ग्रीन ग्रुप…हरे रंग की साड़ी पहने,टोलियों में चलती महिलाएं और बदल गई गांवों की तस्वीर

457

हरे रंग की साड़ी पहने, टोलियों में चलती महिलाएं. वे महिलाओं जो कुछ महीनों पहले तक ये सोच के जीवन बिता रही थीं कि बुराई देखकर भी चुप रहना. बुराई झेलकर भी सहन करना. बुराई सामने भी हो तो उससे हारकर आगे बढ़ जाना. उनकी नियति में है. लेकिन, उनकी नियति बदलने पहुंची एक युवाओं की टोली. जिसने 6 से 12 महीने में ही उन महिलाओं को ‘पुलिस मित्र’ बना दिया.

यही नहीं उन महिलाओं ने गांव में शराबियों के उत्पात को बंद करा दिए. जुए को अड्डों को बंद करा दिए और बहुत हद तक घरेलू हिंसा में कमी ला दी. गांव के स्कूलों में टीचरों को पहुंचने के लिए मजबूर कर दिया. अस्पताल में हेल्थ वर्कर्स की उपस्थिति होने लगी. इतना ही नहीं गांव के लोग सरकारी योजनाओं को जानने ही नहीं लगे, उसका लाभ भी लेने लगे.

ये सब काम हुआ रवि मिश्रा, दिव्यांशू उपाध्याय और उनकी टीम के जरिए. सविल सर्विस की तैयारी कर रहे इन युवाओं ने साल 2015 में समाज के लिए कुछ करने का निर्णय लिया. इन्होंने सोचा कि क्यों ने गरीब बच्चों को पढ़ाया जाए. वे रविदास घाट के किनारे रह ही बस्तियों में जाने लगे. बच्चों को पढ़ाने लगे. इस दौरान उन्हें इन बस्तियों की मूल समस्याओं का आभास हुआ. उन्हें लगा यहां अशिक्षा, नशाखोरी और महिलाओं का उत्पीड़न ज्यादा है. ऐसे में उन्होंने इस सेक्टर में काम करने का करने का निर्णय लिया.

टीम ने प्लान तैयार किया तो उन्हें समझ में आया की उन्हें गांवों का रुख करना चाहिए. ऐसे में इन्होंने सोचा कि ये मलीन बस्तियों में रहने वाले परिवार कहां से आते हैं. इन महिलाओं का सीधा जुड़ाव कहां से हो. और अगर हम महिलाओं को जागरुक कर दें तो उनका परिवार और फिर समाज जागरुक हो सकता है. इसके बाद हम लोगों ने गांव की तरफ बढ़ने का प्लान तैयार किया.

होप वेलफेयर ट्रस्ट के सचिव दिव्यांशू मीडिया से बात करते हुए कहते हैं, हमने सबसे पहले वाराणसी में शहर मुख्यालय से 15 किमी दूर एक गांव खुशियारी को पकड़ा. साल 2015 में जब हम गांव पहुंचे और सर्वे शुरू किए तो वहां के कुछ मौजों में बिजली तक नहीं पहुंची थी. पुरुष शराब और जुए में व्यस्त थे. घरेलू हिंसा की घटनाएं लगातार बढ़ रही थीं. बच्चे स्कूल नहीं जाते थे. ग्रामीणों को सरकारी योजनाओं की जानकारी नहीं थी. ऐसे में हमने गांव को जागरुक करने का निर्णय लिया.

इसी दौरान गांव की एक बुजुर्ग महिला से हमारी टीम की मुलाकात हुई. उन्होंने बताया कि किस तरह उनके लड़के ने शराब के नशे में अपनी पत्नी को जला दिया है. वह अपील करने लगी कि कुछ ऐसा किया जाए, जिससे गांव के पुरुषों का शराब का लत छूट जाए.

इसके बाद हम लोगों ने गांव की महिलाओं से बात करना शुरू किए. उन्हें लक्ष्मबाई और ज्योतिबा फुले जैसी महिलाओं के बारे में बताए. जिससे उनमें जागरुकता आई. महिलाएं एकजुट होने लगीं. करीब 6 महीने की मेहनत के बाद गांव में महिलाओं की एक अच्छी टीम तैयार हो गई, जो जागरुक तो थी हीं, अब वह कुछ बेहतर समाज को बनाने के लिए मोटिवेट भी हो चुकी थीं.

दिव्यांशू कहते है, इसके बाद हम लोगों ने महिलाओं को एक ड्रेस कोड देने का निर्णय लिया. इसके लिए हमने हरी साड़ी ड्रेस कोड देने का निर्णय लिया. हरा रंग रखने के पीछे हमारा तात्पर्य गांव की हरियाली और खुशहाली से था. फिर क्या हमने ‘गो ग्रीन’ के तर्ज पर गांव की महिलाओं को हरी साड़ियां बांटी और 25 महिलाओं की टीम बना दी.

