वनाधिकार के लिए रायपुर में होगी वन स्वराज आन्दोलन की सभा और रैली….. जल जंगल जमीन की लड़ाई…. कई संगठनो ने दिया समर्थन….

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रायपुर: छत्तीसगढ़ में वनाधिकार कानून के क्रियान्वयन पर सरकार को अपना वादा याद दिलाने और आदिवासियों पर हुए ऐतिहासिक अन्याय को ख़त्म कराने के लिए वन स्वराज आन्दोलन एक विशाल सभा दिनांक 18 नवम्बर 2019 ( दिन सोमवार) को रायपुर के बुढातालाब स्थित धरना स्थल पर आयोजित कर रहा है. इसमें प्रदेश भर के विभिन्न जनसंगठन और आदिवासी अधिकार के लिए लड़ने वाले संगठन एक बैनर के तले आकर प्रदेश सरकार को अपना वादा याद दिलाएंगे. इस हेतु, सभी आन्दोलनकारी प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल को अपना मांग-पत्र सौंपने मुख्यमंत्री निवास कूच करेंगे.
हमारी मांग है कि, देश की संसद द्वारा आदिवासी व वन-निवासी समुदायों के अधिकारों के लिए वनाधिकार कानून बनाया गया गए, उसके बावजूद जंगल जमीन पर उनके अधिकार मान्य नहीं किये जा रहे हैं. यह कोई भीख नहीं है, बल्कि हमारा संविधान सम्मत अधिकार है !!!
वनाधिकार कानून का क्रियान्वयन छत्तीसगढ़ सरकार का चुनावी वादा और घोषित कार्यक्रम है। इसके बावजूद इस महत्वपूर्ण कानून का क्रियान्वयन सही नहीं किया जा रहा है और इसके लिए केंद्र व प्रदेश के सरकार की कॉर्पोरेटपरस्त नीतियां, प्रशासनिक लापरवाही और राजनैतिक इच्छाशक्ति का अभाव जिम्मेदार है।
देश में पेसा और वनाधिकार जैसे कानून लागू होने के बावजूद, जो कि आदिवासियों की पारंपरिक लोकतान्त्रिक स्वशासन व्यवस्था का सम्मान देते हुए, जल- जंगल-जमीन पर सामुदायिक मालिकी और नियंत्रण को मान्य करता है, का खुलमखुल्ला उल्लंघन हो रहा है. यदि, वनाधिकार कानून को ठीक से लागू किया जाता तो, आज छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल वन-क्षेत्रों में लोकतान्त्रिक प्रबंधकीय व्यवस्था ग्रामसभा के प्रभुत्व में स्थापित हो सकती थी. इस तरह, अंग्रेजों के ज़माने में जंगल को लूटने वाले कानून को हटा कर जंगल के शासन के लोकतंत्रीकरण का अभूतपूर्व मौका था. इस वर्ष गांधीजी की 150 जयंती पर स्वराज की बात करने वाले, जंगल में स्वराज स्थापित कर, उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दे सकते थे. देश के कुल 750 लाख हेक्टेयर वनक्षेत्र में से ग्रामसभा के अधीन करीब 500 लाख हेक्टेयर तथा छत्तीसगढ़ के 59 लाख हेक्टेयर वनक्षेत्र में से अनुमानित 50 लाख हेक्टेयर से ज्यादा वन क्षेत्र पर स्वशासन स्थापित हो सकता है । लेकिन, देश के शासक वर्ग और पूंजीपतियों के दबाव के चलते, भारतीय वन कानून 1927 में संशोधन और नयी भारतीय वन नीति लागू कर, वन स्वराज मिलने से पहले ही ख़त्म करने की कोशिश की जा रही है.

