कमलेश यादव:पूरी दुनियां में ऐसा कोई भी व्यक्ति नही है जो बगैर उद्देश्य और काबिलियत लेकर न आया हो।हर किसी मे कुछ न कुछ रचनात्मकता छिपा रहता है।कुदरत का नियम है जब हम किसी चीज का उपयोग करना बंद कर देते है स्वतः वह विलुप्त होना शुरू हो जाता है।आज की कहानी भी ऐसे व्यक्ति की है जिसने करोड़ो लोगो की भीड़ में अपनी स्वयं की पहचान बनाई है वह भी अपनी मजबूत इच्छाशक्ति और हुनर से।एक दुर्घटना में 90 प्रतिशत लकवाग्रस्त होने के बाद भी हौसले के रंग से चित्रकारी मे अपनी कला को सबके सामने रखने वाले खास शख्सियत बसन्त साहू छत्तीसगढ़ के कुरूद के रहने वाले है।सिर्फ दायां कंधा और कलाई ही काम करता है।बसन्त साहू ने कभी हार नही माना,रंगों और कूची से एक नया कीर्तिमान रच चुके है।बंसत साहू की बनाई पेटिंग देश-विदेश में धूम मचा रही है और इसी पेटिंग की वजह से इनको देश और विदेश मे मान-सम्मान व प्रसिद्धी मिल रही है।
बसंत साहू सत्यदर्शन को बताते है कि,आंखों के सामने आज भी वह मंजर है जब 21 वर्ष की उम्र में जिंदगी का ऐसा टर्निंग पॉइंट आया जिसने सब कुछ बदल दिया।उस समय इलेक्ट्रॉनिक्स का काम किया करते थे इधर उधर जाना होता था।पास के गांव से काम खत्म कर वापिसी में ट्रक ने ठोकर मार दी।हादसे के बाद उनके दोनो पैर व हाथ काम करना बंद कर दिया और शरीर भी पूरी तरह से कमजोर हो गया।जिसके चलते सारा दिन बिस्तर मे गुजरने लगा।
ईश्वर की मर्जी के आगे भला कब किसका चला है उसकी योजना में कुछ तो छिपा होता है जो तुरन्त में समझ नही आता।दिन से रात बस समय कटते जा रहे थे।बिस्तर में लेटे हुए जैसे स्वयं से साक्षात्कार हुआ एक छोटी सी रोज की कोशिश पेसिल पकड़ कर चित्रकारी करने की एक बेहतर परिणाम को सामने लेकर आया।हाथों में जैसे सरस्वती मां ने आकर आशीर्वाद दे दिया हो, हरेक पेंटिंग जीवंत स लगने लगा।उनके द्वारा बनाये पेटिंग आज देश-विदेश के प्रदर्शनी मे लगाई जाती है।
माँ की वो बातें
बसन्त साहू कहते है,परिस्थितियों से लड़ने का साहस मुझे मेरी माँ श्रीमती अहिल्या साहू से मिला है।टूटकर बिखर जाना और फिर से सृजन करने की हिम्मत केवल मां ही दे सकती है।ऊपर वाला जब भी हमसे कुछ छीन लेता है उसके बदले में कुछ देकर भी जाता है।कमियों को नजरअंदाज करके,जो है उसमें फोकस करके आगे बढ़ा जाए।निश्चित ही सफलता के नए द्वार खुलते है।मैंने सुना है कितने महापुरुष हुए है जिन्होंने सब कुछ खोकर भी समाज को नई दिशा दी है।कुछ सामाजिक दायित्व भी है जिसे हमे निभाना है उसी कड़ी में सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ लड़ने की ठानी और बेटी बचाओ और कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ अभियान से जुड़ गया।
कोरोना काल मे सुध कोई नही लिया
सूबे के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बहुमत सम्मान से सम्मानित किया है।देश विदेश में सैकड़ो सम्मान की लिस्ट काफी लंबी है।लेकिन सम्मान पेट की भूख तो नही मिटा सकता।आजीविका का मुख्य साधन पेटिंग है लेकिन कोरोना काल मे कोई सुध लेने वाला नही है।मुझे शिकायत नही है किसी से,न ही किसी प्रकार से कोई मांग है मुझे अपने ईश्वर पर अटूट भरोसा और विश्वास है।जब जिंदगी ने 26 साल पहले इतना दर्द देने के बावजूद मुस्कुराते हुए चले है यह दिन भी निकल जायेगा।पिताजी कृषि कार्य करते है मैं भी सोचता हूं कुछ आर्थिक मदद घर मे करू।
गरीब बच्चों के सपनों का पंख
कहते है ज्ञान बांटने से और बढ़ता है मैंने 26 साल में जो सीखा है उसे गरीब बच्चों के हुनर को पंख लगाने की दिली इच्छा है।कुछ समय पहले बस्तर जाकर चित्रकारी बच्चो को सिखाने की योजना है।संसाधन का परवाह नही है।सीमित संसाधनों के बदौलत भी काफी कुछ किया जा सकता है।मेरी आँखें हमेशा बच्चो के अंदर छिपी हुई प्रतिभा को देखती है एक्सरे की तरह।कुछ न कुछ क्रेअविटी दिमाग मे चलते रहता है।इसी सिलसिले में बस्तर यात्रा से भी आ गया हूँ।
कठिन प्रतिस्पर्धा के दौर में बेरोजगारी से आहत लाखो युवा छोटी सी समस्या आने पर ही आत्मघाती जैसे कदम उठाने को तैयार हो जाते है बसन्त साहू का जीवन निःसन्देह सभी के लिए प्रेरणास्रोत है।पूरी तरीके से दिव्यांग होने के बावजूद बसन्त साहू हिम्मत नहीं हारा और अपनी जिदंगी पेसिल और पेटिंग को बना ली है।परिवार के सदस्यों ने भी भरपूर सहयोग किया है।सत्यदर्शन उनके इस जज्बे को सलाम करता है।