इसके बाद हम लोगों एसएसपी को बुलाए. उनसे कार्यक्रमों को उद्घाटन कराए. पुलिस ने इन महिलाओं को ‘पुलिस मित्र’ का दर्जा दे दिए. अब ये महिलाएं गांव में जहां भी जुआ होता या पुरुष शराब पीकर उत्पात मचाते या कहीं घरेलू हिंसा की घटना होती तो पहुंच जातीं. इसका असर ये हुआ कि सिर्फ 6 महीने में गांव का रूप ही बदल गया. वहां जुआ बंद हो गया. घरेलू हिंसा की घटनाएं कम हो गईं. शराब पीकर उत्पात मचाने वाले लोग कम हो गए.

इतना ही नहीं गांव की महिलाओं ने बिजली विभाग के डीएम से मुलाकात की. इसका असर हुआ कि गांव के जिन मौजों में बिजली नहीं पहुंची थी, वहां बिजली पहुंच गई. महिलाएं हफ्ते में एक बार अपना ड्रेस पहनकर पूरे गांव का दौरा करती. गांव की स्थिति को जानती. इससे पूरे गांव में पॉजिटिव संचार का प्रसार हुआ.

वह कहते हैं, हमारे काम को देखते हुए मिर्जापुर के एसपी ने हमें बुलाया और कुछ गांव में ऐसी ही टीम बनाने और काम करने की जिम्मेदारी सौंपी. हमने वहां भी महिलाओं की टीम बनाई. इसके बाद सोनभद्र के गांवों की जिम्मेदारी मिली हमने वहां भी टीम बनाई. इन गांवों के सरकारी स्कूलों में टीचर नहीं आते थे. हमने स्कूल के बाहर टीचर्स के नंबर लिखे. संबंधित अधिकारियों के नंबर लिखे. इससे गांव वाले फोन करके उन्हें बुलाने लगे. स्थिति ये हुई की टीचर्स स्कूल आने लगे. संबंधित अधिकारी उनकी शिकायतों का संज्ञान लेने लगे.

वह कहते हैं आज की तारीख में ग्रीन ग्रुप 150 गांवों में काम कर रहा है और 1200 महिलाएं इससे जुड़ी हुई हैं. नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के गांवों में उन लोगों को विशेष काम करने की जरूरत पड़ती है. कम संशाधनों में भी वे काम कर रहे हैं. इसके बाद अयोध्या के एसएसपी ने हमें बुलाया. वहां भी हमारी टीम पहुंची और सर्वे करके काम करने लगी. इससे वहां के भी सरयू नदी के किनारे के 10 गांवों में टीम काम कर रही है और बेहतर विकास का मॉडल प्रस्तूत कर रही है.

इनका मानना है कि ग्रीन ग्रूप एक चेंजमेकर की भूमिका में है. लॉकडाउन में भी इन महिलाओं ने मास्क बनाया और लोगों को दिया. सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर अवेयर किए. जरूरतमंदों को खाना पहुंचाए. इस तरह इस टीम के जरिए अंतिम पंक्ति में बैठे लोगों तक पहुंचने की कोशिश की जाती है.

दूसरी तरफ गांवों में ये देखने को मिलता है कि कोई आर्थिक तंगी की वजह से स्कूल नहीं जा पा रहा. कोई साइकिल के अभाव में आगे की पढ़ाई नहीं कर पा रहा है. ऐसे में टीम ने साइकिल डिस्ट्रीब्यूशन सहित दूसरे संशाधनों को भी बांटा.

दिव्यांशू कहते हैं, हमने एक्टर सोनू सूद से अपील की तो उन्होंने 50 साइकिल भेजकर मदद की. इसके साथ ही जावेद जाफरी और पंकज त्रिपाठी ने भी सपोर्ट किया, जिससे इन लोगों ने गांव के लोगों को सपोर्ट किया.

दिव्यांशू कहते हैं कि उनकी टीम 150 गांवों में काम करती है. उन्हें तमाम तरह की मदद की जरूरत है. जिससे ग्रीन ग्रुप महिलाएं ज्यादा मजबूत हो सकें और गांवों का बेहतर विकास हो सके. ये मदद आर्थिक भी हो सकता है और जुड़कर किसी तरह का काम करके भी हो सकता है. हर शख्स इस समाज में बेहतरी के लिए कुछ कर सकता है और ग्रीन ग्रुप को सहयोग करके उसे मजबूत बना सकता है.(source-social media)

Live Cricket Live Share Market

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here