एक यात्रा ऐसी…लोक संगीत का अनुभव लेना है तो खुर्सीटिकुल आना होगा…इस गांव के कोने-कोने में लोक संगीत की धुनें गूंजती हैं…जानिए ‘खुमान साव संगीत अकादमी” से कैसे जुड़ें

636

कमलेश यादव :छत्तीसगढ़ की आत्मा लोक संगीत में बसती है यहां के लोक गीतों में जीवन दर्शन समाया हुआ हैं।घुंघरू मंजीरा की आवाज हो या मांदर ढोलक की मधुर ध्वनि, मन को बार-बार आकर्षित करती है।इन्हीं सुर ताल की तलाश में हम निकल पड़े राजनांदगांव जिले से 35 किमी दूर स्थित ग्राम खुर्सीटिकुल, जहां लोक संगीत के प्रणेता स्वर्गीय खुमान साव का जन्म हुआ था।सुबह-सुबह पक्षियों की चहचहाहट में भी मुझे संगीत सुनाई दे रहा था।सूरज की भीनी किरणें खिले हुए पेड़ पौधों पर ऐसे पड़ रही थी मानो उनके रंगों को और भी जीवंत बना रही हों।

जैसे ही गांव में हम पहुंचे “मोर संग चलव जी”….”बखरी के तुमानार” जैसी लोक संगीत मेरे कानों में गूंजने लगी।सबसे पहले दिली तमन्ना थी लोक संगीत के पितामह स्व. खुमान साव के जन्मभूमि को देखने की।ईट मिट्टी और खपरैल से बना हुआ घर जहाँ कभी लोक संगीत की महफिले सजा करती थी।इस भूमि की मिट्टी को पकड़कर मैंने सबसे पहले अपने माथे पर लगाया।अजीब सा शुकुन था इस मिट्टी में।

गांव की गलियों में आगे बढ़ते हुए सबसे पहले मुलाकात हुई स्व.खुमान साव के नाती गोविंद साव से उन्होंने बताया कि 32 साल से कला साधना में वे परछाई की तरह उनके साथ में रहें।यह जानकर अत्यंत खुशी हुई कि नवोदित कलाकारों को मंच प्रदान करने के लिए उनके द्वारा “खुमान साव संगीत अकादमी” की स्थापना की गई है।देश-विदेश से हजारों कला प्रेमी ऑनलाइन प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं।सांस्कृतिक विरासत को आगे बढ़ाते हुए गोविंद साव जी कहते है कि इस गांव के कोने-कोने में लोक संगीत की धुनें गूंजती हैं।उनकी सांसे और रक्त का एक एक कतरा लोक संगीत को ही समर्पित हैं।

ग्रामीणों से बातचीत के कुछ अंश

*गाँव के वरिष्ठ शिक्षक रोहित तारम ने हमें बताया कि इस खुर्सीटिकुल को “लोक संगीत का गांव” कहना बेहतर होगा.क्योंकि इतिहास साक्षी है उद्गम स्थल हमेशा गुमनामी में खो जाता है।

*बातचीत के दौरान सेवानिवृत्त प्राचार्य केशव राम साहू ने लोक संगीत के महत्व के बारे में बताया कि लोक संगीत जाने-अनजाने कई रूपों में हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं को छूता है।

*दाऊ जीवन लाल साव ने बताया कि खुमान साव ने 1970 के आसपास यह गांव छोड़ दिया था लेकिन वे अपनी सांस्कृतिक यादें अपने साथ नहीं ले जा सके।  लोक संगीत में उनका काम आज भी लोगों के दिलों में खास जगह रखता है।

*व्याख्याता मिलिंद साव ने बताया कि लोक संगीत की धुनों में डूबा यह गांव कालजयी हो गया है.  यहां के ईंट-पत्थरों से भी संगीत की गूंज सुनाई देती है।

*उपसरपंच मोहित साव भावुक होकर कहते हैं कि भविष्य में इस गांव में “खुमान साव संगीत अकादमी” की कार्यशालाएं नियमित रूप से खोली जानी चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियां छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक महत्व को समझ सकें।

मैंने देखा कि इस गांव में सभी लोग आपसी भाईचारे और प्रेम की अनूठी भावना के साथ रहते हैं।किसान सुबह-सुबह खेतों में काम करने निकल जाते हैं।स्वर्गीय खुमान साव के घर से कुछ दूरी पर एक सुंदर तालाब स्थित है।तालाब के किनारे एक छोटा सा मंदिर है।जब मैं संगीत की तलाश में यहां आया तो मुझे समय का पता नहीं चला,अब सूरज डूबने का समय आ गया है।यहां की खट्टी-मीठी लोक संगीत की कहानियां मेरे मन पर हमेशा के लिए अंकित हो गई हैं। अगर आप भी इस गांव में आकर उनकी यादें और “खुमान साव संगीत अकादमी” देखना चाहते हैं तो इस संगीत यात्रा को जरूर सफल बनाएं.

Live Cricket Live Share Market

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here