हार्ट सर्जरी से नया जीवन मिला था और उन्होंने तय कर लिया कि वह इस नए जीवन को लोगों की भलाई के लिए समर्पित कर देंगी. उन्होंने सोच लिया कि कुछ ऐसा करना है,जिससे लोगों का भला हो…वह एक जीरो वेस्ट घर में जीरो बिजली बिल के साथ रह रही हैं

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देश का सबसे साफ-सुथरा शहर इंदौर. मध्य प्रदेश में बसे इस शहर के पास ही एक जगह है सनावदिया, जहां रहती हैं जनक पालटा मैकगिलिगन 16 फरवरी 1948 को जन्मीं जनक ने अपना पूरा जीवन प्रकृति और पर्यावरण को समर्पित कर दिया है. साथ ही वह महिला सशक्तिकरण में भी उल्लेखनीय भूमिका निभा रही हैं. पिछले 10 वर्षों से ज्यादा वक्त से एक ऐसा जीवन अपना लिया है, जो हर किसी के लिए एक प्रेरणा है. यही वजह है कि उन्हें क्वीन ऑफ सस्टेनेबिलिटी भी कहा जाता है. इतना ही नहीं अपने प्रयासों के लिए वह साल 2015 में पद्मश्री से भी पुरस्कृत हो चुकी हैं.

जनक पालटा मैकगिलिगन दरअसल एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं. वह ‘जिमी मैकगिलिगन सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट की संस्थापक-निदेशक हैं.’ यह इंदौर स्थित एक गैर-सरकारी संगठन है. इसके अलावा जनक, ग्रामीण महिलाओं के लिए बारली विकास संस्थान की पूर्व संस्थापक-निदेशक भी रह चुकी हैं. उन्हें ग्रामीण व आदिवासी महिलाओं के सशक्तिकरण, सस्टेनेबल डेवलपमेंट, सोलर एनर्जी और ऑर्गेनिक फार्मिंग के लिए जाना जाता है. वह एक ‘जीरो वेस्ट घर’ में जीरो बिजली बिल के साथ रह रही हैं.

जनक पालटा के ‘जीरो वेस्ट’ घर में बिजली का बिल शून्य है. वजह है एक विंडमिल. यह विंडमिल केवल जनक के घर को ही नहीं बल्कि 50 अन्य घरों को भी बिजली से रोशन करती है. वह कुछ खरीदारी करने के लिए बाहर नहीं जाती हैं. उन्होंने घर के गार्डन में ही ऑर्गेनिक तरीके से सब्जियां, दालें, चावल और मसाले उगा रखे हैं. केवल नमक, चाय और गुड़ बाहर से आते हैं. उनके गार्डन में 160 पेड़ और 13 फसलें हैं.

खाना पकाने के लिए वह सोलर कुकर्स का इस्तेमाल करती हैं. उनके पास एक पोर्टेबल सोलर कुकर भी है. कहा जाता है कि वह जब बाहर जाती हैं तो पोर्टेबल सोलर कुकर साथ लेकर जाती हैं. जब चूल्हे को खाना बनाने के लिए इस्तेमाल करती हैं तो लकड़ियों की जगह गोबर व अखबार की बनीं ब्रिक्स का उपयोग, ईंधन की तरह करती हैं.

उनके घर से कोई कचरा बाहर नहीं जाता है. वह डिस्पोजल का भी इस्तेमाल नहीं करती हैं. वह फेसपैक, शैंपू, साबुन, डिटर्जेंट और टूथपेस्ट भी खुद ही तैयार कर लेती हैं. उन्होंने अपनी रसोई और डायनिंग एरिया में लगे वॉश बेसिन्स से निकलने वाले पानी के पाइप को घर के आंगन में लगे पौधों की ओर किया हुआ है. वह पानी की हर बूंद को रिसाइकिल करती हैं और एक बूंद पानी भी वेस्ट नहीं होने देती हैं.