वन स्वराज आन्दोलन, भारतीय वन अधिनियम 1927 में चोरी छिपे संशोधन करने की केंद्र की मंशा का भी घोर विरोध करता है. विशेषकर, उन प्रावधानों का जिससे, जंगल के अधिकार का उपयोग करने वाली जनता, एक बार फिर से अपराधी बना दी जाएगी. यह आन्दोलन, देश के सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन मामले, और उससे उत्पन्न स्थिति पर चिंता व्यक्त करता है, जिससे लाखो आदिवासी परिवारों पर बेदखली की तलवार लटक रही है. वन अधिकारियों के समर्थन से वन्य-जीव सरंक्षणवादी संस्थाओं द्वारा सुप्रीम कोर्ट में 2008 से वनाधिकार के खिलाफ दाखिल याचिका की सुनवाई के समय पर केंद्र व राज्य सरकार आदिवासी हित में पक्ष को ठीक से नहीं रख पा रहा है, परिणामतः, कोर्ट के बेदखली का आदेश स्थगित तो है, पर बेदखली का खतरा टला नहीं है।

प्रमुख मांगे
* वन अधिकार कानून के क्रियान्वयन को प्रदेश सरकार प्राथमिकता पर मिशन मोड में लाये.
* गलत तरीके से ख़ारिज किये या बगैर सुनवाई का अवसर दिए ख़ारिज किये गए दावों पर पुनर्विचार कर वाजिब दावे मान्य किये जाये. प्रत्येक निरस्त दावों के कारणों को दर्ज कर दावेदार सहित सार्वजानिक जानकारी में उपलब्ध रखा जाये.
*खनन, उद्योगों एवं विकास परियोजनाओं के लिए वनभूमि के व्यपवर्तन(डायवर्सन) के लिए ग्राम सभा की दबाव-मुक्त, लिखित अनिवार्य सहमति लेने का पालन किया जाये.
* भारतीय वन अधिनियम, 1927 में प्रस्तावित संशोधनों को भविष्य में लागू न होने दिया जाये, और वन अधिकार कानून की मंशा के अनुरूप राज्य कानून में बदलाव किया जाए ।
* प्रदेश में शून्य विस्थापन की नीति अपनाई जाये. विशेष रूप से वनजीव अभ्यारण्यों, टाइगर रिजर्व एवं राष्ट्रीय उद्यानों तथा विशेषरूप से कमजोर आदिवासी समूहों की बेदखली को तुरंत रोका जावें।
* हाथी रिजर्व सहित, प्रदेश में कोई भी वनजीव अभ्यारण्य घोषित करने से पूर्व सम्बंधित ग्राम सभाओं की दबाव मुक्त, पूर्व-सूचित सहमति ली जाये.
* वन विभाग द्वारा व्यय किये जाने वाले क्षतिपूर्ति वनीकरण निधि (कैम्पा) सहित अन्य मदों पर ग्रामसभा का नियंत्रण, वनाधिकार नियम 4(1)च के तहत सुनिश्चित किया जाये.
* राज्य सरकार वनाधिकार कानून के सभी उल्लंघन के प्रति अति संवेदनशीलता रहे एवं वनाधिकार के विरुद्ध दायर याचिकाओं की सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय व उच्च नयायालय में सजगता से जनपक्षीय दलील रखें |

वन स्वराज सभा और रैली में प्रदेश के निम्न मुख्य संगठन शिरकत करेंगे.
वनाधिकार संघर्ष समिति, छत्तीसगढ़ वनाधिकार मंच, छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन, सर्व आदिवासी समाज, दलित आदिवासी मंच, भारत जन आन्दोलन, आदिवासी भारत महासभा, छ.मु.मो, गो.ग.पा., अ.भा.आदिवासी महासभा, जन मुक्ति मोर्चा, वनांचल वनाधिकार फेडरेशन (राजनांदगाँव), छ.मु.मो. (कार्यकर्ता समिति), छत्तीसगढ़ किसान सभा, गाँव बचाओ समिति, आदिवासी महिला महासंघ , अ.भा. जंगल आन्दोलन मंच. आदिवासी एकता महासभा

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