं देखती हूं कि मेरी सेवा ने किसी की मुस्कान वापस ला दी है, तो मेरा दिल खुशी से भर जाता है। समाज सेवा मेरे लिए आदर्श जीवन का हिस्सा बन गई है और मैं इसे आगे बढ़ाने का प्रयास करती रहूँगी।
गीतांजलि सामाजिक सेवा संस्थान
सत्यदर्शन लाइव से बात करते हुए उन्होंने कहा कि सामाजिक कार्य दिल से किया जाते है. इसी कड़ी में हमने “गीतांजलि सामाजिक सेवा संस्थान” का गठन किया जिसका प्रदेश मुख्यालय राजनांदगांव में स्थित है। जरूरतमंद महिलाओं की आत्मनिर्भरता की दिशा में कुछ आवश्यक कदम उठाए गए हैं। मैं महिलाओं से कहती हूं कि अगर उन्हें रोजगार पाने के लिए घर से बाहर जाने का मौका नहीं मिलता है तो उन्हें घर पर ही रोजगार शुरू करना चाहिए क्योंकि आर्थिक आत्मनिर्भरता उन्हें जीवन में सही फैसले लेने की ताकत देती है।
वे शब्द आज भी मुझे प्रेरित करते हैं
समाजसेविका श्रीमती पुष्पलता सेरुवा कहती है कि बचपन में माँ और बाबा द्वारा दिये गये संस्कार और शिक्षाएँ मुझे सदैव प्रेरित करती हैं। मेरा मानना है कि भले ही वे भौतिक रूप से मौजूद न हों, लेकिन उनकी बातें मन की किसी कोने में स्थायी घरौंदा बना लिए हैं।माताजी स्व. श्रीमती सूरज बाई और पापा स्व.दयाराम हमेशा कहते थे कि सबसे पहले एक अच्छे इंसान बनो और हमेशा एक-दूसरे के लिए प्रेरणा बनकर काम करो, इससे निश्चित तौर पर समाज की तस्वीर बदल जाएगी।
फोन की एक घँटी
साल 2012 का वह दिन मुझे आज भी याद है जब मेरे भाई ने मुझे किसी जरूरी काम के लिए कॉल किया था. कुछ व्यस्तता के कारण मैं उनका कॉल रिसीव नहीं कर पाई . वो दिन है और जब भी मैं आज के दिन को याद करती हूं तो सहम सी जाती हूं. उस दिन के बाद मुझे नहीं पता कि मेरा भाई कहां गया. मैंने उसे ढूंढने की बहुत कोशिश की लेकिन वह नहीं मिला. अब जब भी मैं किसी की मदद करती हूं तो मुझे अपने भाई का मुस्कुराता हुआ चेहरा नजर आता है।
टीम वर्क पर भरोसा
गीतांजलि सामाजिक सेवा संस्थान में मेरे सभी साथी जो मेरे साथ कदम से कदम मिलाकर चले हैं और जिन्होंने मेरे साथ इस नेक कार्य को आगे बढ़ाया है।जिसमे मुख्य रूप से संरक्षक श्री सतीश भट्टड जी एवं सलाहकार एजाज सिद्दीकी जी,श्रीमती विमला कुम्हारे,श्रीमती कांति मौर्य,श्री नरेन्द्र तायवाड़े ,श्रीमती दीपिका गुप्ता,श्रीमती जयंती हरदीहा,श्रीमती सुधा कन्नौजे,श्रीमती पूनम तिवारी,श्रीमती सरिता उके,श्रीमती संगीता शुक्ला,श्रीमती विद्या यादव, श्रीमती सुहासनी सिरसागर,श्रीमती शांति पात्रे,श्रीमती जमुना साहू,श्रीमती सरस्वती वर्मा,श्रीमती रंजीता चावला,श्रीमती अंगदीप चावला,श्रीमती चंद्रकांता महानदिया,श्रीमती रामेश्वरी सिन्हा,श्रीमती माधुरी जैन का बहुमूल्य योगदान हैं।
मुश्किलें कितनी भी हों,घबराएं नहीं
श्रीमती पुष्पलता सेरूवा ईश्वर को धन्यवाद देते हुए कहती है कि परेशानियों के बादल छाएं तो धीरज की चादर ओढ़ लें। भगवान में भरोसा रखें क्योंकि ये कहा जाता है कि विश्वास पहाड़ों को हिला देता है। जीवन में दुख तो आते ही रहते हैं इनसे घबरा कर भागे क्यों? जैसे सुख में रहते हैं वैसे ही दुख के दिनों में अच्छी सोच और अच्छे कर्मों के साथ हौसला बनाए रखें।
महिलाओं को संदेश
वह कहती है कि “मुझे लगता है कि हर एक लड़की और महिला को काम करना चाहिए। जरुरी नहीं कि जब जरूरत पड़े आप तभी कमाएं। बल्कि आपको अपनी खुद की एक पहचान,और आत्मविश्वास के लिए अपने पैरों पर खड़े होना चाहिए। इसलिए जिस भी चीज में आपकी रूचि है आप वह काम कीजिए। लेकिन काम जरूर करना चाहिए।”
जब हम महिलाओं के उत्थान और समृद्धि की बात करते हैं, तो समाजसेविकाओं का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। उनके संघर्ष, संघर्षशीलता और परिश्रम से भरी जीवनयात्रा न सिर्फ उन्हें अद्वितीय अनुभवों से सम्पन्न बनाती है, बल्कि समाज को भी प्रेरित करती है।श्रीमती पुष्पलता सेरूवा की प्रेरणादायी कहानी हमें यह शिक्षा देती है कि समर्थन, समर्पण और साहस से हम किसी भी क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान कर सकते हैं।उनकी समाजसेवा में किये हुए कार्य सदैव प्रेरित करती रहेंगी।
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