पंजाबी परिवार में जन्मीं जनक की परवरिश चंडीगढ़ में हुई. उन्होंने अंग्रेजी लिटरेचर व पॉलिटिकल साइंस में एमए किया हुआ है. साथ ही सितार में संगीत विशारद, पॉलिटिकल साइंस में डिस्टिंक्शन के साथ एमफिल और पीएचडी भी की हुई है. अपनी पढ़ाई के दौरान और बाद में, उन्होंने भविष्य निधि कार्यालय, उच्च न्यायालय और ग्रामीण व औद्योगिक विकास केंद्र जैसे विभिन्न स्थानों पर काम किया. जनक ने एक आयरिश व्यक्ति जेम्स मैकगिलिगन से शादी की और उन्होंने बारली डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट फॉर रूरल वीमेन की स्थापना की. 1 जून 1985 को इस इंस्टीट्यूट की स्थापना की गई थी और वह 26 वर्षों तक इसकी डायरेक्टर रहीं. 16 अप्रैल 2011 को उन्होंने रिटायरमेंट ले लिया. जनक इस इंस्टीट्यूट के बोर्ड में अभी भी हैं.

जनक पालटा ने बारली डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट फॉर रूरल वीमेन पर एक किताब भी लिखी है. इसके अलावा 7 कुरीकुलम बुक्स भी लिखी हैं. जनक को भारत सरकार ने साल 2015 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया था. इसके अलावा उन्हें कई और अवॉर्ड भी मिल चुके हैं. जनक पालटा ने भारत सरकार के साथ भी रिसर्च वर्क किया है.

17 की उम्र में ओपन हार्ट सर्जरी ने बदली जिंदगी
1964 में जनक चंडीगढ़ में थीं और हाईस्कूल पास किया था. उस वक्त वह 15 वर्ष की थीं. एक दिन अचानक वह बेहोश हो गईं और उन्हें चंडीगढ़ के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया. जनक एक साल तक अस्पताल में रहीं क्योंकि तब ओपन हार्ट सर्जरी नहीं होती थी. उस वक्त कहा गया था कि जनक सिर्फ 6 महीने ही जीवित रह सकती हैं लेकिन तब सरकार के दखल के बाद कनाडा से एक डॉक्टर को बुलाया गया और उन्होंने जनक की ओपन हार्ट सर्जरी की.

तब उन्हें एकदम नया जीवन मिला था और उन्होंने तय कर लिया था कि वह इस नए जीवन को पृथ्वी के अच्छे के लिए समर्पित कर देंगी. उन्होंने सोच लिया था कि कुछ ऐसा करना है, जिससे लोगों का भला हो. ठीक होने के बाद जनक ने कई जगहों व धार्मिक स्थलों की यात्रा की, इस खोज में कि कैसे भगवान का शुक्रिया अदा किया जाए. लेकिन फिर भी कुछ समझ नहीं आया कि जीवन का रास्ता किधर है. बाद में दिल्ली में बहाई उपासना मंदिर ‘लोटस टेंपल’ से उन्हें यह रास्ता मिला और उन्होंने बहाई धर्म अपना लिया.

पढ़ाई और नौकरी के दौरान उन्होंने धीरे-धीरे लोगों की सेवा शुरू कर दी. उन्होंने लोगों को ओपन हार्ट सर्जरी को लेकर जागरुक किया, बच्चों को पढ़ाना शुरू किया, अंधे लोगों से जुड़कर मदद की.

साल 2011 में अपने पति जिमी की मृत्यु के बाद वह इंदौर के निकट सनावदिया में बस गईं. तब से वह यहीं रहकर पर्यावरण के लिए अपने वादे को निभा रही हैं. जनक ने अपने घर को बदलकर रख दिया है और इसे पूरी तरह सस्टेनेबल बना दिया है. जनक के गाइडेंस में 1.5 लाख से ज्यादा युवा और 1000 से ज्यादा गांवों की 6000 ग्रामीण व आदिवासी महिलाएं सोलर कुकिंग में प्रशिक्षण प्राप्त कर चुकी हैं. जनक को प्यार से जनक दीदी बुलाया जाता है. उन्हें ‘क्वीन ऑफ सस्टेनेबिलिटी’ भी कहा जाता है.

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