पत्थरो के ढेर के बीच दरार से निकल आया घास का एक पौधा जब गर्दन ऊपर उठाकर बाहर झांकता है,तब हमें पता चलता है कि घास का नन्हा बीज जमीन में सुगबुगा रहा था और फिर लहलहाने लगा…..
और फिर कुछ दिनों बाद हम देखते हैं-अरे !उस पर तो एक नन्हा फूल भी उग आया है।ये जीवन भी कुछ कुछ ऐसा ही है…….
ये कौन है ,जो समुद्र की लहरों में श…श..श..की आवाज का संगीत गुंजा रहा है?और ये संगीत पता नही कबसे गूंज रहा है और कब तक गूंजेगा?शायद अनन्त काल तक!ये कौन है ,जो फलों में मिठास घोल रहा है?ओह!इतना सब ?और इतना ही नही,कितना सब?तो ये है प्रकृति का जादू।हमारे जीवन को प्राणवायु ,हमे जीवन देने वाली प्रकृति!इस प्रकृति ने इंसान को इतना लुभाया है कि दुनियाभर के चित्रकारों ने दुनिया मे सबसे ज्यादा चित्र प्रकृति के ही उकेरे है।
अलबर्ट आइंस्टीन ने कहा था ,प्रकृति को गहरे से देखो ,फिर आप सब कुछ समझ जाओगे ।दुनिया के सारे विचार और अविष्कार प्रकृति से ही जन्मे है।प्रकृति से अच्छा शिक्षक और दोस्त कोई हो नही सकता।
आशाओं ने ही इंसान के जीवन को बचाया है तो उम्र के किसी भी पड़ाव पर अपने अंदर निराशा के बीज क्यो अंकुरित होने दो?कहते है न,आदमी उम्र से बूढ़ा नही होता,मन से बूढ़ा होता है।बहते झरने ,नदी,समुद्र का संगीत सुने,सुबह की शीतल हवा का आनंद ले,पेड़ पहाड़ो को निहारे……