ग्रामीण भारत…दूरस्थ गांवो में मूलभूत सुविधाओं की आवश्यकता है..इंटरनेट युग मे ऐसे कई गांव है जो दुनिया से कनेक्ट नही है…शिक्षक के प्रयास से पहुंची बिजली

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गोपी साहू:भारत गांवो का देश है आजादी के बाद भी ऐसे कई दूरस्थ गांव है जहां बिजली की समस्याओ से ग्रामीणों को जूझना पड़ रहा है।इंटरनेट युग मे आज सभी एक दूसरे से कनेक्टेड है पल भर में सूचनाएं एक जगह से दूसरी जगह चली जाती है इसके बावजूद कई गांवों में मूलभूत सुविधाओं का अभाव देखने को मिलता है।भारत के विभिन्न राज्यो में ऐसे काफी सारे गांव है।एक शिक्षक के प्रयास के चलते वहाँ इतिहास लिख दिया गया है। 16 फरवरी को नागालैंड के शिन्न्यू गाँव में पहली बार बिजली आई जबकि इसके पहले रात में बांस के डंडे पर दिये लगाकर गाँव के लोग अपने लिए रात में रोशनी का जुगाड़ करते थे, हालांकि गाँव में सोलर बिजली का इंतजाम किया गया है जिससे गाँव के करीब 60 परिवारों को सीधे तौर पर लाभ मिलेगा।

गाँव में सोलर-बिजली आने के बाद अब गाँव के निवासी मोबाइल फोन खरीदने और रात में बैठक करने पर विचार कर रहे हैं। गाँव में बिजली आने के बाद सबसे पहले मिठाई बाँटकर गांववालों ने एक दूसरे को बधाई भी दी।

पहले फेल हुए कई प्लान
ऐसा नहीं है कि गाँव में बिजली लाने का प्रयास पहली बार किया किया गया है लेकिन इसके पहले किए गए सभी प्रयास फेल रहे हैं। साल 2002 में आधिकारिक तौर पर अस्तित्व में आए इस गाँव में एक प्राइमरी स्कूल के साथ ही एक सामुदायिक भवन भी है, हालांकि यह देश के सबसे अधिक दूरस्थ गांवों में से एक है जहां जिला मुख्यालय भी 12 घंटे की दूरी पर है।

संपर्क न होने के कारण गांव बाकी दुनिया से कटा हुआ है। आस-पास शायद ही कोई सड़क है जबकि ऐसे में उचित इंटरनेट की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती है। हालांकि इस अंधेरे को दूर करने का काम एक सरकारी स्कूल के शिक्षक द्वारा सोशल मीडिया पोस्ट की बदौलत हो सका है।

सोशल मीडिया ने की मदद
33 साल के जॉन खांगन्यू छह साल पहले यहाँ के सरकारी स्कूल में तैनात थे। शिन्न्यू पहुंचने के लिए उन्हें करीब 12 घंटे पैदल चलना पड़ता। जबकि मूल रूप से टोबू के रहने वाले जॉन को अपने फोन की बैटरी चार्ज करने के लिए भी कई घंटों तक यात्रा करनी पड़ती थी।

मीडिया से बात करते हुए जॉन ने बताया है कि इस गांव को दुनिया से अलग देखकर वे काफी हैरान थे। अंधेरे के कारण छात्र आगे की पढ़ाई के लिए गाँव से बाहर चले जाते थे, महिलाओं को रात में शौचालय का उपयोग करने में समस्या होती थी और इसके चलते सभी गतिविधियाँ शाम से पहले करनी पड़ती थीं। यह स्थिति देखकर जॉन ने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर अपील करने का फैसला किया जहां उन्होने गाँव को इस समस्या से बचाने के लिए समाधान मांगे थे।

इस पोस्ट को जॉन के एक मित्र ने फेसबुक पर देखा और उन्होंने 2019 में ग्लोबल हिमालयन एक्सपेडिशन (जीएचई) से जुड़ने में उनकी मदद की। यह संगठन दरअसल व्यापक रूप से भारत के सबसे दूरस्थ गांवों को विद्युतीकृत करने के लिए माइक्रो सोलर ग्रिड स्थापित करने के लिए जाना जाता है। जीएचई के निर्देशानुसार जॉन ने गांव और उसकी बिजली की जरूरतों का सर्वे किया। जीएचई ने इसके लिए सोम जिला प्रशासन के साथ सहयोग किया। मालूम हो कि इस प्रोजेक्ट की लागत करीब 23 लाख रुपये थी।

सोलर ग्रिड लगाने से ग्रामीण इतने उत्साहित थे कि उन्होंने तकनीशियनों के खाने और रहने की व्यवस्था खुद की। उन्होंने इसके रखरखाव के लिए हर महीने 100 रुपये एकत्र करने का भी फैसला किया। मालूम हो कि गांव के तीन लोगों को सोलर पैनल की देखभाल और रखरखाव के लिए भी प्रशिक्षित किया गया है।

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