अंतरिक्ष से पृथ्वी की सतह पर हमारे शहर चमकीली बिंदुओं की तरह दिखते हैं. रोशनी की हम सबको जरूरत है, लेकिन अधिक रोशनी से भी प्रदूषण हो सकता है.कोलोन के खगोलशास्त्री हाराल्ड बार्डेनहागेन कहते हैं, “रात को अधिक रोशनी के बुरे प्रभाव हो सकते हैं. एक तो स्वास्थ्य को इससे नुकसान हो सकता है. हो सकता है कि जैव विविधता को नुकसान पहुंचे. और वैसे भी कृत्रिम रोशनी से रात को आप आसमान में तारे भी नहीं देख सकते.”
अधिक रोशनी के नुकसान
कई जानवरों के लिए रात की रोशनी एक अभिशाप है. चि़ड़िया उड़ते वक्त अपना रास्ता भूल जाती है और चमकीली इमारतों से टकरा जाती है. कछुए चांदनी की मदद से समंदर की ओर अपना रास्ता खोजते हैं लेकिन शहर से निकल रही रोशनी उन्हें उलझा देती है और वह समंदर के बजाय जमीन की तरफ आने लगते हैं. पानी के अभाव से वह सूख जाते हैं और उनकी मौत हो जाती है.
जानवर ही नहीं, मनुष्यों को भी रोशनी के बुरे असर का सामना करना पड़ रहा है. बार्डेनहागेन कहते हैं, “मनुष्यों के स्वास्थ्य पर असर यह होता है कि हमारे शरीर की अंदरूनी घड़ी खराब हो जाती है. कृत्रिम रोशनी से ब्रेस्ट कैंसर या प्रोस्टेट कैंसर होने का खतरा और बढ़ जाता है. ” अब इससे बचने के हल ढूंढे जा रहे हैं. बार्डेनहागेन ने एक ऐसा लैंप बनाया है जिससे रोशनी केवल नीचे की तरफ निकलती है, चारों तरफ फैलती नहीं और आसपास के पर्यावरण को प्रदूषित नहीं करती. वैसे तो रोशनी के जितने कम स्रोत हों, उतना ही अच्छा है. जब लाइट की जरूरत न हो, तो उसे बंद ही करना अच्छा है.
रंगों का खेल
शोधकर्ता रोशनी के रंग पर भी अध्ययन कर रहे हैं क्योंकि इससे हमारी शारीरिक घड़ी प्रभावित होती है. एक मशीन की मदद से रोशनी के सातों रंगों का सटीक तरह से पता लगाया जा सकता है. रात को सफेद रोशनी बहुत नुकसान पहुंचाती है. यह रोशनी केवल सूरज से पैदा होती है लेकिन नीले और हरे किरणों वाली रोशनी भी दिन के उजाले जैसी होती है और मनुष्य का शरीर को अस्त व्यस्त करने की क्षमता रखती है. जिस रोशनी को हम पीला समझते हैं, वह वास्तव में पीली और लाल किरणों से बनी होती है. पीले किरणों से शरीर अस्त व्यस्त नहीं होता. इसलिए रात को अगर लाइट जलानी हो तो केवल पीली रोशनी वाले बल्ब जलाने चाहिए. या बार्डेनहागेन के खास चश्मे का इस्तेमाल करना चाहिए, जो अनचाहे रंगों की किरणों को आंखों से दूर रखता है.
खगोलशास्त्री बार्डेनहागेन को तारे देखना बचपन से ही पसंद था लेकिन आजकल सड़कों की रोशनी में रात का टिमटिमाता आसमान खो जाता है. वह कहते हैं कि अगर पांच हजार साल पहले भी आसमान में इतना उजाला रहता तो मनुष्य बदलते मौसम और आसमान में तारों की बदलती जगह के बीच संबंध नहीं समझ पाता. मनुष्य कैलेंडर का आविष्कार नहीं कर पाता और हम समय को नाप नहीं पाते. अगर सूरज की रोशनी जीवन देती है तो रात का अंधेरा जीवन के तनाव से भी राहत देता है. हम अंतरिक्ष से कैसे जु़ड़े है, यह सारे राज तारों से भरे आसमान में छिपे हैं.
अमेरिका और यूरोप में कृत्रिम रोशनी के चलते रातें इतनी चमकदार होती हैं कि उससे सेहत संबंधी दिक्कतें बढ़ने लगी हैं. रिसर्च बताती हैं कि अंधेरा ना केवल प्रकृति की बेहतर लय के लिए जरूरी है बल्कि हमारी नींद और स्वास्थ्य के लिए भी. रिसर्च ने ये भी दिखाया कि जो पौधे स्ट्रीट लाइट के पास लगे होते हैं वो दूसरे पौधों की तुलना में कम फल-फूल देते हैं.
आजकल जर्मनी में लोग शहरों की प्रमुख इमारतों, स्मारकों और सारी प्रमुख जगहों की बिजली रात को बुझा दे रहे हैं. इसी तरह वहां घरों की बत्तियां भी जल्दी बंद हो रही हैं. कई जगहें तो ऐसी हैं जहां सूरज ढलने के बाद बिजली से रोशन होने वाली कृत्रिम लाइट जलाई ही नहीं जाती. इसकी कई वजहें हैं, सबसे बड़ी वजह अगर ऊर्जा संकट है तो कई नए रिसर्च ये बता रहे हैं कि अंधेरा हमारी सेहत के लिए नेचुरल तौर पर फायदेमंद है.