दर्द रखते हैं,दर्दों की दवा रखते हैं…इसी कसक को बयां करती राजकुमार कसेर की ये गजल

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दर्द रखते हैं,दर्दों की दवा रखते हैं
अपनें इस दिल में,हम सबकी जगह रखतें है।।

क्या हुआ,जो है नजर,मेरी फलक तक उठती
अपने पैरों को हम,जमीं पे टिका रखते हैं।।

है कसम मुझको,है मेरे अश्क भी यूं ही प्यारे
ठीक खुशियों की तरह,उन्हें दिल से लगा रखते है।।

हो नजर शोख का,या जख्म किसी पत्थर का
खुद के हर चोंट को,हम यादों में सजा रखते है।।

मुझको होता नहीं,अब अफसोस किसी का साथी
चाँद मिलता नही,तो दामन तारों से सजा रखते हैं।।

जिंदगी हैं वही जो हस के बिताया हमने
दिल मे वैसे तो सभी,गम भी छुपा रखते है।।

अहमियत आपकी नजरों में मेरे,कुछ कम तो नही
बेवजह दिल में क्यूं, यूं आप गिला रखते हैं।

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