कहानी – स्वामी विवेकानंद विदेश यात्रा पर थे। जहां वे ठहरे हुए थे, वहां कई विदेशी उनसे मिलने पहुंचते थे। एक दिन एक गोरे पति-पत्नी स्वामीजी से मिलने पहुंचे। पति-पत्नी स्वामीजी से बहुत प्रभावित थे और उनके भक्त भी थे।
गोरे पति-पत्नी ने स्वामीजी से मिलने के लिए समय मांगा। उस समय स्वामीजी के आसपास कुछ बच्चे खेल रहे थे। पति-पत्नी ने स्वामीजी से कहा, ‘हमारी कोई संतान नहीं है। हमें भरोसा है कि अगर आप हमें आशीर्वाद दे दें या कोई चमत्कार कर दें तो हमारे यहां बच्चा हो जाएगा।’
वे लोग विदेशी थे, लेकिन उन्हें भारतीय संस्कृति की जानकारी थी। उन्हें कई साधु-संतों की कथाएं मालूम थीं। उन्होंने कहा, ‘स्वामीजी हमने सुना है कि साधु-संत आशीर्वाद देते हैं तो लोगों के यहां संतान हो जाती हैं। आप हमें आशीर्वाद दीजिए कि हमारे घर संतान आ जाए।’
स्वामीजी ने मुस्कान के साथ कहा, ‘आपको संतान चाहिए?’
पति-पत्नी बोले, ‘हां।’
स्वामीजी ने कहा, ‘मेरे माध्यम से चाहिए?’
दंपत्ति ने कहा, ‘हां, अगर आपके माध्यम से संतान मिलेगी तो वह योग्य होगी। हम और ज्यादा प्रसन्न हो जाएंगे।’
विवेकानंदजी ने कहा, ‘अगर मैं संतान दूं तो उसे स्वीकार करोगे?’
दोनों स्वामीजी के भक्त थे, उन्होंने कहा, ‘आप जो संतान देंगे, हम उसे जरूर स्वीकार करेंगे।’
स्वामीजी ने वहीं खेल रहे एक अनाथ निग्रो बच्चे को उठाया और उसका हाथ पति-पत्नी के हाथ में दिया और कहा, ‘आज से ये बच्चा आपका। यही मेरा आशीर्वाद है।’
उस गोरे दंपत्ति ने स्वामीजी द्वारा दिए गए बच्चे को स्वीकार किया और उसका पालन करने की जिम्मेदारी संभाल ली।
सीख – अगर कोई व्यक्ति समर्थ है और किसी अनाथ बच्चे का पालन कर सकता है तो उसे ये काम जरूर करना चाहिए। हमारे समाज में कई बच्चे अनाथ हैं, जिनके माता-पिता नहीं हैं, जिनका घर-परिवार नहीं है, उन बच्चों की मदद करना हमारा कर्तव्य है। अगर ऐसे बच्चों का पालन-पोषण सही ढंग से होगा तो इस नेक काम से पूरे समाज का भला होगा।