आज हम आपको ऐसे गांव के बारे में बताएंगे जिसका एक हिस्सा भारत में तो दूसरा हिस्सा म्यांमार में है। ये गांव नागालैंड के मोन जिले के अंतर्गत घने जंगलों के बीच म्यांमार सीमा से सटा हुआ है। लोग इसे पूर्वी छोर का आखिरी गांव भी कहते हैं। इस गांव में मुख्यत: कोंयाक आदिवासी रहते हैं।
दुनियाभर में कई तरह के बॉर्डर होते हैं। कहीं सीमा रेखा के दोनों तरफ सेनाएं खड़ी रहती हैं तो कहीं गेट लगाकर एक देश के लोगों को दूसरे में जाने से रोका जाता है। दो देशों के बीच नागरिकों की आवाजाही के लिए पासपोर्ट और वीजा जैसे दस्तावेज अहम होते हैं। चीन और पाकिस्तान को छोड़कर तमाम पड़ोसी देशों के साथ भारत के संबंध मित्रवत हैं। मित्रवत संबंधों के बावजूद नागरिकों के स्वच्छंद रूप से बॉर्डर के आर-पार जाना अब भी मुश्किल है।
आज दुनिया के कई और हिस्सों में शरणार्थी समस्याएं हैं। ऐसे में हम आपसे कहें कि भारतीय सीमा में एक ऐसा गांव भी है, जिसके नागरिक बेरोक-टोक दूसरे देश में आ जा सकते हैं तो? हम आपको बताएं कि इस गांव के नागरिकों को दोनों देशों की नागरिकता हासिल है तो? हम आपसे यह जानकारी साझा करें कि यहां सीमा रेखा मुखिया के घर के बीच से गुजरती है तो आपका चौंकना लाजिमी है।
अनोखा है लांगवा गांव
भारत में उत्तर-पूर्वी राज्यों की खूबसूरती जगजाहिर है। फिर बात नगालैंड की हो तो कहने ही क्या? राज्य में कुल 11 जिले हैं, जिनमें से एक है मोन। यह जिला सुदूर उत्तर-पूर्व में बसा है और जिले में एक गांव है जिसका नाम लांगवा है। गांव में पारंपरिक बड़े से घर और उनकी फूस की छतें हैं। यह गांव मुख्य मोन शहर से करीब 42 किमी दूर म्यांमार बॉर्डर पर बसा है। गांव की सबसे खास बात यह है कि इस गांव के बीचों-बीच से भारत-म्यांमार बॉर्डर गुजरता है। यहां के मुखिया की घर तो आधा भारत और आधा म्यांमार में आता है।
राजा की 60 पत्नियां
‘द अंघ’ कोंयाक नागा जाति का वंशागत मुखिया या राजा होता है। यहां की एक खास बात यह भी है कि यहां के मुखिया की 60 पत्नियां हैं और आसपास के 70 गांवों पर राज करता है। यह गांव भारत में अरुणाचल प्रदेश और म्यांमार तक फैले हुए हैं।
कोंयाक जनजाति है क्या?
नगालैंड में रहने वाली 16 आधिकारिक जनजातियों में से कोंयाक सबसे बड़ी जनजाति है। इस जनजाति के लोग तिब्बती-म्यांमारी बोली बोलते हैं, लेकिन अलग-अलग गांवों में इसमें थोड़ा-बहुत बदलाव आ जाता है। नगा और आसामी मिश्रित भाषा (नगामीज) भी यहां बोली जाती है। आओलिंग मोन्यू यहां का बेहद ही खूबसूरत और रंगों से भरा दर्शनीय त्योहार है। यह त्योहार हर साल अप्रैल के पहले हफ्ते में मनाया जाता है।
एक गांव, एक पहचान और दो देश
लांगवा गांव अपने आप में अनोखा है। यहां के लोग एक गांव, एक पहचान और दो देशों की नागरिकता को वहन करते हैं। सीमा रेखा के दोनों और रहने वाले कोंयाक लोग भावनात्मक रूप से एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। हालांकि देश और देशों की सीमाएं तो इंसानों ने बनाई हैं। लेकिन लांगवा एक ऐसा गांव है जो एक ऐसे विश्व की परिकल्पना को साकार करता दिखता है, जहां कोई सीमा रेखा न हो।