मिट्टी के देसी बर्तन में पकाए खाना,अच्छी सेहत के साथ ही अनेकों फायदे होंगे…मिट्टी के बर्तनों का यूज कर के आप न केवल अपने स्वास्थ्य के प्रति बेहतर कदम उठाएंगे बल्कि उन कारीगरों की भी मदद कर पाएंगे जो इन बर्तनों को बनाने के काम करते हैं

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समय के साथ टेक्नोलॉजी बदली और हम भी उसमें ढल गए। फिर चाहे वो रहने, पहनने या खानपान का तरीका हो सभी में बदलाव आया। जाहिर है इस बदलाव ने हमें स्मार्ट बना दिया है। साथ ही अब समय की भी काफी बचत हो जाती है लेकिन क्या ये हमारे लिए पूरी तरह सेफ है ?

अब रोजाना किचन में इस्तेमाल होने वाले बर्तनों को ही देख लीजिए एक समय था जब लोहे, स्टील, सोपस्टोन और मिट्टी के बर्तनों में लोग खाना पसंद करते थे लेकिन अब इनकी जगह नॉन-स्टिक बर्तनों ने ले ली है। नॉन-स्टिक बर्तनों की बढ़ती पॉप्युलैरिटी के पीछे कारण है कि इनमें कुछ भी बनाओ, तो चिपकता नहीं है, कम तेल की ज़रूरत पड़ती है और इन्हें साफ़ करना भी आसान होता है। लेकिन इन तमाम सुविधाओं के साथ -साथ इसके कुछ नुकसान भी हैं जिसे हम नजरअंदाज कर देते हैं।

सबसे पहले तो नॉन-स्टिक परत के लिए इस्तेमाल हुआ पॉलीटेट्राफ्लूरोएथिलीन बहुत ही हानिकारक होता है।इसलिए यह तय करना की आपका खाना सभी तरह के सिंथेटिक से बचा रहे बहुत जरूरी है।इसके लिए आपको लोहे, मिट्टी या फिर सोपस्टोन के बने बर्तनों का इस्तेमाल करना चाहिए। यदि आपके घर में पहले से ही ये बर्तन मौजूद हैं तो बहुत अच्छा है। और यदि नहीं है तो आप ऑनलाइन लोहे, मिट्टी और सोपस्टोन से बने बर्तन देख व खरीद सकते हैं!

किसी भी बर्तन चाहे वह पैन,कढ़ाई या फिर तवा हो, उसे नॉन-स्टिक बनाने के लिए पॉलीटेट्राफ्लूरोएथिलीन केमिकल का इस्तेमाल होता है,जो एक सिंथेटिक फ्लुरोपॉलीमर है।क्योंकि इसका सरफेस चिकना और मेल्टिंग पॉइंट बहुत ही ज्यादा होता है।

टेफ़लोन ब्रांड का फ्लुरोपॉलीमर में मैनमेड
केमिकल,पेर और पॉलीफ्लुरोअल्काइल होते हैं। ये केमिकल्स पर्यावरण में या मानव शरीर में जाकर टूटते नहीं है। और इसलिए ये पाचन क्रिया का हिस्सा न बनते हुए, हमारे शरीर में इकठ्ठा होते रहते हैं। इसका हमारे स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है।हालांकि नॉन-स्टिक बर्तनों पर ‘पीएफए’ फ्री होने का लेबल लगाया जाता है। पर वहीं चिंताजनक यह है कि भारत में इसे लेकर अभी तक भी कोई रेगुलेशन नहीं है और इसलिए हम सिर्फ लेबल पर निर्भर नहीं हो सकते।इसलिए बेहतर होगा कि ऐसे बर्तन खरीदें जो कि सुरक्षित हों और जिनमें खाना पकाने पर खाने का स्वाद और पोषण, दोनों ही बढ़ जाएँ।

लोहे के बर्तन में खाना पकाने के दो फायदे हैं- पहला आप ज्यादा तापमान पर भी खाना पका सकते हैं, यह आपके खाने में कोई हानिकारक तत्व नहीं मिलाता। और दूसरा, जब आप लोहे के बर्तनों में खाना बनाते हैं तो इसमें आयरन का पोषण आ जाता है जो कि हमारे शरीर के लिए जरूरी है।

वक़्त के साथ मिट्टी के बर्तनों का चलन कम होता जा रहा है। पर आज के समय में बढ़ रही स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों को देखते हुए, हमें मिट्टी के बर्तनों में भी खाने की आदत डालनी चाहिए। हम डेली तो इसका इस्तेमाल नहीं कर सकते लेकिन कोशिश करनी चाहिए कि समय समय पर हम मिट्टी के बर्तनों में खाना पकाए और खाए। इन बर्तनों में नेचुरल एल्कलाइन होता है इससे खाने का पीएच बैलेंस होता है। साथ ही, ये इको-फ्रेंडली और बायोडिग्रेडेबल भी हैं।

सोपस्टोन एक प्राकृतिक पत्थर है, जिसमें मैगनिसियम की काफी मात्रा होती है। यह वैसे तो चट्टान की तरह घना और ठोस होता है पर अपने सरफेस से इतना सॉफ्ट होता है कि आप इसे अपने नाख़ून से खुरच सकते हैं। सोपस्टोन पुराने जमाने से हमारी किचन में अपनी जगह बनाये हुए है।इसकी सबसे बड़ी वजह है कि यह इको-फ्रेंडली है और इसमें खाना काफी देर तक गर्म रहता है। बाकी यह खाने का पोषण भी ज्यों का त्यों बरक़रार रखता है।

इन तमाम तरह के बर्तनों का यूज कर के आप न केवल अपने स्वास्थ के प्रति बेहतर कदम उठाएंगे बल्कि उन कारीगरों की भी मदद कर पाएंगे जो इन बर्तनों को बनाने के काम करते हैं।

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