अपने दौर का महत्वपूर्ण दस्तावेज है `अपन गोठ`
मन के आवेगों की कोई निर्धारित सीमा नहीं होती और न ही अभिव्यक्ति किसी भाषा या बोली की मोहताज होती है। शब्द वही सार्थक होते हैं, जिनमें संवाद कायम करने की शक्ति होती है। शब्द जब विचार बनकर साहित्य की विभिन्न विधाओं में प्रवाहित होते हैं और भाषा विशेष में जन-जन तक पहुंचते हैं, तब यह सृजन लोककल्याणकारी बन जाता है।
भारत की मीठी बोलियों या भाषाओं की जब बात होती है, तब छत्तीसगढ़ी की मधुरता बरबस ही अंतस में उतरती चली जाती है। जितने सीधे- सरल छत्तीसगढ़वासी है, उतना ही सहज और सरस है छत्तीसगढ़ी साहित्य। इन दिनों `अपन गोठ` का सृजन कर चम्पेश्वर गोस्वामी ने छत्तीसगढ़ी साहित्य में अपना महत्वपूर्ण योगदान दर्ज किया है।
चम्पेश्वर गोस्वामी के गद्य संग्रह `अपन गोठ` में अति लघु, किन्तु प्रेरक रचनाएं संकलित हैं। इनकी रचनाओं में जीवन की आपाधापी के बिम्ब भी है और उनसे उबरने के सुगम मार्ग भी है। कम शब्दों में छोटी -छोटी घटनाओं और परिस्थितियों का चित्रण जिस सादगी से किया गया है, वह काबिले तारीफ है। `छत्तीसगढ़ मोर मया के खदान हे` रचना में छत्तीसगढ़ के लोक और जीवन की सौंधी -सौंधी महक है और रचनात्मक क्रियाकलापों की बानगी के साथ-साथ संसाधनों के दुरूपयोग को रोकने का निवेदन भी है।
`हमर लोक खेल` में बचपन की मासूमियत है तथा विलुप्त हो रहे पारम्परिक खेलों के प्रति चिंता भी है। `जलत चिता ल देखके मोर मन मा आइस विचार` में जहां जीवन की नश्वरता की ओर संकेत है। वहीं `पर्यावरण` शीर्षक गद्य रचना में प्रदूषण के सभी पहलुओं पर गंभीर चिंतन है। गद्य रचना `दशहरा` का आकार अन्य रचनाओं से जरा ज्यादा विस्तृत है। ऐसा इसलिए कि वर्तमान परिवेश में बुराइयों को गिनाना ही लेखक का उद्देश्य नहीं है, बल्कि वह रामराज्य की कल्पना को साकार होता देखने का हिमायती भी है।
`अपन गोठ` में जीवन का स्पंदन है। सारी जिज्ञासाएँ एवं समाधान पाठक के साथ-साथ चलते हैं। `पानी के बानी` में जल संरक्षण का आह्वान है तो `सिरजन के जोत जलाना हे` में ज्ञानवर्धक और प्रेरणादायी साहित्य सृजन की पैरवी की गई है। लेखक ने छत्तीसगढ़ के तीज- त्यौहारों एवं लोककलाओं-परम्पराओं को अपने शीर्षक गद्य ‘गीत अउ संगीत` में व्याख्यात्मक ढंग से व्यक्त किया है। ऊँच -नीच तथा अमीर-गरीब की खाई को पाटने वाली रचना `सब समान हे` लेखक की समतावादी सोच को दर्शाती है।
छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया का उद्घोष है `छत्तीसगढ़ के माटी में, वास्तव में यह नारा तभी सार्थक हो सकता है जब चहुंमुखी विकास की लहर जन-जन तक पहुंचकर हर किसी को समृद्ध करेगी। लेखक चम्पेश्वर गोस्वामी ने बड़े जतन के साथ 49 गद्य रचनाओं का संकलन तैयार किया है। गद्य संग्रह के हर पृष्ठ पर लेखक के कवि मन की छाप है, जो पाठक को लुभाती भी है और गद्य एवं पद्य के प्रयोगधर्मी सम्मिश्रण का रसास्वादन भी कराती है। समाज के प्रति लेखक का पारदर्शी और समतावादी दृष्टिकोण प्रभावित करता है। गंभीर रचनाओं के अलावा कहीं कहीं पर कुछ लेखों का चुटीलापन गुदगुदाने वाला है।
नि:संदेह चम्पेश्वर गोस्वामी का छत्तीसगढ़ी गद्य संग्रह `अपन गोठ` छत्तीसगढ़ी साहित्य के संवर्धन में सहायक सिद्ध होगा तथा अपने दौर का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज साबित होगा।
छत्तीसगढ़ी गद्य संग्रह : अपन गोठ
लेखक – चम्पेश्वर गोस्वामी
प्रकाशक – आशु प्रकाशन रायपुर (छत्तीसगढ़ )
मूल्य – 210 रुपए
-प्रकाश उदय
(लेखक आकाशवाणी रायपुर में कार्यरत हैं )